क्या है निजता का अधिकार?
निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का मूलभूत हिस्सा है। यह संविधान के भाग-तीन के तहत प्रदत्त आजादी का ही हिस्सा है। उल्लेखनीय है कि मौलिक अधिकारों का संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक वर्णन किया गया है।
अनुच्छेद 21 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और शरीर की स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
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क्या कहा अदालत ने : भारत में नागरिकों की निजता के अधिकार पर छिड़ी बहस में सर्वोच्च न्यायालय की नौ जजों की बेंच ने इतना साफ किया है कि प्राइवेसी (निजता) बचाने के लिए सरकार को नागरिकों के लिए बाध्यकारी कानून बनाने से नहीं रोका जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि लोगों की निजता के अधिकार को परिभाषित करने से लाभ से अधिक हानि हो सकती है। अदालत में इस आशय की दलीलें पेश की गई थीं कि निजता को सर्वोपरि मानना क्यों गलत होगा। कोर्ट ने कहा कि ‘राइट टू प्राइवेसी' को एक मूलभूत अधिकार मानने से पहले उसे सही तरह से परिभाषित करना जरूरी होगा और निजता के सभी तत्वों को बिल्कुल ठीक तरह से परिभाषित करना लगभग असंभव है।
क्यों खास है यह फैसला : खड़ग सिंह मामले में शीर्ष अदालत की छह सदस्यीय पीठ ने 1954 में तथा एमपी शर्मा मामले में आठ-सदस्यीय पीठ ने 1962 में व्यवस्था दी थी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आता है। अब पांच-सदस्यीय संविधान पीठ आधार मामले की सुनवाई निजता के मौलिक अधिकार के पहलू से करेगी।
मौलिक अधिकारों का निलंबन : अनुच्छेद 352 के अनुसार जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू हो तो अनुच्छेद 358, 359 राष्ट्रपति को यह अधिकार देते है कि वह मौलिक अधिकारों का निलंबन कर दें, परंतु अनुच्छेद 20 और 21 में दिए अधिकार किसी भी दशा में वापस नहीं लिए जा सकते।