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Last Modified: शुक्रवार, 5 मई 2023 (18:27 IST)

हम नैतिकता पर उपदेश देने वाली संस्था नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Supreme court
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा है कि वह नैतिकता और नैतिक मूल्यों पर समाज को उपदेश देने वाली संस्था नहीं है तथा वह कानून के शासन से बंधा है। शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी के साथ ही 2 बेटों की हत्या के अपराध में 20 साल जेल में गुजार चुकी एक महिला की समय-पूर्व रिहाई की स्वीकृति दे दी।

शीर्ष अदालत मद्रास उच्च न्यायालय के अगस्त 2019 के फैसले के खिलाफ महिला द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय के फैसले में दो बेटों की हत्या के मामले में महिला की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा गया था।

न्यायालय ने उल्लेख किया कि महिला का एक पुरुष के साथ प्रेम संबंध था, जो उसे अकसर धमकी देता था, और इस वजह से उसने अपने बच्चों के साथ आत्महत्या करने का निर्णय लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि महिला ने कीटनाशक खरीदा और इसको अपने दो बच्चों को खिला दिया तथा जब उसने खुद जहर खाने की कोशिश की तो उसकी भतीजी ने उसे रोक दिया।

पीठ ने गुरुवार को दिए अपने फैसले में कहा, यह अदालत नैतिकता और नैतिक मूल्यों पर समाज को उपदेश देने वाली संस्था नहीं है तथा हम कानून के शासन से बंधे हैं।

इसने उल्लेख किया कि पहले ही लगभग 20 साल जेल में बिता चुकी महिला ने समय से पहले रिहाई के लिए आवेदन किया था, लेकिन राज्य स्तरीय समिति (एसएलसी) की सिफारिश को सितंबर 2019 में तमिलनाडु सरकार ने उसके द्वारा किए गए अपराध की प्रकृति को देखते हुए खारिज कर दिया था।

हत्या के अपराध के लिए उसकी सजा में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि कि समय से पहले उसकी रिहाई के लिए एसएलसी की सिफारिश को स्वीकार न करने का राज्य सरकार के पास कोई वैध कारण या उचित आधार नहीं था।

न्यायालय ने समय-पूर्व रिहाई की सिफारिश को खारिज करने के राज्य के फैसले को दरकिनार करते हुए कहा, हम अपराध से अनजान नहीं हैं, लेकिन हम इस तथ्य से भी अनजान नहीं हैं कि अपीलकर्ता (मां) पहले ही किस्मत के क्रूर थपेड़ों का सामना कर चुकी है।

पीठ ने यह उल्लेख करते हुए कि महिला समय-पूर्व रिहाई के लाभ की हकदार है, निर्देश दिया कि अगर किसी अन्य मामले में जरूरत न हो तो उसे तत्काल रिहा किया जाए। इसने उल्लेख किया कि निचली अदालत ने जनवरी 2005 में महिला को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया था और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

बाद में उच्च न्यायालय ने हत्या के मामले में उसकी सजा को बरकरार रखते हुए भादंसं की धारा 309 के तहत अपराध के मामले में उसे बरी करके उसकी अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया था। शीर्ष अदालत ने कहा, मामले पर विस्तार से विचार करने के बाद, इस अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता ने जिन परिस्थितियों में अपने दो बेटों को जहर दिया, उससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि वह अत्यंत मानसिक तनाव की स्थिति में थी।

समय-पूर्व रिहाई के मुद्दे से निपटते हुए पीठ ने उल्लेख किया कि समय से पहले महिला को रिहा किए जाने की एसएलसी की सकारात्मक सिफारिश को राज्य ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसने अपने अवैध संबंधों को निर्बाध जारी रखने के लिए अपने बेटों को जहर देकर मार डाला।

इसने कहा, अदालत उल्लेख करना चाहेगी कि अपीलकर्ता ने अपने अवैध संबंधों को जारी रखने के उद्देश्य से कभी भी अपने बेटों की हत्या करने की कोशिश नहीं की। इसके विपरीत उसने अपने प्रेमी की तरफ से उत्पन्न की गई स्थिति के चलते अपने बच्चों के साथ खुद आत्महत्या करने की कोशिश की थी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इसे क्रूर और बर्बर अपराध के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता क्योंकि महिला ने खुद का जीवन भी समाप्त करने की कोशिश की थी, लेकिन उसकी भतीजी ने समय रहते उसे रोक दिया।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)
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