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Last Modified: रविवार, 15 जुलाई 2018 (14:59 IST)

18 जुलाई से संसद का मानसून सत्र, हंगामे के आसार, खूब गरजेंगे 'विपक्षी बादल'

18 जुलाई से संसद का मानसून सत्र, हंगामे के आसार, खूब गरजेंगे 'विपक्षी बादल' - Parliament
नई दिल्ली। बढ़ती महंगाई और विशेष रूप से पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार उछाल, रुपए की गिरती कीमत, जम्मू-कश्मीर के हालात, आंध्रप्रदेश तथा किसानों के मुद्दे पर विपक्षी दलों के कड़े तेवरों को देखते हुए बजट सत्र की तरह संसद के मानसून सत्र के भी हंगामेदार रहने के आसार हैं।
 
 
18 जुलाई से शुरू होकर 10 अगस्त तक चलने वाले इस सत्र में राज्यसभा के उपसभापति का भी चुनाव होना है। भारतीय जनता पार्टी यह पद विपक्ष को देने को तैयार नहीं है जिसके कारण विपक्षी दलों में नाराजगी है और वे अपना उम्मीदवार खड़ा करने की जुगत में हैं। इस चुनाव में यह भी स्पष्ट होगा कि विपक्ष कितना एकजुट है?
 
इस सत्र में विपक्षी दल एक बार फिर सरकार को विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर घेरने की तैयारी में हैं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस रुपए के लगातार कमजोर होने और इसके रिकॉर्ड स्तर तक गिरने, ढुलमुल विदेश नीति, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप फसलों का समर्थन मूल्य न बढ़ाए जाने, पीट-पीटकर हत्या की बढ़ती घटनाओं तथा बैंकों का पैसा लेकर फरार हुए भगोड़ों को वापस लाने में सरकार की विफलता को लेकर उसके खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। उसका यह भी कहना है कि सरकार अमेरिकी दबाव में आकर देश के हितों के साथ समझौता कर रही है। पार्टी ने कहा है कि अमेरिकी दबाव में आकर सरकार ने ईरान से तेल आयात बड़ी मात्रा में घटा दिया है।
 
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से नाता तोड़ने वाली तेलुगुदेशम पार्टी ने आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग नहीं माने जाने के कारण मोदी सरकार के खिलाफ एक बार फिर अविश्वास प्रस्ताव लाने का ऐलान कर दिया है। तेदेपा इसके लिए सभी विपक्षी दलों से बात कर रही है और उसे उम्मीद है कि ये दल इस मुद्दे पर उसका साथ देंगे। तेदेपा पिछले सत्र में भी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी लेकिन हंगामे के कारण इसे स्वीकार नहीं किया जा सका था।
 
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के मुद्दे पर सभी विपक्षी दल अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। सरकार ने कुछ समय पहले कहा था कि वह इस समस्या से निपटने के लिए एक दीर्घावधि योजना पर काम कर रही है लेकिन उसने अभी इस बारे में किसी तरह का कोई संकेत नहीं दिया है।
 
विपक्षी दल जम्मू-कश्मीर के हालातों को लेकर भी सरकार पर निशाना साध रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार की नीतियों के कारण घाटी के हालात एक बार फिर बद से बदतर हो गए हैं। भाजपा ने पहले अपने फायदे के लिए वहां पीडीपी के साथ सरकार बनाई और हालात बिगड़ने पर गठबंधन सरकार से नाता तोड़कर राज्य की जनता को मझधार में छोड़ दिया।
 
भाजपा के सहयोगी संगठनों की आगामी लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर राम मंदिर का मुद्दा गरमाने की कोशिश से भी विपक्ष को एक मुद्दा मिल गया है और वे इस मामले को भी संसद में जोरशोर से उठा सकते हैं। सरकार को कुछ मामलों में सहयोगी दल शिवसेना का गुस्सा भी झेलना पड़ सकता है, जो पिछले कुछ समय से कुछ मुद्दों पर सरकार की आलोचना करती रही है। संसद में तीन तलाक और अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने जैसे कई महत्वपूर्ण विधेयक लंबित हैं। सरकार इन्हें मानसून सत्र में पारित कराने का प्रयास करेगी। कुछ अध्यादेशों के स्थान पर विधेयक भी लाए जाने हैं।
 
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने सत्र को सुचारु रूप से चलाने के लिए मंगलवार को सभी दलों की अलग-अलग बैठक बुलाई है। महाजन ने सभी सांसदों को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वे सदन में अधिक से अधिक विधायी कार्यों में सहयोग करें तथा राजनीतिक और चुनावी लड़ाई सदन से बाहर अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लड़ें। (वार्ता)
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