जस्टिस कर्णन को 6 माह की सज़ा, सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत गिरफ्तार कर जेल भेजने को कहा
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार (9 मई) को एक अभूतपूर्व आदेश देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सी एस कर्णन को न्यायालय की अवमानना करने के लिए तुरंत छह माह के लिए जेल भेजने के निर्देश दिए। प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने कहा, 'हम सभी का सर्वसम्मति से यह मानना है कि न्यायाधीश सी एस कर्णन ने न्यायालय की अवमानना की, न्यायपालिका की और उसकी प्रक्रिया की अवमानना की।'
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एमबी लोकुर, न्यायमूर्ति पीसी घोष और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की पीठ ने कहा कि वह न्यायाधीश कर्णन को छह माह की जेल की सजा सुनाए जाने से संतुष्ट हैं। पीठ ने कहा, 'सजा का पालन किया जाए और उन्हें तुरंत हिरासत में लिया जाए।' अपनी तरह का यह पहला मामला है कि जब अवमानना के आरोपों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को जेल भेजा जा रहा है। पीठ ने न्यायाधीश कर्णन द्वारा आगे कोई आदेश पारित किए जाने की स्थिति में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों मीडिया को आदेश की सामग्री को प्रकाशित करने से रोक दिया है।
इससे पहले सी एस कर्णन ने सोमवार (8 मई) को भारत के प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर और उच्चतम न्यायालय के सात अन्य न्यायाधीशों को पांच साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। उच्चतम न्यायालय से टकराव को बढ़ाते हुए न्यायमूर्ति कर्णन ने कहा कि था आठ न्यायाधीशों ने 'संयुक्त रूप से 1989 के अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम और 2015 के संशोधित कानून के तहत दंडनीय अपराध किया है।' उन्होंने शीर्ष अदालत की सात न्यायाधीशों की पीठ के सदस्यों के नाम लिये जिनमें प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ हैं।
पीठ ने न्यायमूर्ति कर्णन के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना कार्यवाही शुरू की थी और उनके न्यायिक और प्रशासनिक कामकाज पर रोक लगा दी थी। न्यायमूर्ति कर्णन ने सूची में उच्चतम न्यायालय की एक और न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर भानुमति का नाम भी जोड़ा जिनके खिलाफ इसलिए आदेश जारी किया गया क्योंकि उन्होंने न्यायमूर्ति कर्णन को न्यायिक और प्रशासनिक कामकाज से रोका था। न्यायमूर्ति कर्णन ने चार मई को उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार मानसिक स्वास्थ्य जांच कराने से इनकार कर दिया था। उन्होंने डॉक्टरों के एक दल से कहा कि वह पूरी तरह सामान्य हैं और मानसिक रूप से स्थिर हैं।
न्यायमूर्ति कर्णन ने कहा कि शीर्ष अदालत के आठों न्यायाधीशों ने जातिगत भेदभाव किया है। उन्होंने कहा, 'उन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम, 1989 के तहत दंडित किया जाएगा।' उन्होंने कहा कि आठ न्यायाधीशों ने एक सार्वजनिक संस्थान में मुझे अपमानित करने के अलावा एक दलित न्यायाधीश का उत्पीड़न किया है। उनके आदेशों से सभी संदेह से परे यह साबित हो गया है।