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Last Updated : मंगलवार, 6 दिसंबर 2016 (14:16 IST)

जयललिता के जीवन के अनछुए पहलू

जयललिता के जीवन के अनछुए पहलू - Jayalalithaa, Simi Garewal
सिमी ग्रेवाल के चैट शो में अभिनय और राजनीति की दुनिया में मशहूर रही जयललिला ने दिल खोलकर बातें कीं। उन्होंने कुछ अनछुए पहलू बताए जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आइए जानते हैं क्या कहा जयललिता ने इस शो में: 


 
- मैं जब दो वर्ष की थी तब मेरे पिता गुजर गए। मेरी आंटी फिल्मों में थी। निर्माता-निर्देशक उनसे मिलने घर आते थे। उन्होंने मेरी मां को फिल्मों में ऑफर दिया और वे सहायक अभिनेत्री के रूप में काम करने लगी। मां व्यस्त हो गईं। जब मैं 6 वर्ष की थी तो मुझे मेरे ग्रैंड पैरेंट्स के पास छोड़ दिया गया। 
 
- चार वर्ष तक मैं ग्रैंड पैरेंट्स के यहां रहीं। मां को रोजाना याद करती थी। वे बहुत कम मुझसे मिलने आती थीं। जब वे आती तो मैं उन्हें नजरों से ओझल नहीं होने देती। जब वे मुझे सुलाती तो मैं कस कर उनका साड़ी का पल्लू पकड़ लेती थी कि वे मुझे छोड़ कर चली न जाएं। मैं जब सो जाती तो मां चुपचाप वो साड़ी उतार देती क्योंकि पल्लू मेरे हाथ में रहता था। बाद में मेरी आंटी मेरे पास आकर सो जाती। जब मैं उठ कर अपनी मां को नहीं पाती तो तीन दिन तक रोती रहती थी। 
 
- जब दस वर्ष की हुई तो मां के पास रहने लगीं, लेकिन मां सुबह चली जाती और देर रात लौटती। एक बार मैंने निबंध प्रतियोगिता जीती। इनाम मिला तो सबसे पहले मैं मां को दिखाना चाहती थी। आधी रात तक सोफे पर बैठ कर उनका इंतजार करती रही। आखिरकार नींद लग गई। मां ने मुझे उठाया और पूछा कि सोफे पर क्यों सोई हुई हो? तब मैंने अपने पुरस्कार के बारे में बताया। वो क्षण मेरी जिंदगी के बेहतरीन क्षणों में से एक है। 
 
- मेरी मां अभिनेत्री थीं और इसलिए मुझे मेरी कक्षा के बच्चे चिढ़ाते थे। मैं उन्हें कोई जवाब नहीं देती और घर आकर रोती थी। मेरी मां सहायक अभिनेत्री थीं। वे मां और बहन के रोल निभाती थीं। यदि वे सुपरस्टार होती तो शायद सब मुझसे ईर्ष्या करते। 
 
- मैं अपनी कक्षा की सर्वश्रेष्ठ छात्रा थीं। हर क्लास में पहले नंबर पर आईं। मुझे बेस्ट स्टुडेंट का अवॉर्ड और स्कॉलरशिप भी मिली थी। स्कूल के दिन मेरी जिंदगी के सबसे अच्छे दिन थे। 
 
- जब 16 वर्ष की थी और आगे पढ़ाई करना चाहती थी तब मां ने मुझे फिल्मों में अभिनय करने के लिए कहा। मुझे फिल्म और अभिनय बिलकुल पसंद नहीं था। मैंने तीन दिन तक विरोध किया। तब मां ने मुझे बताया कि उन्हें फिल्मों में काम मिलना कम हो गया। मेरे दादा रिटायर हो चुके हैं। भाई का जॉब नहीं था। मुझे फिल्मों के प्रस्ताव मिल रहे थे। मां ने कहा कि तुम कमाओगी तो आर्थिक हालत ठीक होगी। मैं और मेरा भाई अपने आपको अमीर मानते थे। उस दिन पता चला कि हम इतने अमीर नहीं हैं। मां ने हमें किसी चीज की कमी नहीं होने दी। मां से मुझे सहानुभूति हुई। मैंने अपनी स्कॉलरशिप लौटा दी और फिल्मों के ऑफर स्वीकार लिए। 
 
- मैं जल्दी ही दक्षिण भारत की नंबर स्टार बन गईं। मुझे फिल्म और अपना करियर बिलकुल पसंद नहीं था, लेकिन मैंने जो भी किया अपना सौ प्रतिशत दिया। मैं एक नेचुरल एक्टर हूं। 
 
- मैं जब युवा थीं तो मुझे क्रिकेटर नारी कांट्रेक्टर बहुत पसंद थे। उनके लिए ही मैं टेस्ट मैच देखने जाती थीं। शम्मी कपूर को भी मैं बहुत पसंद करती थी। 'जंगली' मेरी पसंदीदा फिल्म है। 'याहू' गीत मुझे बहुत अच्छा लगता है। 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम' 
और 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम' गीत भी पसंद है। 
 
- अनकंडीशनल लव मुझे कभी नहीं मिला। ये सब किताबों, उपन्यासों, कविताओं और फिल्मों में होता है। रियल लाइफ में नहीं मिलता। 
 
- मेरी शादी नहीं हुई इसका मुझे कोई अफसोस नहीं है। इसका ये मतलब नहीं है कि शादी का आइडिया मुझे पसंद नहीं है। मैंने भी एक परफेक्ट मैन का सपना देखा था। आम लड़कियों की तरह शादी के बारे में सोचा था, लेकिन यह सब हो नहीं पाया। अब जब अपने आसपास असफल शादियों को देखती हूं तो लगता है अच्छा ही हुआ शादी नहीं हुई। मैं फैमिली भी मिस नहीं करती। मुझे जो आजादी प्राप्त है वो मुझे पसंद है। बच्चे भी आजकल अपने माता-पिता के साथ कहां अच्छा व्यवहार करते हैं। 
 
- मैं जब 23 वर्ष की थी तब मां गुजर गईं। मां की उम्र तब 47 वर्ष थी। मेरी तो दुनिया अपनी मां के आसपास ही घूमती थी। मुझे तो कुछ समझ नहीं आया। मुझे तो बैंक खाता ऑपरेट करते नहीं आता था, चेक लिखना नहीं आता था, इनकम टैक्स के बा रे में तो कुछ सुना भी नहीं था, नौकरों को कितनी पगार देते हैं ये मुझे पता नहीं था, मेरी मां मेरे फिल्म निर्माताओं से कितना पैसा लेती हैं इसकी भी मुझे जानकारी नहीं थी। 
 
- मेरी मां की जगह एमजी रामाचंद्रन ने ली। वे मेरी मां, पिता, दोस्त, गाइड सब कुछ थे। पहले मेरी जिंदगी पर मां हावी रही और फिर एमजीआर। हमने 28 फिल्में साथ कीं। एमजीआर करिश्माई व्यक्तित्व के मालिक थे। जो उनसे मिलता, प्यार कर बैठता था। वे बेहद मजबूत शख्सियत थे। मैं उनका बहुत सम्मान करती हूं। 
 
- एमजीआर की मैं बचपन से फैन थी। एमजीआर की फिल्मों में अक्सर पीएस वीरप्पा विलेन होते थे। हम एमजीआर की फिल्में देख घर आते। मैं एमजीआर बनती और मेरा भाई वीरप्पा। हम तलवारबाजी करते और मैं ही जीतती क्योंकि मैं एमजीआर के किरदार में होती थी। 
 
- एमजीआर की मृत्यु के बाद पार्टी में खुद को सुप्रीमो के रूप में स्थापित करने में मुझे कड़ी मेहनत करना पड़ी। यह मेरे लिए बड़ा कठिन समय था। मुझ पर कीचड़ उछाले गए, लेकिन मैं मजबूत बनती गई।  
 
- राजनीति में जब आई तो मुझसे घटिया किस्म के सवाल किए गए। हमला हुआ। अपमान किया। एक बार मुख्यमंत्री के सामने विधान सभा पर मुझ पर हमला हुआ। मेरी साड़ी खोलने की कोशिश की। मुझे मेरे साथियों ने बचाया। मैंने कसम खाई कि इस भवन में तभी कदम रखूंगी कि जब मुख्यमंत्री बनूंगी और मैंने अपनी कसम को पूरा किया। 
 
- जेल जाना भी मेरे लिए बहुत तकलीफदेह था। मुझे अंधेरी, सीलन और कीड़े-मकोड़ों से भरी जगह पर महीने भर रखा गया। मैं फर्श पर सोती थी, लेकिन मैं टूटी नहीं। रोई भी नहीं। 
 
- मुझे बहुत 'टफ' कहा जाता है जबकि मैं ऐसी हूं नहीं। मैं अपनी भावनाओं पर काबू रखती हूं। मैं भी भावुक होती हूं, लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर कभी रोती या गुस्सा नहीं करती। न ही मैं पुरुषों से नफरत करती हूं। किसी पर भी आसानी से विश्वास कर लेना मेरी कमजोरी है। स्पष्टवादी लोग मुझे पसंद है। 
 
- मैं कितना बदल गई। पलट कर देखती हूं तो यकीन नहीं होता। एक वो जयललिता थी जो चुपचाप रहती थी। कम बोलती थी। लोग मेरा अपमान भी करते तो पलट कर जवाब नहीं देती, लेकिन अब ऐसी नहीं हूं। हिसाब बराबर करती हूं। 
(फोटो सौजन्य : यू ट्यूब) 
 
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