नई दिल्ली। राज्यसभा ने सोमवार को अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराओं को खत्म कर जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख को 2 केंद्र शासित क्षेत्र बनाने संबंधी सरकार के 2 संकल्पों को मंजूरी दे दी। राज्यसभा में पेश हुए विधेयक के समर्थन में 125 वोट पड़े जबकि विरोध में 61 वोट।
गृहमंत्री अमित शाह ने इस अनुच्छेद के कारण राज्य में विकास नहीं होने और आतंकवाद पनपने का दावा करते हुए आश्वासन दिया कि जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित क्षेत्र बनाने का कदम स्थायी नहीं है तथा स्थिति समान्य होने पर राज्य का दर्जा बहाल कर दिया जाएगा।
उच्च सदन में कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों के भारी हंगामे के बीच गृहमंत्री अमित शाह द्वारा पेश किए गए 2 संकल्पों एवं जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक को चर्चा के बाद मंजूरी दी गई।
साथ ही सदन ने जम्मू-कश्मीर आरक्षण (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2019 को भी मंजूरी दी। इनको पारित किए जाने के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी सदन में मौजूद थे। प्रधानमंत्री मोदी ने शाह की पीठ थपथपाते हुए उन्हें बधाई दी और गृहमंत्री शाह ने हाथ जोड़कर उनका आभार जताया।
बाद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गृहमंत्री शाह द्वारा सदन में दिए गए भाषण की सराहना करते हुए उसे व्यापक और सारगर्भित बताया। सरकार के दोनों संकल्पों के एवं पुनर्गठन विधेयक के प्रावधानों के तहत जम्मू-कश्मीर विधायिका वाला केंद्र शासित क्षेत्र बनेगा जबकि लद्दाख बिना विधायिका वाला केंद्र शासित क्षेत्र होगा। इन दोनों संकल्पों को साहसिक और जोखिमभरा माना जा रहा है।
दोनों संकल्पों और दोनों विधेयकों पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृहमंत्री शाह ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद सहित वहां की तमाम समस्याओं की जड़ करार दिया।
शाह ने जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा लिए जाने पर नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद द्वारा जताई गई चिंता का जिक्र करते हुए कहा कि जैसे ही स्थिति सामान्य होगी और उचित समय आएगा, हम जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दे देंगे। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर देश का 'मुकुट मणि' है और बना रहेगा।
गृहमंत्री ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और सभी प्रकार के सामाजिक अन्याय के लिए सिर्फ अनुच्छेद 370 को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि इसके हटने पर राज्य में विकास, अन्याय और आतंकवादी हिंसा सहित सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाएंगी तथा जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ सालों में 41,849 स्थानीय लोग आतंकवाद के रक्तपात की भेंट चढ़े।
उन्होंने कहा कि इस प्रावधान से सिर्फ 3 सियासतदान परिवारों का भला हुआ। इतना ही नहीं, राज्य में पर्यटन सहित अन्य क्षेत्र में कारोबार भी इन्हीं 3 परिवारों के इर्द-गिर्द ही सीमित रहा। इसके कारण न तो युवाओं को रोजगार मिला, न ही उद्यमशील बनने के अवसर मिल सके। नतीजतन राज्य की जनता को महंगाई का भी दंश झेलना पड़ रहा है। इन सभी समस्याओं के मुख्य कारण अनुच्छेद 370 और 35ए हैं।
अनुच्छेद 370 से जम्मू-कश्मीर की संस्कृति का संरक्षण होने की विपक्ष की दलील को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृति की बात करने वालों को सोचना चाहिए कि क्या भारत में महाराष्ट्र या गुजरात की संस्कृति नहीं बच पाई?
शाह ने कहा कि हम 70 साल तक अनुच्छेद 370 के साथ जिए। हमें 5 साल दीजिए, हम जम्मू-कश्मीर को देश का सबसे विकसित राज्य बनाकर दिखाएंगे। राज्य की समस्या के स्थायी समाधान में समय जरूर लगेगा लेकिन हमारी नजर में इसका रास्ता एक ही है और वह है- अनुच्छेद 370 से जम्मू-कश्मीर को मुक्ति दिलाना।
कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध किया। नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने जहां इसे जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ विश्वासघात करार दिया वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने सरकार को आगाह किया कि वे अनुच्छेद 370 को हटाकर उन ताकतों को हवा दे रहे हैं जिन्हें वे नियंत्रित नहीं कर पाएंगे।
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने विधेयक का विरोध करते हुए आज के दिन को काला सोमवार करार दिया और कहा कि यह विधेयक संविधान, संघवाद, संसद और लोकतंत्र के लिए काला दिन है।
हालांकि बीजू जनता दल, अन्नाद्रमुक, बहुजन समाज पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सरकार के इन कदमों का समर्थन किया। अनुच्छेद 370 समाप्त करने के संकल्प के विरोध में जनता दल (यू) और तृणमूल कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट किया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने पुनर्गठन संबंधी विधेयक पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
उच्च सदन में इन संकल्पों को गृहमंत्री द्वारा पेश किए जाने के समय कुछ देर बाद भारी हंगामा देखने को मिला। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सपा सहित कुछ विपक्षी दल के कई सदस्य विरोध जताते हुए आसन के समक्ष धरना देकर बैठ गए। हंगामे के बीच पीडीपी के 2 सदस्यों को उनके अप्रिय आचरण की वजह से मार्शलों की मदद से सदन से बाहर करने का आसन को आदेश देना पड़ा।
विरोध कर रहे पीडीपी के सदस्यों नजीर अहमद लवाय और मीर मोहम्मद फयाज ने अपनी अपनी बांह पर काली पट्टी बांध रखी थी। इन दोनों सदस्यों ने संकल्प की प्रतियां फाड़ीं और हवा में उछालीं। विरोध जाहिर करते हुए लवाय ने अपना कुर्ता फाड़ लिया। इस पर सभापति एम वेंकैया नायडू ने गहरी नाराजगी जाहिर की।
हंगामे के दौरान ही लवाय तथा फयाज ने संविधान की प्रतियां फाड़ीं। अन्य विपक्षी सदस्यों ने फयाज तथा लवाय को रोकने का प्रयास किया। इसके बाद सभापति एम. वेंकैया नायडू ने पीडीपी के इन दोनों सदस्यों को मार्शलों के जरिए सदन से बाहर निकालने का आदेश दिया। सभापति ने कहा कि भारत का संविधान सर्वोच्च है। इसके अपमान की इजाजत किसी को भी नहीं दी जा सकती। इसे फाड़ने का अधिकार किसी को भी नहीं है।