Pulwama Attack : खुफिया एजेंसियों की चेतावनियों से दहशत में लोग, स्थानीय युवक बन रहे हैं मानव बम
जम्मू। खुफिया एजेंसियों की मानव बमों के बारे में नई चेतावनी से सबसे अधिक दहशत का माहौल जम्मू-कश्मीर में है, जहां सुरक्षाबल अब तक कितने मानव बमों के हमलों को सहन कर चुके हैं अब किसी को याद नहीं है, लेकिन इसके प्रति चिंता जरूर है कि भविष्य में ऐसे हमलों की बाढ़ आने की शंका व्यक्त की जा रही है क्योंकि कड़वी सच्चाई यह है कि कश्मीर में तैनात सुरक्षाबल मानव बमों के हमलों से निपटने में पूरी तरह से अक्षम है।
अभी तक आत्मघाती हमलों से सांसत में फंसे हुए सुरक्षाबल उनसे निपटने के तरीकों को खोज नहीं पाए थे कि उन्हें मानव बमों के हमलों के रूप में नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। कश्मीर में जो सर्वप्रथम दो मानव बम हमले हुए थे, उनमें एक वर्ष 2000 की 25 दिसंबर को हुआ था। इसमें हमलावर मानव बम समेत 11 लोगों की मौत हो गई थी तो पहला भी इसी साल 19 अप्रैल को हुआ था। तब मानव बम अकेला ही मारा गया था। ताजा मानव बम हमला पुलवामा में 14 फरवरी को हुआ। इसमें 50 से अधिक सुरक्षाकर्मी मारे गए। इसे स्थानीय कश्मीरी ने अंजाम दिया।
मानव बम के हमलों से कश्मीर में दहशत कितनी है, इसी से स्पष्ट है कि कई बार सुरक्षाकर्मी आम नागरिक की जामा तलाशी लेते हुए हिचकिचा रहे हैं कि कहीं वह मानव बम न हो, तो राह चलते लोगों को एक-दूसरे से ठीक इसी प्रकार का भय लगने लगा है।
अब जबकि इन सालों में अनेक मानव बम हमले सेना के ठिकानों को उड़ाने के लिए हो चुके हैं, ऐसे में भविष्य में उनके हमले और अधिक बढ़ने की आशंका इसलिए भी है क्योंकि जैश-ए-मुहम्मद गुट ऐसे मानव बमों के हमलों की झड़ी लगाने की बात कर रहा है।
अधिकारी इंकार नहीं करते कि आने वाले दिनों में मानव बमों के हमलों में वृद्धि हो सकती है क्योंकि आतंकी गुटों ने अब उन्होंने स्थानीय युवकों को भी इसके लिए तैयार करना आरंभ किया है।
मानव बमों से बचाव का साधन, जरिया और रास्ता सुरक्षाबल अभी तक तलाश नहीं कर पाए हैं। शहरों, कस्बों आदि में घूमने वाले आतंकियों में से कौन मानव बम के रूप में प्रशिक्षित होगा, कहा नहीं जा सकता। मानव बमों को तलाश करने की कठिनाई इसलिए आती है, क्योंकि आतंकियों द्वारा मानव बमों के लिए आरडीएक्स के स्थान पर टीएनटी विस्फोटक का इस्तेमाल किया जाने लगा है, जो मेटल डिटेक्टर की पकड़ में नहीं आता है।