आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि वास्तव में ज्वालामुखी एक ऐसा पहाड़ होता है जिसके नीचे पिघले हुए लावा का भंडार होता है। जब पृथ्वी के नीचे ऊर्जा या जियोथर्मल एनर्जी से पत्थर पिघलते हैं तब जमीन के नीचे से ऊपर की ओर दबाव बढ़ता है तो यह पहाड़ ऊपर से फटता है और ज्वालामुखी कहलाता है।
ज्वालामुखी के नीचे पिघले हुए पत्थरों और गैसों को मैग्मा कहते हैं और ज्वालामुखी के फटने के बाद जब यह मैग्मा निकलता है तो इसे लावा कहा जाता है।
ज्वालामुखी के फटने से बड़ी मात्रा में गैस और पत्थर ऊपर की ओर निकलते हैं। इस कारण से जहां ज्वालामुखी के फटने से लावा बहता है तो साथ ही गर्म राख भी हवा के साथ बाहर आती है। उल्लेखनीय है कि जमीन के नीचे हलचल मचने से भूस्खलन और बाढ़ भी आती है।
ज्वालामुखी से निकलने वाली राख में पत्थर के छोटे छोटे कण पाए जाते हैं और इनसे मनुष्यों, पशु पछियों को चोट पहुंच सकती है और यह कांच जैसे होते हैं। बूढ़े लोगों और बच्चों के फेंफड़ों को बहुत अधिक नुकसान पहुंच सकता है।
ज्वालामुखी के लावा से बने पृथ्वी और समुद्र : वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी की सतह का 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा ज्वालामुखियों के फटने का परिणाम है। इनसे निकला लावा करोड़ों साल पहले जम गया होगा और इससे जमीन की सतह बनी। इतना ही नहीं, समुद्र तल और कई पहाड़ भी ज्वालामुखी के लावा की देन हैं। ज्वालामुखी से निकली गैसों से वायुमंडल की रचना हुई।
फिलहाल दुनिया भर में 500 से ज्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हैं। इनमें से आधे से ज्यादा रिंग ऑफ फायर का हिस्सा हैं। यह प्रशांत महासागर के चारों ओर ज्वालामुखियों के हार जैसा है इसलिए इसे रिंग ऑफ फायर कहते हैं।
ज्वालामुखियों की होती है पूजा : कई देशों में ज्वालामुखियों की पूजा करते हैं। यूनानी सभ्यता में हेफाइस्टोस अग्नि और हस्तकला के भगवान थे। अमेरिकी प्रांत हवाई के रहने वाले पेले की पूजा करते हैं जिन्हें ज्वालामुखियों की देवी समझा जाता है। हवाई में दुनिया के सबसे सक्रिय ज्वालामुखी हैं और इनमें से सबसे खतरनाक हैं मौना किया और मौना लोआ। विदित हो कि कुछ दिन पहले ही हवाई को मौना लोआ ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ है।
वर्ष 1982 में ज्वालामुखी की तीव्रता मापने के लिए शून्य से आठ के स्केल वाला वीईआई इंडेक्स बनाया गया। शून्य से दो के स्कोर वाले रोजाना फटने वाले ज्वालामुखी होते हैं लेकिन तीसरी श्रेणी के ज्वालामुखी का फटना घातक होता है और यह हर साल होते हैं लेकिन चार और पांच की श्रेणी के ज्वालामुखी एक दशक या सदी में एक बार फटते हैं और इनका लावा 25 किलोमीटर तक ऊंचा हो सकता हैं। छह और सात की श्रेणी वाले ज्वालामुखियों से सुनामी आती है या भूकंप आता है। आठवीं श्रेणी के कम ही ज्वालामुखी हैं और ऐसे ज्वालामुखी में पिछला विस्फोट ईसा से 24,000 बरस पहले हुआ था।
तीन प्रकार के ज्वालामुखी : ज्वालामुखी भी तीन प्रकार के पाए जाते हैं और इनमें से पहली तरह का ज्वालामुखी एक खोखली पहाड़ी जैसा होता है जिससे लावा निकलता है। दूसरे तरह के ज्वालामुखी ऊंचे पर्वत होते हैं और इनमें कई सुरंगें होती हैं जिनसे लावा निकलता है। तीसरी तरह के ज्वालामुखी अमेरिका के हवाई प्रांत में पाए जाते हैं।
यह समतल पहाड़ियों जैसे भी हो सकते हैं। जबकि चौथी तरह के ज्वालामुखी को लावा डोम कहते हैं। वास्तव में, यह एक जगह पर जमा हुआ लावा होता है जो वक्त के साथ ठंडा पड़ जाता है, लेकिन कई बार ऐसे डोम फट भी जाते हैं। ज्वालामुखियों के फटने की प्रक्रिया दुनिया भर में चलती रहती है।
...तब मारे गए थे 36 हजार लोग : आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस रिपोर्ट के पढ़ने के दौरान ही दुनिया में 20 ज्वालामुखी फट चुके होंगे। हवाई का क्राकातोआ ज्वालामुखी सबसे खतरनाक ज्वालामुखियों में माना जाता है और वर्ष 1883 में इसके फटने से सुनामी आई थी जिसमें 36,000 लोग मारे गए। ईस्वी सन 79 में विसुवियस ज्वालामुखी के फटने से 16,000 लोग मारे गए थे। 1902 में मार्टिनीक में ज्वालामुखी फटने से 30,000 लोग मारे गए थे।
एक बार आइसलैंड में ज्वालामुखी के फटने से पूरे यूरोप में राख के बादल छा गए थे और हवाई जहाजों को उड़ने से रोक दिया गया था। जबकि 2010 में इंडोनेशिया के मेरापी ज्वालामुखी के फटने से हजारों लोगों की जानें गई थीं।