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Last Modified: रविवार, 5 जुलाई 2020 (18:04 IST)

ग्लोबल वार्मिंग के चलते श्रावण पूर्णिमा से पहले ही पिघल जाता है हिमलिंग

ग्लोबल वार्मिंग के चलते श्रावण पूर्णिमा से पहले ही पिघल जाता है हिमलिंग - Himmling melting before the full moon due to global warming
जम्मू। ग्लोबल वार्मिंग ने 14500 फुट की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा में बनने वाले हिमलिंग के अस्तित्व के लिए इस बार भी खतरा बढ़ा दिया है क्योंकि इससे हिमलिंग के वक्त से पहले गायब होने की आशंका है। कई सालों से ऐसा देखने को मिल चुका है कि श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग से हिमलिंग समय से पहले लुप्त हो गए।

इस बार कोरोनावायरस (Coronavirus) के चलते यात्रा सिर्फ प्रतीकात्मक तौर पर ही संपन्न होने जा रही है। इसे 21 जुलाई के दिन से 14 दिनों के लिए संपन्न करवाया जाएगा जिसमें कुल 7 हजार लोगों को शिरकत करने की इजाजत दी गई है। लेकिन दर्शनार्थ जाने वालों के लिए निराशा की बात यह हो सकती है कि शायद ही उन्हें यात्रा के प्रतीक हिमलिंग के दर्शन हो पाएं। ऐसा इसलिए क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमलिंग इस बार भी तेजी से पिघल रहा है।

यात्रा की तैयारियों से जुड़े अधिकारियों के बकौल, करीब एक माह पहले अनलाक 1.0 शुरू होने से पूर्व हिमलिंग अपने पूरे आकार में था। यह करीब 20 से 22 फुट का था। और अब इसकी ऊंचाई 11 से 12 फुट के बीच रह गई है। उनके मुताबिक, यह अब तेजी से पिघल रहा है।

हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है कि हिमलिंग तेजी से पिघल रहा हो बल्कि पिछले कई सालों से यह देखने को मिल रहा है हिमलिंग यात्रा के आरंभ होने के कुछ ही दिनों के उपरांत पूरी तरह से पिघल जाता रहा है। हालांकि तब इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग के साथ साथ उन लाखों भक्तों की सांसें भी जिम्मेदार होती थीं जो दर्शनार्थ गुफा तक पहुंचते थे।

विशेषज्ञों के मुताबिक अमरनाथ ग्लेशियरों से घिरा है। ऐसे में अक्सर वहां ज्यादा लोगों के वहां पहुंचने से तापमान के बढ़ने की आशंका बनी रहती है। जिससे ग्लेशियर जल्दी पिघलते हैं। साल 2016 में भी भक्तों की ज्यादा भीड़ के अमरनाथ पहुंचने से हिमलिंग तेजी से पिघल गया था। आंकड़ों के मुताबिक उस वर्ष यात्रा के महज 10 दिन में ही हिमलिंग पिघलकर डेढ़ फीट के रह गए थे।

तब तक महज 40 हजार भक्तों ने ही दर्शन किए थे। साल 2016 में प्राकृतिक बर्फ से बनने वाला हिमलिंग 10 फीट का था। जो अमरनाथ यात्रा के शुरूआती सप्ताह में ही आधे से ज्यादा पिघल गया था। ऐसे में यात्रा के शेष 15 दिनों में दर्शन करने वाले श्रद्धालु हिमलिंग के साक्षात दर्शन नहीं कर सके थे।

साल 2013 में भी अमरनाथ यात्रा के दौरान हिमलिंग की ऊंचाई कम थी। उस वर्ष हिमलिंग महज 14 फुट के थे। लगातार बढ़ते तापमान के चलते वे अमरनाथ यात्रा के पूरे होने से पहले ही अंतरध्यान हो गए थे। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार साल 2013 में हिमलिंग के तेजी से पिघलने का कारण तापमान में वृद्धि था। उस वक्त पारा 34 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया था।
साल 2018 में भी बाबा बर्फानी के तेजी से पिघलने का सिलसिला जारी रहा था। 28 जून से शुरू हुई 60 दिवसीय इस यात्रा में एक महीने बीतने पर करीब दो लाख 30 हजार यात्रियों ने दर्शन किए थे। मगर इसके बाद दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं का बाबा बर्फानी के साक्षात दर्शन नहीं हुए। बाबा दर्शन देने से पहले ही अंतर्ध्‍यान हो गए थे, पर इस बार भक्त तो नदारद हैं, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग अपना रूप जरूर दिखा रही है।
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