मंगलवार, 17 सितम्बर 2024
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Written By सुरेश एस डुग्गर

हाफिज सईद की रिहाई से कश्मीर में चिंता

हाफिज सईद की रिहाई से कश्मीर में चिंता | Hafiz Saeed
श्रीनगर। विश्व कुख्यात आतंकवादी संगठन लश्करे तैयबा अर्थात खुदा की सेना के संस्थापक दल जमात-उद-दावा के प्रमुख मोहम्मद हाफिज सईद को पाक सरकार ने कुछ महीनों की नजरबंदी के बाद रिहा कर दिया है। पड़ोसी मुल्क में किसी संगठन के नेता की गिरफ्तारी या फिर रिहाई की खबर से किसी को कुछ लेना देना नहीं होता है। मगर हाफिज की रिहाई कश्मीर में तैनात सुरक्षाधिकारियों की चिंता का विषय है।
 
जमात-उद-दावा के प्रमुख सईद की रिहाई कश्मीर में तैनात सुरक्षाधिकारियों की चिंता का विषय होना कुछ मायने रखता है। ऐसा भी नहीं है कि वे ऐसे ही चिंता में डूब गए हैं बल्कि उनकी चिंता और परेशानी के ठोस कारण हैं। यह कारण है कि उसकी रिहाई के बाद कश्मीर में आतंकवाद बढ़ेगा यही चिंता है।
 
असल में कश्मीर में जो विदेशी आतंकी गुट सक्रिय हैं उनमें लश्करे तैयबा प्रमुख है और वह जमात-उद-दावा का ही हिस्सा है। विदेशी आंतकियों में से 80 प्रतिशत सदस्य लश्कर से ही संबंध रखते हैं। जबकि चौंकाने वाली बात यह है कि पाकिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर और कश्मीर में सक्रिय अल-कायदा तथा तालिबान के सदस्यों का संबंध भी लश्करे तैयबा से ही है। 
 
लश्करे तैयबा का अर्थ होता है खुदा की सेना। जहां मक्का और मदीना स्थित हैं उस शहर का नाम तैयबा है और यह आतंकी अपना संबंध उस शहर से बताते हैं। जानकारों के मुताबिक, लश्कर के सदस्य सारी दुनिया में फैले हुए हैं जबकि अमेरिका द्वारा इन्हें प्रतिबंधित संगठन भी घोषित किया जा चुका है। अमेरिकी प्रतिबंध के बाद ही उसके संस्थापक हाफिज हाफिज को वर्ष 2001 और 2002 में भी नजरबंद किया गया था, जबकि अब 8 महीनों की नजरबंदी के बाद उसे बुधवार को ही रिहा किया गया है।
 
हाफिज की रिहाई को भारतीय अधिकारी गंभीरता के साथ ही चिंता के रूप में ले रहे हैं। उनकी चिंता सही भी है। वर्ष 2001 में 13 दिसंबर को भारतीय संसद तथा उससे पूर्व प्रथम अक्टूबर को कश्मीर में विधानसभा की इमारत पर होने वाले भीषण आत्मघाती हमलों के पीछे लश्कर का हाथ था तो साथ ही इन दो हमलों की संरचना करने के पीछे उसके संस्थापक प्रमुख मुहम्मद हाफिज का दिमाग था।
 
वैसे लश्कर कश्मीर में मात्र एक ही हमले के लिए जिम्मेदार नहीं है। बल्कि उसके खाते में जितने हमले और मौतें दर्ज हैं शायद ही किसी अन्य संगठन के खाते में इतना कुछ हो। यही कारण है कि लश्करे तैयबा को कट्टर और खतनारक आतंकवादी संगठनों की श्रेणी में रखा जाता है।
 
हालांकि अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित कर दिए जाने के बाद लश्कर सीधे रूप में भारत में आतंकी हमलों में शामिल नहीं है लेकिन वह छोटे छोटे दलों के नाम पर कार्रवाईयां कर रहा है। यही कारण है कि पहलगाम में अमरनाथ यात्रियों की हत्या, कालूचक में 35 लोगों के नरसंहार तथा फिर जम्मू की राजीवनगर बस्ती में 30 लोगों के नरसंहार के लिए जिस अल मंसूर नामक आतंकी गुट को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है वह कोई और नहीं बल्कि लश्कर ही है, जो अलग अलग नामों से अपनी गतिविधियों का संचालन कर रहा है।
 
अब जबकि लश्करे तैयबा या फिर जमात-उद-दावा प्रमुख की रिहाई हो गई है। अधिकारियों की चिंता है कि नए गुटों का पदार्पण कश्मीर में हो सकता है जिनमें आईएसआईएस, अल-कायदा तथा तालिबान के सदस्य होंगे। असल में लश्कर तथा अल-कायदा व तालिबान गठजोड़ कोई नई बात नहीं है परंतु अफगानिस्तान में तालिबान के पतन के बाद उनका रूख जबसे कश्मीर की ओर हुआ है लश्कर ही उसे सहारा दे रहा है।
 
अगर अधिकारियों पर विश्वास करें तो सईद की रिहाई भारत के लिए भारी साबित हो सकती है, जिसे संसद और कश्मीर विधानसभा पर होने वाले हमलों की पुनरावृत्ति के दौर से गुजरना पड़ सकता है। हालांकि सुरक्षा प्रबंध चाक चौबंद करने की बात तो की जाती है, मगर इन उपायों से अधिकारी आप भी सुनिश्चित नहीं हैं।