(सहमति- असहमति के साथ यह सम्मान अक्सर अपनी पारदर्शिता को लेकर विवाद में रहा है)
साल की सबसे श्रेष्ठ कविता को दिया जाने वाला भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार विवाद की वजह से एक बार फिर से सुर्खियों में है। इस बार यह कवयित्री अनामिका अनु को दिया गया। कविता का चयन अशोक वाजपेयी ने किया।
पुरस्कार के मैकेनिज्म, उसकी पारदर्शिता और चयन प्रक्रिया को लेकर साहित्य जगत में कवि और लेखकों के बीच बहस जारी है। कोई सहमत है, किसी ने असहमति जाहिर की है। ज्यादातर असहमति ही सामने आई है। ऐसे में इतना तो कहना ही बनता है कि अग्रज कवि और लेखकों के लिए इन सवालों की समीक्षा करने का वक्त आ गया है। हालांकि इस पर कोई समीक्षा होगी नहीं, यह अलग बात है।
वेबदुनिया ने इस विवाद को ठीक से समझने के लिए कुछ अग्रणी कवि और लेखकों से चर्चा की। आइए पढ़ते हैं, वे इस पर क्या कहते हैं।
प्रसिद्ध कहानीकार
उदय प्रकाश ने पुरस्कार की घोषणा के बाद अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा-
सैय्यद हैदर रज़ा, भारत भूषण अग्रवाल, बिंदु अग्रवाल जी की स्मृतियों को नमन!
जाहिर है यह पुरस्कार को लेकर उनका सटायर है।
इनकी खुद की सोच प्रक्रिया सेक्सिस्ट है
स्त्रीकाल के संपादक
संजीव चंदन का कहना है कि यह बहुत अच्छी बात है कि इस बार महिला को मिला है, अब तक 40 लोगों में यह छठी महिला हैं, जिन्हें यह पुरस्कार मिला है। लेकिन जिस कविता को चुना गया वो ठीक नहीं है, खुद अनामिका अनु के पास इससे अच्छी कविताएं हैं। आखिर क्या मजबूरी थी कि ऐसी कविता को आपने चुना।
दरअसल, कविता का इंटरप्रिटेशन भी गलत किया गया है, कि वो एक विधवा महिला का एकांत है। बटन के जरिए यादों का संजो रही है, हो सकता है उसका पति बाहर गया हो, छोड़कर गया हो, तलाक हुआ हो। ऐसे में अशोक वाजपेयी जैसे बड़े कवि द्वारा यह किया जाना दुखद है।
संजीव आगे कहते हैं कि दरअसल, इनके पास जेंडर की ट्रेनिंग नहीं है, इनकी खुद की सोच प्रक्रिया सेक्सिस्ट है, इस कारण यह सब हो जाता है। सबसे खतरनाक तो यह है कि आपने नियम तोड़ा। 35 साल की उम्र सीमा थी, जिसे बढ़ाकर 40 कर दी। अगर कोई एक्सट्राऑर्डिनरी कविता होती और तब हम दायरों से बाहर जाकर नियम बदलते तो अच्छा होता।
दलित और स्त्री रचनाकर्म को चिन्हित करने के लिए कई बार आप कई नियमों तो तोड़ सकते हैं, लेकिन जब ऐसे दौर में स्त्री लेखन और दलित लेखन में भी सशक्त रचनाएं हो रही हैं। ऐसे में आप एक कमजोर रचना को पुरस्कृत कर रहे हैं तो पॉलिटिकली आप इन दोनों लेखन को नकार रहे हैं, इसका उपहास उड़ा रहे हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि अब कविता को नहीं किताबों को पुरस्कार दिया जाएगा। यानी एक ऐसी महान कविता पाली गई कि अब उसके बाद कोई कविता आएगी ही नहीं। तो कुल मिलाकर इस बात का असंतोष तो है।
अब इस पुरस्कार में कोई दिलचस्पी भी नहीं रही
कवि और लेखक आशुतोष दुबे का कहना है- जिसे पुरस्कृत किया गया उसका इसमें कोई दोष नहीं, लेकिन वो निशाने पर आ जाता है, उसकी रचना निशाने पर ले ली जाती है। जहां तक भारत भूषण पुरस्कार की बात है तो यह युवा काव्य प्रतिभा को रेखांकित करने के मकसद से शुरू किया गया था। शुरुआत में इसकी बहुत प्रतिष्ठा भी रही। जिसे भारत भूषण सम्मान मिला उसे आगे चलकर साहित्य अकादमी अवार्ड भी मिला, जैसे अरुण कमल।
इसमें यह पता नहीं चलता कि निर्णायक के सामने कौन सी कविताएँ रहीं जिन्होंने उसे इस चयन तक पहुँचाया। प्रकाशन का माध्यम अब सिर्फ़ प्रिंट नहीं रहा है। फेसबुक पर कई नए लेखक अच्छा और असरदार लेखन कर रहे हैं। हालांकि नई ज्यूरी में अरुण देव हैं, जो नए लोगों को पढ़ते हैं और एप्रोच भी करते हैं। दरअसल भारत भूषण पुरस्कार या नवलेखन के लिए किसी भी पुरस्कार की ज्यूरी में शामिल साहित्यकार नई पीढ़ी के लेखन को कितना पढ़ते हैं और कितना अपनी रुचि और दृष्टि में सीमित रह जाते हैं, कितना वे दूसरों की राय पर निर्भर करते हैं और कितना वे खुद राय बना पाने का समय निकाल सकते हैं: यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है।
वैसे तो बहुत समय से इस पुरस्कार की प्रतिष्ठा क्षीण होती चली गई है और अब इसमें कोई दिलचस्पी भी शायद ही लेता हो, मगर जो लोग नवीनतम पुरस्कार को लेकर खेद सहित आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं उन्हें जानना चाहिए कि इसकी मूल ज्यूरी ने भी कुछ बहुत साधारण कविताओं का अभिषेक किया था और इस पुरस्कार के प्रति छाई उदासीनता का इस तरह पथ प्रशस्त किया था। यह वही बोया हुआ है जो अब लहलहा रहा है।अब चूँकि यह पुस्तक केंद्रित होने जा रहा है तो ये आशंकाएं भी अपनी जगह हैं कि निर्णायक का नाम तय होते ही लोग संभावित पुरस्कृत के नाम का भी यथासम्भव सही अनुमान लगा लेंगे।
मंगलेश डबराल को यह पुरस्कार नहीं मिल पाया
कवि-लेखक
विनोद भारद्वाज का कहना है-- भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार 40 सालों से हिंदी कविता का सबसे चर्चित पुरस्कार बना हुआ है। शुरुआत 500 रुपए की धनराशि से हुई थी पर ज्यूरी के बड़े नाम देखकर यह धनराशि बहुत बड़ी लगती थी।
नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, नेमिचंद्र जैन, अशोक वाजपेयी और विष्णु खरे बारी-बारी से हर साल निर्णायक थे। इन सब के हस्ताक्षरों से जब मुझे 5 साल बाद यह पुरस्कार मिला था तो उस सर्टिफ़िकेट का आत्मीय महत्व था। तब सोशल मीडिया नहीं था, इसलिए पुरस्कृत कविता की व्यापक चीर-फाड़ नहीं हो पाती थी। कई अच्छे कवियों को यह पुरस्कार नहीं मिल पाया, मिसाल के लिए मंगलेश डबराल को यह पुरस्कार नहीं मिला। और भी नाम गिनाए जा सकते हैं। अब उम्र की सीमा को 35 से 40 कर दिया गया है और एक कविता नहीं, पहले कविता संग्रह को पुरस्कृत किया जाएगा।
आज 40 से कम उम्र के कई कवियों के 1 या 2 संग्रह आ चुके हैं। वीरू सोनकर, बाबूषा कोहली, रश्मि भारद्वाज, अविनाश मिश्र, जोशना बेनर्जी आडवानी... सूची लंबी है। उम्र सीमा 30 हो तो पहले संग्रह की बात समझ में आती है। 40 की सीमा में कोई भी नया संग्रह हो सकता है, पहला ही क्यूं। और कोई भी निर्णय सब को शायद ही पसंद आए। पुरस्कारों की राजनीति भी रहेगी ही। पर निर्णायक अगर एक अनुभवी नाम है, तो इतना क्या काफी नहीं है।
निरंतर गिर रही पुरस्कार की साख
लेखक
कृष्ण कल्पित का कहना है--- कॉरपोरेट की तर्ज़ पर रज़ा फाउंडेशन ने अब भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार का पूर्ण अधिग्रहण कर लिया है।
नटरंग फॉउंडेशन और कृष्णा सोबती निधि का संचालन पहले से ही रज़ा फाउंडेशन के पास है। अशोक वाजपेयी का कॉरपोरेट प्रेम कोई छुपा हुआ नहीं है। वे पिछले बीस बरसों से देश के कॉरपोरेट-सेक्टर से कला-संस्कृति में पैसा लगाने की बेशर्मी से गुहार लगाते दिखाई पड़ रहे हैं।
इस बार भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार 38 वर्षीय कवयित्री अनामिका अनु को देने की घोषणा की है, जबकि इस पुरस्कार के लिए 35 वर्ष की आयु निर्धारित थी। जब यही करना था तो कुछ बरस पहले 38 वर्षीय कवि को घोषित पुरस्कार वापस लेकर प्रकाश जैसे संवेदनशील कवि-आलोचक को आत्महत्या के लिए क्यों मज़बूर किया गया?
इस बार से भाभू पुरस्कार के नियम बदल दिए गए हैं। अब यह पुरस्कार कवि की प्रथम कृति को दिया जाएगा और उम्र भी 40 वर्ष कर दी गई है। आगामी 5 वर्ष के निर्णायक भी पुरस्कार-नियंता अशोक वाजपेयी ने बदल दिए हैं।
एक बार एक मुलाक़ात में अशोक वाजपेयी ने बताया था कि उनका प्रथम कविता-संग्रह 'शहर अब भी संभावना है' 25 वर्ष की उम्र में छप गया था और उन्होंने अपनी सुहागरात में पत्नी को अपना पहला संग्रह भेंट किया था। यह वह ज़माना था जब अच्छे अच्छे कवियों के संकलन मुश्किल से छपते थे। मुक्तिबोध का तो जीते-जी कविता-संग्रह प्रकाशित ही नहीं हुआ और शमशेर का पहला कविता-संग्रह 50 की उम्र के आसपास छपा।
अब तो लगता है कवि-लोग अपना पहला संग्रह जन्म से ही साथ लाते हैं। 40 तक तो चार-पांच संग्रह प्रकाशित हो जाते हैं। ध्यान रहे कि मायकोवस्की ने अपना कवि कर्म करने के बाद 37 वर्ष में आत्महत्या कर ली थी।
भाभू पुरस्कार की साख पिछले वर्षों में निरंतर गिरती रही है। इस बार तो जैसे लोगों ने इसका नोटिस ही नहीं लिया। ऐसे में पुरस्कार की उम्र 35 से बढ़ाकर 40 करने का कोई औचित्य समझ नहीं आता। पिछले वर्ष मैंने लिखा था कि इसकी उम्र घटाकर 30 कर देनी चाहिए क्योंकि 30 वर्ष तक कवि का निर्माण हो जाता है।
अनामिका अनु की जिस कविता को पुरस्कार के लिए चुना गया है वह संवेदना में डूबी पर इकहरी और साधारण कविता है। अभी हिन्दी भाषा में इतने उत्कृष्ट युवा-कवि सक्रिय हैं कि मेरा मन नहीं मानता कि यह कविता 2019 की सर्वश्रेष्ठ कविता होगी।
पुरस्कृत कविता एक स्त्री के अकेलेपन की वेदना की कविता है, जिसे वह काज-बटनों से खेलते हुए काटती है। इस कविता में स्त्री का जो अकेलापन है उसे निर्णायक ने वैधव्य में बदल दिया है जिसका कविता में कोई स्पष्ट संकेत नहीं है। वैधव्य के अतिरिक्त भी अकेलेपन के बहुत सारे कारण होते हैं। कविता को इस तरह विश्लेषित करना मूर्खता और मुग्धता की पराकाष्ठा है।
इस बार नहीं लिखना चाहता था, लेकिन लिखना पड़ा क्योंकि लोग इस बारे में मेरी राय पूछ रहे थे। राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में लिखा है कि किसी भी कविता और कवि के बारे में बिना पूछे राय नहीं देनी चाहिए। मुझसे पूछा गया इसलिए यह लिखा। क्षमा!
क्या है भारत भूषण पुरस्कार?
भारत भूषण एक वार्षिक पुरस्कार है, जिसे सरकार या साहित्यिक-ग़ैर-साहित्यिक संस्थान प्रयोजित नहीं करते हैं, इसकी राशि (21 हजार रुपए) भी कोई बहुत लुभाने वाली नहीं है। यह अब 35 साल की आयु से कम के किसी कवि की सिर्फ़ एक कविता पर दिया जाता रहा है और इसका निर्णय पांच लेखक प्रति वर्ष बारी-बारी से स्वतंत्र रूप से करते हैं। यह पुरस्कार 1980 से लगातार दिया जा रहा है और अब इसे करीब 40 साल हो गए हैं। यह कवि भारत भूषण अग्रवाल की स्मृति में दिया जाने वाला कविता पुरस्कार है।