प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने एक संबोधन में कहा कि हम केवल शिलान्यास ही नहीं करते, बल्कि उद्घाटन भी करते हैं। उनके इस बयान में सच्चाई भी है। वे जो भी घोषणाएं करते हैं, उन घोषणाओं की क्रियान्विती पर भी उनका ध्यान केंद्रित रहता है। लाल किले की प्राचीर से दिए गए संबोधन में उन्होंने 1,000 दिनों के भीतर देश के हर गांव में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया था।
सोमवार को उन्होंने 'प्रधानमंत्री सहज हर घर बिजली' यानी 'सौभाग्य' योजना का शुभारंभ करते हुए 2019 तक हर घर में बिजली पहुंचाने के अपने संकल्प को दोहराया है। लेकिन क्या मार्च 2019 तक गांव-गांव और घर-घर बिजली पहुंच पाएगी? क्योंकि आज भी 4 करोड़ से ज्यादा घरों में बिजली नहीं है। लक्ष्य बड़ा है और संकल्प भी बलवान है। 'उज्ज्वला' के बाद घर-घर में उजाला हो तो अंधेरे में जीने को अभिशप्त करोड़ों गरीब लोगों की जिंदगी बदल जाएगी। 7 दशक बाद एक वास्तविक उजाला होगा, जो लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत करेगा।
प्रगति का महत्वपूर्ण पायदान है हर घर तक मूलभूत जरूरतों का पहुंचना। वही सरकार आदर्श सरकार है, जो इस दृष्टि से जागरूक होती है। इस मायने में मोदी और उनकी सरकार के प्रयास सराहनीय हैं। पहले गरीबों को मुफ्त गैस वितरण के लिए 'उज्ज्वला' योजना का आगाज किया और अब उजाला बांटने के लिए 'सौभाग्य' की शुरुआत हुई है।
इस तरह की योजनाओं पर वोट बैंक को हथियाने और गरीब मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने का आरोप लगना सहज है। लेकिन यदि गरीब के घर में उजाला होता है तो इससे निश्चित ही राष्ट्रीय चरित्र भी चमकेगा।
यह तभी संभव है जबकि संकल्प से सिद्धि तक की यात्रा करते हुए भ्रष्टाचार, अकुशलता, प्रदूषण, भीड़तंत्र, गरीबी के सन्नाटे का कोई विकल्प ढूंढ ले। यह सब लंबे समय तक त्याग, परिश्रम और संघर्ष से ही संभव है। ऐसा कोई भी व्यक्ति या सरकार करती है तो वह प्रणम्य है, स्वीकार्य है और जनआकांक्षाओं की पूर्ति का मार्ग है। इस तरह की सकारात्मक घटनाओं से वोट बैंक भी बढ़ता है या बनता है तो वह लोकतंत्र को मजबूत करने का ही सशक्त माध्यम हैं।
विपक्ष भले ही इस योजना को 'चुनावी योजना' कहकर आलोचना करे और कहे कि यह योजना 2019 के आम चुनावों से पहले लाकर मोदी सरकार 4 करोड़ गरीब परिवारों को सीधे अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही है। लेकिन अगर इस योजना से करोड़ों परिवारों को बिजली का कनेक्शन मुफ्त में मिले, हर परिवार को 5 एलईडी बल्ब, 1 बैट्री और 1 पंखा मिल जाए जिसमें उनका जीवन सहज हो जाए तो इससे बेहतर क्या होगा? इस योजना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सरकार खुद गरीब के घर पहुंचेगी और मुफ्त में कनेक्शन देगी।
अब लोगों को सरकारी बाबुओं और पंचायत के मुखिया के दरवाजे पर चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे, फिर भी ऐसी योजनाओं के साथ अनेक विसंगतियां एवं विषमताएं जुड़ ही जाती हैं। तमाम तरह की कोशिशों एवं जागरूकताओं के बावजूद भ्रष्टाचार एवं घपलेबाजी इन योजनाओं को सफल नहीं होने देती। घरों में बिजली उतरने की बजाय कागजों में ही उतरकर रह जाती है। घटिया माल द्वारा कोरी खानापूर्ति होकर रह जाती है, जैसा कि गांवों में शौचालय बनाने में काफी घपलेबाजी हुई है। सरपंचों ने अपने लिए शौचालय महंगे पत्थरों से बनवाए जबकि दूसरों के लिए शौचालय ऐसे बनवाए, जो हल्का-सा धक्का लगने से ही धराशायी हो जाए। कई जगह तो केवल कागजों में ही शौचालय बनाए गए, क्योंकि निगरानी नहीं रखी गई।
'सौभाग्य' योजना को सफल बनाने के लिए निगरानी तंत्र का मजबूत होना जरूरी है ताकि कोई घपलेबाजी नहीं हो सके। सरकार की योजनाओं को ठीक से लागू करने की चुनौती बहुत बड़ी है, क्योंकि स्वार्थसिद्धि एवं नफा-नुकसान का गणित अभी भी निचले स्तर पर छाया हुआ है। सोच का मापदंड मूल्यों से हटकर निजी हितों पर जब तक ठहरा रहेगा, ऐसी योजनाओं की सफलता भी संदिग्ध बनी रहेगी।
विलियम शेक्सपीयर ने कहा था कि 'दुर्बलता, तेरा नाम स्त्री है', पर आज अगर शेक्सपीयर होते तो इस परिप्रेक्ष्य में कहते 'दुर्बलता, तेरा नाम भारतीय जनता है।' मोदी रोशनी बांटने के साथ-साथ इस दुर्बलता को भी समाप्त करने का कोई प्रभावी उपक्रम करें। एक उजाला चरित्र एवं नैतिकता का भी फैले।
सबके पास बांटने को रोशनी के टुकड़े हैं, पर अब तक ये टुकड़े मिलकर एक लौ में नहीं बदल सके, जो कि नया आलोक दे सकें। 'सौभाग्य' एक ऐसी लौ बन रही है तो यह वर्तमान नेतृत्व की सफलता एवं प्रामाणिकता का द्योतक है। इस तरह समाज में नेतृत्व के मिथकों के अनेक स्तर सक्रिय हैं। कुछ लोगों ने लुटेरे तत्वों के पीछे-पीछे चलने में ही एक सुख मान रखा है तथाकथित राजनीति के धुरंधर ऐसा ही करते रहे हैं।
आधुनिक युग में नैतिकता जितनी जरूरी मूल्य हो गई है उसके चरितार्थ होने की संभावनाओं को उतना ही कठिन कर दिया गया है। ऐसा लगता है मानो ऐसे तत्व पूरी तरह छा गए हैं। खाओ, पीओ, मौज करो। सब कुछ हमारा है। हम ही सभी चीजों के मापदंड हैं। हमें लूटपाट करने का पूरा अधिकार है। हम समाज व राष्ट्र में संतुलन व संयम नहीं रहने देंगे। यही आधुनिक सभ्यता का घोषणा पत्र है जिस पर लगता है कि हम सभी ने हस्ताक्षर किए हैं।
लेकिन इन सबके बावजूद सुधार की अवधारणा अभी संदिग्ध नहीं हुई है। आशा है कि हम इसी रास्ते पर चलते हुए इसकी विकृतियों से छुटकारा पा लेंगे। दुनिया को संपूर्ण क्रांति की नहीं, सतत क्रांति की आवश्यकता है। शायद ऐसी ही स्थितियों का वर्णन करने के लिए 'आशा के विरुद्ध' (होप अगेंस्ट होप) की सूक्ति बनाई गई है। मोदी ऐसी ही सतत क्रांति के पहरुए हैं, प्रेरणास्रोत हैं।
'सौभाग्य' योजना देश की ऊर्जा क्रांति का प्रतीक है। अब बिजली संकट नहीं, बिजली सरप्लस की खबरें आपको सुनने को मिलेंगी। पं. दीनदयाल उपाध्याय के जन्म शताब्दी वर्ष में देश को ऊर्जा से जगमग रोशन राष्ट्र की परिकल्पना का सपना दिया गया है।
नए भारत को निर्मित करने के संकल्प के साथ आगे बढ़ने के लिए उजाला तो प्राथमिक आवश्यकता है। अगर घर में ही बिजली नहीं हो तो फिर विकास का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। अब तक विकास के इस स्वरूप से वंचित रहे परिवारों एवं गांवों का जीवन सचमुच विडंबनापूर्ण रहा है।
वर्तमान पीढ़ी को इस बात का अहसास तक नहीं होगा कि उनकी पुरानी पीढ़ियों ने अभूतपूर्व बिजली संकट को झेला है। एक बल्ब के सहारे पूरा परिवार जीता था विलासिता के उत्पाद भी नहीं थे। शाम ढलते ही परिवार रात्रि भोजन कर लिया करते थे। जैसे-जैसे जीवनशैली बदलती गई, लोग सुख-सुविधाओं के हर माध्यम का इस्तेमाल करने लगे व बिजली की मांग बढ़ती गई लेकिन उत्पादन मांग के अनुसार नहीं था इसलिए बिजली आपूर्ति का असंतुलन भी बड़ी समस्या बनी। लोगों ने ऐसे दिन भी देखे, जब हफ्ते-हफ्ते बिजली नहीं आती थी। उत्तरप्रदेश में तो पिछले सरकार तक 10 से 15 घंटों का बिजली कट लोगों ने झेला है।
आजादी के 70 वर्ष बाद देश के कई दूरदराज के क्षेत्र हैं, जहां बिजली नहीं है। आज भी ये क्षेत्र समाज की मुख्य धारा से कटे हुए हैं। न तो वहां बिजली है, न सड़कें और न ही अन्य बुनियादी सुविधाएं। आज भी करोड़ों गरीब परिवारों में ढिबरी, लालटेन, मोमबत्तियां, दीये की रोशनी में गुजारा हो रहा है। ऐसे 4 करोड़ गरीब परिवारों के लिए 'सौभाग्य योजना' उनके जीवन में बिजली का उजाला लेकर आ रही है। यह राष्ट्र के लिए शुभता का सूचक है और गरीब के जीवन में 'सौभाग्य' का नया सूर्य उदय है।
मोदी सरकार ने 'रोशनी' को अंधेरा नहीं होने दिया। अब न पॉवर ग्रिड फेल होने दिए जा रहे हैं और न ही कोयले की आपूर्ति कम होने दी जा रही है। अब बिजली का उत्पादन भी सरप्लस होने लगा है यानी पहले से 12 फीसदी अधिक बिजली उत्पादन हो रहा है। 'उज्ज्वला' से जहां हर गरीब के घर में स्वच्छ एलपीजी से खाना पका वहीं 'सौभाग्य' से हर घर को रोशनी मिल सकेगी।
रोशन नेतृत्व ही 'रोशनी' दे सकता है। 'रोशनी' वह एक बहुत सीधी-सादी लेकिन कुछ बेवफा किस्म की चीज है। वह एक न एक दिन सबको नंगा कर देती है। उनको तो जरूर ही, जो उसे आवरणों में कैद रखना चाहते हैं व आम जनता को उनके हितों से उन्हें वंचित किए हुए हैं जबकि रोशनी तो बांटने से बढ़ती है, यह बात मोदी की सफलताओं से उजागर हो रही है। इसे अन्य राजनेता भी समझें तभी लोकतंत्र का संतुलित एवं समग्र विकास हो सकेगा।