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वह स्थान जहां से हुआ था रुक्मिणी का हरण

वह स्थान जहां से हुआ था रुक्मिणी का हरण | lrukmini
महाभारत के अनुसार विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी के 5 भाई थे- रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली। रुक्मिणी सर्वगुण संपन्न तथा अति सुन्दरी थी। उसके शरीर में लक्ष्मी के शरीर के समान ही लक्षण थे अतः लोग उसे लक्ष्मीस्वरूपा कहा करते थे।
 
 
भीष्मक और रुक्मिणी के पास जो भी लोग आते-जाते थे, वे सभी श्रीकृष्ण की प्रशंसा किया करते थे। श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर रुक्मिणी ने मन ही मन तय कर लिया था कि वह श्रीकृष्ण को छोड़कर अन्य किसी को भी पति रूप में स्वीकार नहीं करेगी। उधर, श्रीकृष्ण को भी इस बात का पता हो चुका था कि रुक्मिणी परम रूपवती होने के साथ-साथ सुलक्षणा भी है। किंतु रुक्म चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो।
 
 
शिशुपाल रुक्मिणी से विवाह करना चाहता था। रुक्मणि के भाई रुक्म का वह परम मित्र था। रुक्म अपनी बहन का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। रुक्म ने माता-पिता के विरोध के बावजूद अपनी बहन का शिशुपाल के साथ रिश्ता तय कर विवाह की तैयारियां शुरू कर दी थीं। रुक्मिणी को जब इस बात का पता लगा, तो वह बड़ी दुखी हुई। उसने अपना निश्चय प्रकट करने के लिए एक ब्राह्मण को द्वारिका श्रीकृष्ण के पास भेजा। अंतत: रुक्म और शिशुपाल के विरोध के कारण ही श्रीकृष्ण को रुक्मिणी का हरण कर उनसे विवाह करना पड़ा।
 
 
शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ को वचन दिया था कि मैं इसके 100 अपराध क्षमा कर दूंगा। कालांतर में शिशुपाल ने अनेक बार श्रीकृष्ण को अपमानित किया और उनको गाली दी, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें हर बार क्षमा कर दिया। अत: एक यज्ञ समारोह में उसने श्रीकृष्ण को भरी सभा में अपमानित करने की सारी हदें पार कर दीं, तब श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया।
 
 
श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के पुत्र-पुत्री : प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारू, चरुगुप्त, भद्रचारू, चारुचंद्र, विचारू और चारू। दोनों की एक पुत्री भी थीं जिसका नाम चारूमति था। 
 
 
वह स्थान जहां से हुआ था रुक्मिणी का हरण :
श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का जिस मंदिर से हरण किया था। वह मंदिर वर्तमान में मौजूद है। इस मंदिर का नाम है 'अवंतिका देवी मंदिर'। यह मंदिर उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर जिले में अनूपशहर तहसील के जहांगीराबाद से करीब 15 किमी. दूर गंगा नदी के तट बना हुआ है। मान्यता है कि इस मंदिर में अवंतिका देवी जिन्हें अम्बिका देवी भी कहते हैं साक्षात् प्रकट हुई थीं। मंदिर में दो मूर्तियां हैं, जिनमें बाईं तरफ मां भगवती जगदंबा की है और दूसरी दायीं तरफ सतीजी की मूर्ति है। यह दोनों मूर्तियां 'अवंतिका देवी' के नाम से प्रतिष्ठित हैं।
 
 
महाभारत काल यह मंदिर अहार नाम से जाना जाता था। पौराणिक धर्म ग्रंथों के मुताबिक, यहां रुक्मिणी रोजाना गंगा किनारे स्थापित अवंतिका देवी के मंदिर में पूजा करने आती थीं। इसी मंदिर पर श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का मिलाप हुआ था।