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Last Modified: गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023 (14:35 IST)

Bageshwar Dham: कौन हैं बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री, कैसे लगती है 'दरबार' में अर्जी

Bageshwar Dham: कौन हैं बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री, कैसे लगती है 'दरबार' में अर्जी - Who is Dhirendra Krishna Shastri of Bageshwar Dham, how does one apply in Darbar
-अदिति गहलोत
बागेश्वर धाम महाराज के नाम से प्रसिद्ध धीरेंद्र शास्त्री का जन्म 4 जुलाई सन 1996 में मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के गढ़ा गांव में हुआ। पिता का नाम रामकृपाल गर्ग तथा माता का नाम श्रीमती सरोज गर्ग है। परिवार में उनके छोटे भाई और बहन हैं। छोटा भाई शालिग्राम भी बागेश्वर धाम के कामकाज में मदद करते हैं। 
 
इनके दादाजी पंडित भगवान दास गर्ग (सेतु लाल) ने चित्रकूट के निर्मोही अखाड़े से दीक्षा प्राप्त की थी। बाद में उन्होंने ही बागेश्वर धाम का जीर्णोंद्धार करवाया था। ऐसा कहा जाता जाता है कि बागेश्वर महाराज शास्त्री को बालाजी अर्थात हनुमानजी की कृपा से दिव्य सिद्धियां प्राप्त हैं। बागेश्वर बाबा कहते हैं कि चमत्कार तो बालाजी सरकार करते हैं। इनके गुरु प्रसिद्ध संत जगद्गुरु रामभद्रचार्य हैं। मीडिया की रिर्पोट्स की मानें तो धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री नेट वर्थ करोड़ों में है।  
 
धीरेन्द्र शास्त्री ने 9 वर्ष की आयु से ही हनुमानजी की पूजा-अर्चना शुरू कर दी थी। वे साल 2003 से दिव्य दरबार की देख-रेख कर रहे हैं। कहा जाता है कि करीब 300 साल पहले मानव कल्याण और जनसेवा के लिए संन्यासी बाबा द्वारा बागेश्वर धाम को शुरू किया गया था। धीरेन्द्र शास्त्री जी द्वारा इसी परंपरा को आगे बढ़ाया गया है। अपने गुरु समान दादाजी भगवान दास गर्ग के बाद इन्होंने ही बागेश्वर धाम का कार्यभार संभाला।
 
अपनी कथा में धीरेन्द्र शास्त्री ने बताया था कि उन्होंने गरीबी को काफी करीब से देखा है। छोटी उम्र से ही वे अपने दादाजी के साथ रामायण, महाभारत, भगवत गीता जैसे महाकाव्यों का अध्ययन किया करते थे। उनके दादाजी से ही उन्हें धर्म ग्रंथों की प्ररंभिक शिक्षा मिली। बचपन से ही वे अपने दादाजी के साथ घर-घर सुंदरकांड करने जाते थे। कहते हैं कि उन्होंने कुछ समय तक उन्होंने भिक्षा मांगने का भी काम किया। 
 
शिक्षा में आड़े आई गरीबी : धीरेंद्र शास्त्री ने अपनी 8वीं तक की शिक्षा गढ़ा गांव की ही सरकारी पाठशाला में हुई। बीए की डिग्री उन्होंने प्राइवेट की। इसके बाद वे वृंदावन जाकर कर्मकांड पढ़ना चाहते थे, लेकिन गरीबी के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया। उनके दादाजी बागेश्वर धाम में ही दरबार लगाया करते थे। वर्तमान में धीरेन्द्र शास्त्री दरबार लगाते हैं।
 
कैसे लगती है बागेश्वर धाम में अर्जी : बागेश्वर धाम में अर्जी लगाने के लिए पहले टोकन वितरित किए जाते हैं। टोकन एक निर्धारित तारीख को ही डाले जाते हैं, जिसकी घोषणा स्वयं धीरेन्द्र शास्त्री करते हैं। इसकी सूचना सोशल मीडिया के माध्यम से दी जाती है। परिसर में रखी पेटी में भक्तगणों को अपना नाम, पिता का नाम, गांव, जिला, राज्य का नाम पिन कोड के साथ अपना मोबाइल नंबर भी लिखकर डालना होता है। टोकन डालने के बाद जिस भी व्यक्ति का नंबर लगता है, उन्हें कमेटी द्वारा संपर्क कर टोकन दे दिया जाता है। इस टोकन में एक निर्धारित तारीख होती है और उस दिन ही श्रद्धालु को बागेश्वर धाम में अपनी अर्जी लगानी होती है।
 
बागेश्वर धाम में अर्जी लगाने के लिए तय तिथि पर उपस्थित होने के बाद, भक्तों को कपड़े में नारियल बांधकर परिसर में रखना होता है। यदि सामान्य अर्जी है तो नारियल को लाल कपड़े में, विवाह संबंधित अर्जी है तो पीले कपड़े में और भूत-प्रेत से जुड़ी बाधा के नारियल को काले कपड़े में बांधना होता है। ऐसा दावा किया जाता है कि जो भी श्रद्धालु दरबार में अपनी अर्जी लगाता है, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। 
 
हम अंग्रेजी क्यों सीखें : वर्ष 2022 में धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें संत शिरोमणि के सम्मान से नवाजा गया साथ ही वर्ल्ड बुक ऑफ लंदन और वर्ल्ड बुक ऑफ यूरोप की ओर से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। धीरेन्द्र शास्त्री ब्रिटिश संसद में भी बोल चुके हैं। उन्होंने दावा कि वहां जय श्रीराम के नारे भी लगवाए। बाबा ने एक कथा के दौरान ही कहा था कि जब मैं लंदन पहुंचा तो कई अंग्रेजों ने मुझसे कहा कि अंग्रेजी सीख लीजिए तो मैंने कहा तुम हिन्दी सीखो। हम यहां अंग्रेजी सीखने नहीं आए हैं।
Bageshwar Dham
विवाद भी कम नहीं : धीरेन्द्र शास्त्री महाराष्ट्र में उस समय विवादों में आ गए थे, जब अंध श्रद्‍धा निर्मूलन समिति के श्याम मानव ने उन पर अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगाया था। महाराष्ट्र के ही प्रसिद्ध संत तुकाराम पर टिप्पणी करके भी धीरेन्द्र शास्त्री विवादों में घिर गए थे। उन्होंने कहा था कि संत तुकाराम को उनकी पत्नी रोज पीटती थीं। इसको लेकर महाराष्ट्र के विभिन्न राजनीतिक दलों ने बाबा की आलोचना की थी। 
 
 
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