इंदौर। विश्व के पहले हिन्दी पोर्टल वेबदुनिया और आईटी कंपनी डायस्पार्क के संस्थापक विनय छजलानी ने कहा कि हमें चुनौतियों से भागने के बजाय उनका सामना करना चाहिए। क्योंकि जहां जोखिम बड़ी होती है, वहीं सफलता या हासिल भी बड़ा होता है।
इंदौर मैनेजमेंट एसोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम 'लर्निंग फ्रॉम लीजेंड्स' विषय पर संबोधित करते हुए श्री छजलानी ने इंदौर की महारानी देवी अहिल्या के जीवन को आधार बनाकर प्रबंधन के कई गुर भी बताए। उन्होंने कहा कि आमतौर पर चुनौतियों को स्वीकारने के बजाय लोग पीछे हट जाते हैं, लेकिन अहिल्याबाई ने पति खांडेराव की मौत के बाद विषम परिस्थितियों में इंदौर के होलकर राज्य की सत्ता संभाली। वे चाहतीं तो पीछे हट सकती थीं, लेकिन उन्होंने उसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया और एक मध्यम परिवार में जन्मी लड़की से वे देवी अहिल्या बन गईं।
संसाधनों का सदुपयोग : श्री छजलानी ने कहा कि हमें संसाधनों का सदुपयोग करना चाहिए, साथ ही कम संसाधनों में भी सफलता प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। अहिल्याबाई ने उपलब्ध साधनों के बल पर ही राज्य का सुचारु रूप से संचालन किया। उन्होंने विरोधियों को कुचलने के बजाय उन पर मानसिक विजय हासिल की। इसी फंडे को हम जीवन में भी अपना सकते हैं। इस संबंध में उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि एक युद्ध में पराजित राजा को उन्होंने समाप्त करने के बजाय क्षमा किया और उससे युद्ध का हर्जाना लिया।
सामाजिक जिम्मेदारी : श्री छजलानी ने कहा कि व्यक्ति को सामाजिक जिम्मेदारियों का भी निर्वाह करना चाहिए। अहिल्याबाई ने भी न सिर्फ प्रजा का ध्यान रखा बल्कि सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए देशभर में विभिन्न धर्मस्थलों पर धर्मशालाएं बनवाईं, जो कि आज भी कायम हैं। यही कारण है कि लोग आज भी उन्हें याद रखते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म पगडंडी से आता है, पंडालों से नहीं। दरअसल, हम रास्ते पर यात्रा करते हैं, तभी धर्म पैदा होता है। हर व्यक्ति के मन में करुणा भाव और न्यायप्रियता अवश्य होनी चाहिए।
संवाद : सीनियर और जूनियर के बीच सीधे संवाद की वकालत करते हुए विनय छजलानी ने कहा कि इससे विश्वास बढ़ता है। अहिल्याबाई भी अपने राज्य के आम लोगों से सीधे मुलाकात करती थीं। इस दौरान कोई भी मध्यस्थ नहीं होता था। उनके संवाद कौशल का ही नतीजा था कि उन्होंने आसपास के राजपूत, पेशवा, मराठा, मुस्लिम शासकों से समन्वय कायम कर अपने राज्य में शांति बनाए रखी।
वित्त प्रबंधन : उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में कॉर्पोरेट जगत में कॉस्ट कटिंग और कॉस्ट कंट्रोल की बात बहुत सुनने में आती है, लेकिन अहिल्याबाई ने उस दौर में धन का सदुपयोग कर वित्त प्रबंधन का अनूठा उदाहरण पेश किया था। महारानी ने विशेष तौर पर इस बात के लिए एक गार्ड की नियुक्ति की थी, धन का उपयोग कहां और कैसे हो रहा है। सामाजिक कार्यों में खर्च होने वाले धन का लेखा-जोखा रखने के लिए उन्होंने एक अलग विभाग बनाया था, जिसे 'खासगी' के नाम से जाना जाता है।
बेटी बचाओ : महारानी अहिल्याबाई के माध्यम से ही श्री छजलानी ने बेटी बचाने का संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि बेटी और बहू बचेंगी और उन्हें उचित शिक्षा मिलेगी तभी तो अहिल्याबाई जैसे कुशल नेतृत्व और शासक पैदा होंगे।
3एम थ्योरी : अपने संबोधन के दौरान श्री छजलानी ने 'थ्री एम थ्योरी' अर्थात मैन, मनी और मटीरियल का किस तरह सही उपयोग किया जाए। उन्होंने कहा कि बजट की उपलब्धता के आधार पर प्रोजेक्ट प्लान तैयार कर एवं संसाधनों का सदुपयोग कर सफलता हासिल की जा सकती है।
नाम नहीं काम पर जोर : श्री छजलानी ने प्रश्नोत्तर सत्र में इंदौर का नाम बदलकर इंदूर करने के प्रश्न पर कहा कि नाम बदलने से नहीं बल्कि शहर की 'क्वालिटी' से फर्क पड़ता है। नाम में क्या रखा है। लोगों के लिए सुविधाएं बढ़नी चाहिए, लोगों में बदलाव होना चाहिए। उन्होंने प्रतिप्रश्न किया कि गुरुग्राम का नाम बदलने से वहां क्या बदला? इसके अलावा कई अन्य सवाल भी पूछे गए, जिनके श्री छजलानी ने बहुत ही सहजता से जवाब दिए।
श्री छजलानी ने अपने 12 बिन्दुओं के आधार पर बताया कि किस तरह महारानी अहिल्याबाई के जीवन से प्रबंधन सीखा जा सकता और जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है। संभवत: यह पहला मौका है जब किसी ने महारानी अहिल्याबाई के समग्र जीवन से प्रबंधन के सूत्र उठाए है। कार्यक्रम के प्रारंभ में आईएमए के अश्विन पलसीकर ने श्री छजलानी का स्वागत किया, जबकि संतोष मुछाल ने स्मृति चिह्न प्रदान किया।