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Written By वेबदुनिया न्यूज डेस्क
Last Updated : मंगलवार, 28 जनवरी 2020 (21:33 IST)

सरफराज खान के लिए लाइफ है 'दंगल', रणजी ट्रॉफी के 2 मैच में ठोंक डाले रिकॉर्ड +500 रन

सरफराज खान के लिए लाइफ है 'दंगल', रणजी ट्रॉफी के 2 मैच में ठोंक डाले रिकॉर्ड +500 रन - Ranji Trophy sarfaraz khan ranji trophy live score
धर्मशाला। सोशल मीडिया में मुंबई के युवा बल्लेबाज सरफराज खान सुर्खियों में है। उन्होंने रणजी ट्रॉफी के पिछले 2 मैचों में +500 रन ठोंक दिए। 31 साल के बाद किसी भारतीय बल्लेबाज ने ऐसा पहली बार किया कि पहले तिहरा शतक लगाया और अगले मैच में दोहरा शतक जड़ दिया। हिमाचल प्रदेश के खिलाफ 226 रन बनाने वाले सरफराज ने कहा कि मेरी लाइफ 'दंगल' है। फुल दंगल। 
 
सरफराज खान बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान से प्रभावित हैं। रणजी ट्रॉफी में रिकॉर्ड बनाने के बाद उन्होंने कहा कि मैं अपनी कामयाबी का श्रेय आमिर खान को देना चाहता हूं जिन्होंने फिल्म दंगल बनाई थी। मैं रोजाना अपनी सुबह फिल्म दंगल में दलेल मेंहदी के गाए गीत ' मां के पेट से मरघट तक/ है तेरी कहानी पग पग प्यारे/ दंगल दंगल/ सूरज तेरा चढ़ता ढलता/ गर्दिश में करते हैं तारे/ दंगल दंगल दंगल।'
 
गीत बन गया प्रेरणा : सरफराज के अनुसार यह गाना मुझे प्रेरणा देता है। अब तो दंगल मेरे जीवन का गीत बन गया है। यही कारण है कि मैं सोने के पहले इसे गुनगुनाकर ही सोता हूं और जब जागता हूं, तब भी इसके बोल मेरे लबों पर रहते हैं।
 
मुंबई बदली तकदीर : 4 बरस पहले मैं उत्तर प्रदेश की तरफ से खेला करता था लेकिन नए नियम (कूल ऑफ पीरियड) के बाद मैंने इस सीजन से मुंबई की तरफखेलना शुरू किया। मैंने जो 4 साल से क्रिकेट करियर में जो कुछ भी खोया है, अब मैं वो सब वापस पाना चाहता हूं। मेरे दिल में दुनिया को गलत साबित करने की भूख है और मेरी लक्ष्य बड़े मंच पर खुद को साबित करना है।
 
पिता का सपना साकार करना है : सरफराज के पिता नौशाद ही उनके कोच है। सरफराज को अपने पिता का सपना पूरा करना है। यह सपना है टीम इंडिया की जर्सी पहनने का। उनके भाई मुशीर भी मुंबई के लिए अंडर-19 में खेलते हैं। वे अपनी बातों में बार-बार ईश्वर महान है शब्द को दोहराते हैं। 
 
मेरे पिता को हार कबूल नहीं थी : उन्होंने कहा कि मैंने भी अपने जीवन में बहुत बुरा वक्त देखा है। जब जिंदगी की तकलीफें बहुत ज्यादा बढ़ गई तो मैंने हार मान ली लेकिन मेरे पिता को मेरी हार कबूल नहीं थी। जब मैंने क्रिकेट की शुरुआत की थी, तब मेरे पिता आजाद मैदान के कई चक्कर लगाने को कहते थे।
 
गाल पर पड़ते थे तड़ातड़ तमाचे : उमस और असहनीय गर्मी के दिनों में जब मैं उन्हें निराश करता तो वे मेरी पिटाई करने से भी नहीं चूकते। मेरे गाल पर तड़ातड़ तमाचे पड़ते...तब मेरा दिमाग घूम जाया करता था कि ये आखिर हो क्या रहा है। मैं कभी-कभी दिन भर भूखा भी रहा लेकिन क्रिकेट का जुनून कायम रहा। तपती गर्मी ने मेरे पैरों को और मजबूत बनाया। ईश्वर बहुत दयालु है और आज मुझे उसका प्रतिफल भी मिल रहा है।
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