इंदौर। अपने पदार्पण मैच में 267 रन की लाजवाब पारी खेलकर प्रथम श्रेणी मैचों में नया विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले मध्यप्रदेश के विकेटकीपर-बल्लेबाज अजय रोहेरा का फिलहाल खुशी का ठिकाना नहीं है लेकिन वह अपने इस कीर्तिमान को भूलकर आगामी मैचों पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।
सचिन तेंदुलकर को अपना आदर्श मानने वाले रोहेरा ने कहा, 'मैं आने वाले मैचों में एकदम नई शुरुआत करूंगा। मेरा विश्व रिकॉर्ड तो अब इतिहास की बात हो गई। मैं इस रिकॉर्ड को जितना जल्दी भूलूंगा, उतने ज्यादा रन बना पाऊंगा।'
उन्होंने कहा कि बतौर खिलाड़ी मैं चीजों को आसान रखना चाहता हूं। अगर मैं आने वाले मुकाबलों में हड़बड़ी दिखाऊंगा, तो चीजें मेरे लिए दिनों-दिन मुश्किल होती चली जाएंगी।
रोहेरा ने मध्यप्रदेश की तरफ से हैदराबाद के खिलाफ रणजी ट्रॉफी एलीट ग्रुप बी मैच में नाबाद 267 रन बनाए और इस तरह से अमोल मजूमदार का रिकॉर्ड तोड़ा, जिन्होंने फरवरी 1994 में मुंबई की तरफ से हरियाणा के खिलाफ फरीदाबाद में अपने पदार्पण मैच में 260 रन बनाए थे। रोहेरा की पारी से मध्यप्रदेश ने यह मैच पारी और 253 रन से जीता।
होलकर स्टेडियम में विश्व रिकॉर्ड का पीछा करते वक्त मन में क्या चल रहा था? इस प्रश्न पर रोहेरा ने कहा कि तब मैं केवल अपना स्वाभाविक खेल खेलने पर ध्यान दे रहा था। मैं कुछ अलग करने के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोच रहा था।
उन्होंने कहा कि क्रिकेट की दुनिया में तेंदुलकर मेरे सर्वकालिक आदर्श हैं। उनसे मुझे हमेशा प्रेरणा मिलती है। इंदौर के नजदीकी कस्बे देवास से ताल्लुक रखने वाले युवा क्रिकेटर के पिता राजकुमार रोहेरा आईसक्रीम बनाने की इकाई चलाते हैं, जबकि उनकी माता प्रिया रोहेरा गृहिणी हैं।
आम युवाओं की तरह रोहेरा ने भी 'गली क्रिकेट' से शुरुआत की और कदम-दर-कदम आगे बढ़ते हुए इस बार मध्यप्रदेश रणजी टीम के अंतिम एकादश में जगह बनाई।
यह बात काबिले-गौर है कि मध्यप्रदेश क्रिकेट संघ ने यहां इस रणजी मुकाबले से महज तीन दिन पहले अंकित दाणे की जगह रोहेरा को टीम में शामिल किया था। तब रोहेरा कर्नल सीके नायडू ट्रॉफी अंडर 23 क्रिकेट स्पर्धा में मध्यप्रदेश की टीम की अगुवाई कर रहे थे और उन्हें इस स्पर्धा में अच्छे प्रदर्शन के चलते रणजी टीम में जगह दी गई थी।
सुनहरे मौके को भुनाते हुए रोहेरा न केवल चयनकर्ताओं के भरोसे पर खरे उतरे, बल्कि उन्होंने अपने बल्ले से इतिहास भी रच दिया।
रोहेरा ने कहा कि मेरा सपना है कि मैं आगे भी अच्छा प्रदर्शन करते हुए मध्यप्रदेश को रणजी ट्रॉफी विजेता का पहला खिताब दिलवाने में भूमिका निभाऊं।"
भारतीय राज्य के रूप में एक नवंबर 1956 को आधिकारिक वजूद में आने के बाद मध्यप्रदेश ने एक बार भी रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट नहीं जीता है। वर्ष 1998-1999 के रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट के खिताबी मुकाबले में कर्नाटक से हारकर मध्यप्रदेश इस प्रतियोगिता का उपविजेता रहा था। यह इस प्रतिष्ठित घरेलू टूर्नामेंट में मध्यप्रदेश का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। (भाषा)