PR एक सोच से दूसरी सोच पैदा होती है फिर चाहे वह सच हो या झूठ। इसी तरह पुरानी धार्मिक आशंकाओं से वैज्ञानिक भी आशंकित और आतंकित होकर प्रलय संबंधी तथ्य जुटाने में लगे हैं। प्रलय या धरती के नष्ट होने को लेकर वैज्ञानिक भी अपने-अपने तरीके से अनुमान लगा रहे हैं। दूसरी ओर कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि यह सब गलत धारणा का परिणाम है। हालांकि वैज्ञानिक मानते हैं कि पृथ्वी पर तबाही आ सकती है और इसके पीछे जो कारण उन्होंने गिनाए हैं, कहीं न कहीं हमसे ही जुड़े हुए हैं।* प्राकृतिक दोहन से कमजोर पड़ती धरती* ग्लोबल वॉर्मिंग से पिघल रहे ग्लेशियर* ओजोन परत में छेद के कारण बढ़ता धरती का तापमान* उल्कापिंड से धरती को खतरा* यदि परमाणु युद्ध हुआ तो नष्ट हो जाएगी धरती* भूकंप और ज्वालामुखी से नष्ट हो सकता है जीवन* सूर्य से उग्र रूप मचा सकता है तबाही* ब्लैक होल में समा सकती है धरती* एलियंस का हमला नष्ट कर सकता है जीवनप्राकृतिक दोहन : धरती के गर्भ से सोना, चांदी, हीरा, कोयला, संगमरमर पत्थर, तेल, तांबा, मूंगा और तमाम तरह की सारी संपदाएं निकालकर धरती को लगभग खोखला कर दिया गया है। अब समुद्र के भीतर प्राकृतिक संपदाओं की तलाश कर उसे भी खत्म करने का दुश्चक्र जारी है। खदानों और बोरवेल के दौर में पहाड़, नदी, पेड़ और जंगल लगभग समाप्त होने की कगार पर हैं। इससे वैज्ञानिक इस बात की आशंका व्यक्तकर रहे हैं कि धरती की ऊपरी परत का आवरण कमजोर पड़ता जा रहा है और यह आवरण ध्वस्त हुआ तो धरती बिखर सकती है। द्वीप और महाद्वीप टूटकर समुद्र में समा सकते हैं।ग्लोबल वॉर्मिंग : प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंस का मानना है कि 100 वर्ष में ग्लोबल वॉर्मिंग और परमाणु युद्ध के चलते धरती पर से जीवन नष्ट हो जाएगा। ग्लोबल वॉर्मिंग अर्थात भूमंडलीय ऊष्मीकरण। इसका मतलब धरती का तापमान लगातार बढ़ते जाना। ग्लेशियर पिघल रहे हैं और जलवायु परिवर्तन होने लगा है। ग्लेशियर से हमारी धरती का तापमान संतुलित रहता है। बढ़ते तापमान से बर्फीले इलाके पिघलने लगे हैं और इसकी परिणति जल प्रलय के रूप में सामने आ सकती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि यह सब ग्रीनहाउस गैस, बढ़ती मानवीय गतिविधियां और लगातर कट रहे जंगल के कारण हो रहा है। यदि इसी तरह तापमान बढ़ता रहा तो धरती पर से ऑक्सीजन भी खत्म हो जाएगी और इस तरह जीवन नष्ट हो जाएगा।ओजोन परत में छेद : धरती के आसमान में ओजोन की एक परत है। ओजोन की इस परत से ही सूर्य की किरणें छन कर धरती पर आती है। सूर्य की खतरनाक किरणों से यह ओजोन की छतरी ही हमें बचाती है, लेकिन मानव के करतूतों के चलते इस छतरी पर बहुत सारे छेद हो गए हैं। नासा के औरा उपग्रह से प्राप्त आंकड़े के अनुसार ओजोन छिद्र का आकार 13 सितंबर, 2007 को अपने चरम पर पहुंच गया था, कोई 97 लाख वर्ग मील के बराबर। यह क्षेत्रफल उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रफल से भी अधिक है। 12 सितंबर, 2008 को छेद का आकार और बढ़ गया। सूरज से निकलने वाली खतरनाक पराबैंगनी किरणें हमारे अस्तित्व के लिए खतरा बनती जा रही है।आज हमें त्वचा कैंसर, त्वचा के बूढ़ा होने और आंखों की खतरनाक बीमारियों के खतरों से दो-चार होना पड़ रहा है। ओजोन क्षरण के कारण प्रति वर्ष दुनियाभर में मेलेनोमा के 130,000 से अधिक नए मामले सामने आ रहे हैं और 66,000 लोग प्रति वर्ष स्किन कैंसर से मारे जा रहे हैं।दरअसल, ओजोन क्षरण के लिए जिम्मेदार है, क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस और खेती में इस्तेमाल किया जाने वाला पेस्टीसाइड मेथिल ब्रोमाइड। रेफ्रीजरेटर से लेकर एयरकंडीशनर तक क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस पर निर्भर हैं और इन उपकरणों का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है।उल्कापिंड के टकराने का खतरा : उल्कापिंड जिसे क्षुद्रग्रह भी कह सकते हैं। अंग्रेजी में इसे एस्ट्रॉयड कहते हैं। यह एक छोटे पत्थर के टुकड़े के बराबर से लेकर चंद्रमा के बराबर तक भी हो सकते हैं।वैज्ञानिक मानते हैं कि करीब साढ़े 6 करोड़ साल पहले लगभग 10 किलोमीटर बड़ा एक उल्कापिंड मैक्सिको के आज के यूकातान प्रायद्वीप पर गिरा था। इससे पृथ्वी पर उस समय की जलवायु में जो भारी परिवर्तन हुआ था संभवत: उसी के कारण डायनासोर का हमेशा के लिए अंत हो गया। आप जानना चाहेंगे की यह उल्कापिंड कितनी रफ्तार से धरती से टकराते हैं- लगभग 50 हजार से 70 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार।अंतरिक्ष में हजारों-लाखों ऐसे पिंड हैं, जो पृथ्वी के निकट आ सकते हैं। पृथ्वी के निकटवर्ती अंतरिक्ष में इस तरह के अब तक कुल 8321 ऐसे क्षुद्रग्रह सूचीबद्ध किए जा चुके हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा लगातर इनकी टोह लेने, उन पर नजर रखने और उनकी सूची बनाने में लगी रहती है। परमाणु युद्ध : नाभिकीय अस्त्र या परमाणु बम एक ऐसा बम है जो एक बार में दो शहर और दो बार में 40 शहरों की आबादी नष्ट कर सकता है। हिरोशिमा और नागासाकी दो ऐसे शहर थे जिनका नाम पुरी दुनिया जानती है।हिरोशिमा दुनिया का पहला ऐसा शहर है जहां अमेरिका ने 1945 में यूरेनियम बम गिराए। इसके तीन दिन बाद 9 अगस्त को नागासाकी पर परमाणु बम गिराया गया। इस बमबारी के पहले दो से चार महीनों के भीतर हिरोशिमा में 90 हजार से 1 लाख 60 हजार और नागासाकी में 60 हजार से 80 लोग मारे गए। इसके बाद आने वाले महीनों में बड़ी संख्या में लोग जलन, रेडियोधर्मी बीमारी और अन्य चोटों की वजह से मारे गए।यह ब्रह्मास्त्र है, जिसके माध्यम से दुनिया को नष्ट किया जा सकता है। सचमुच में दुनिया के दुष्ट राष्ट्रों के पास इतने परमाणु बम है कि लगभग 1000 दफे धरती को नष्ट किया जा सकता है। स्टीफन हॉकिंस को सबसे बड़ा डर परमाणु बम से ही लगता है।....पढ़ें अगले पेज पर..