जन्माष्टमी पर करें श्रीकृष्ण की अष्टयाम पूजा, लगाएं 8 प्रकार का भोग तो हो जाएंगे प्रसन्न
श्रीकृष्ण के जीवन में 8 अंक का बहुत महत्व था। वे श्री विष्णु के 8वें अवतार के रूप में 8वें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28वें द्वापर में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष अष्टमी को 8वें मुहूर्त में जन्में थे। तब रोहिणी नक्षत्र, जयंती नामक योग और शून्य काल था। भगवान श्रीकृष्ण वसुदेव के आठवें पुत्र थे। उनकी 8 पत्नियां और 8 ही प्रेमिकाएं थीं। वे 8 वक्त भोजन करते थे। इसीलिए जन्माष्टमी के दिन उनकी अष्टयाम पूजा होना चाहिए। ब्रजमंडल के कई मंदिरों में तो उनकी अष्टयाम पूजा ही होती है।
अष्टयाम : वैष्णव मंदिरों में आठ प्रहर की सेवा-पूजा का विधान 'अष्टयाम' कहा जाता है। वल्लभ सम्प्रदाय में 1.मंगला, 2.श्रृंगार, 3.ग्वाल, 4.राजभोग, 5.उत्थापन, 6.भोग, 7.संध्या-आरती तथा 8.शयन के नाम से ये कीर्तन-सेवाएं हैं। हालांकि कहते हैं कि यह नियम मध्यकाल में विकसित हुआ जिसका शास्त्र से कोई संबंध नहीं।
क्या है अष्ट प्रहर : दिन-रात मिलाकर 24 घंटे में आठ प्रहर होते हैं। औसतन एक प्रहर तीन घंटे या साढ़े सात घटी का होता है जिसमें दो मुहूर्त होते हैं। दिन के चार और रात के चार मिलाकर कुल आठ प्रहर। आठ प्रहर के नाम : दिन के चार प्रहर- 1.पूर्वान्ह, 2.मध्यान्ह, 3.अपरान्ह और 4.सायंकाल। रात के चार प्रहर- 5. प्रदोष, 6.निशिथ, 7.त्रियामा एवं 8.उषा।
श्रीकृष्ण भोग : भगवान श्रीकृष्ण को साग, कढ़ी और पूरी के अलावा प्रमुख रूप से 8 भोजन प्रिय है- 1.खीर, 2.सूजी का हलुआ या लड्डू, 3.सिवइयां, 4.पूरनपोळी, 5.मालपुआ 6.केसर भात, 7.केले सहित सभी मीठे फल और 8.कलाकंद
श्रीकृष्ण प्रसाद : श्रीकृष्ण के उपरोक्त भोग के अलावा उन्हें 1.माखन 2.मिश्री, 3.पंचामृत, 4.नारियल, 5.सुखे मेवे, 6.धनिया पिंजरी, 7.लड्डू और 8.केसर भात।