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Written By WD Feature Desk
Last Modified: गुरुवार, 14 अगस्त 2025 (13:31 IST)

जन्माष्टमी पर क्यों काटा जाता है खीरा? जानिए इस परंपरा के पीछे छिपा रहस्य

janmashtami par kheera kyu chadhta hai
janmashtami par kheera kyu chadhta hai: जन्माष्टमी, भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का पावन पर्व, देशभर में बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों से लेकर घरों तक में भक्तिमय माहौल होता है। लोग व्रत रखते हैं, भजन गाते हैं और ठीक आधी रात को कृष्ण का जन्म होने पर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। लेकिन, जन्माष्टमी के जश्न में एक बहुत ही खास और अनोखी परंपरा भी निभाई जाती है – खीरा काटने की परंपरा। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसके पीछे एक गहरा और भावुक अर्थ छिपा है। आइए, जानते हैं कि जन्माष्टमी पर खीरा काटने का क्या महत्व है।  

खीरा, कृष्ण का जन्म और नाल छेदन की रस्म
जन्माष्टमी पर खीरा काटने की परंपरा सीधे भगवान कृष्ण के जन्म से जुड़ी हुई है। हिंदू मान्यता के अनुसार, खीरे के डंठल को भगवान कृष्ण का गर्भनाल माना जाता है। जब किसी शिशु का जन्म होता है, तो उसे उसकी माँ से गर्भनाल काटकर अलग किया जाता है। ठीक उसी तरह, जन्माष्टमी पर डंठल वाले खीरे को सिक्का या किसी धारदार वस्तु से ठीक उसी तरह से काटा जाता है, जैसे किसी बच्चे के जन्म के समय उसकी गर्भनाल को काटा जाता है। इस रस्म को 'नाल छेदन' भी कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है गर्भनाल को काटना। यह मातृगर्भ से शिशु के जन्म का प्रतीक है और यह दर्शाता है कि शिशु अब अपनी माँ से अलग होकर संसार में आ चुका है।

यह रस्म प्रतीकात्मक रूप से माता देवकी और शिशु कृष्ण को अलग करने की पीड़ा को दर्शाती है। जैसा कि हम जानते हैं, कृष्ण का जन्म होते ही उन्हें उनके माता-पिता से अलग करके यमुना पार करके गोकुल में नंद बाबा के पास ले जाया गया था। यह परंपरा उस भावुक वियोग की याद दिलाती है।

खीरा काटने का सही तरीका
इस रस्म को बहुत ही सावधानी और श्रद्धा के साथ किया जाता है:
1. डंठल वाला खीरा: इसके लिए हमेशा एक ऐसा खीरा लेना चाहिए जिसमें उसका डंठल लगा हुआ हो।
2. काटने का समय: खीरा ठीक आधी रात को काटा जाता है, जब भगवान कृष्ण का जन्म होता है।
3. विधि: खीरे को एक साफ बर्तन में रखकर, उसके डंठल को एक साफ सिक्के या चाकू से धीरे-धीरे काटा जाता है। यह ध्यान रखा जाता है कि खीरा पूरी तरह से कटने के बजाय, उसके डंठल से अलग हो जाए।
4. मूर्ति को बाहर निकालना: खीरा कटने के बाद, उसमें से लड्डू गोपाल या कृष्ण की मूर्ति को बाहर निकाला जाता है, मानो वह गर्भ से बाहर आ रहे हों। इसके बाद ही कृष्ण की पूजा-अर्चना शुरू होती है।

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