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Shri krishna janmashtami 2020 : जानिए भगवान श्रीकृष्ण के अस्त्र-शस्त्र

Shri krishna janmashtami 2020 : जानिए भगवान श्रीकृष्ण के अस्त्र-शस्त्र - janmashtami 2020
भगवान श्रीकृष्ण भारतीय जनमानस के प्रिय आराध्य हैं,आइए जानिए उनके दिव्य अस्त्र-शस्त्र ... 
 
·श्राङ्ग भगवान विष्णु का धनुष था और पिनाक भगवान शिव का और दोनों का निर्माण विश्वकर्मा ने साथ साथ किया। एक बार ब्रह्मा जी ने जानना चाहा कि दोनों में से कौन सा धनुष श्रेष्ठ है। इसके लिए भगवान् विष्णु और भगवान् शिव में अपने अपने धनुष से युद्ध हुआ।

युद्ध इतना विनाशकारी था कि स्वयं ब्रह्मा जी ने प्रार्थना कर युद्ध को रुकवाया नहीं तो समस्त सृष्टि का नाश हो जाता। बाद में शिवजी के पूछने पर ब्रह्मा जी ने श्राङ्ग को पिनाक से श्रेष्ठ बता दिया क्यूंकि युद्ध के बीच में भगवान् शिव श्राङ्ग का सौंदर्य देखने के लिए एक क्षण के लिए स्तंभित हो गए थे।

इससे रुष्ट होकर महादेव ने पिनाक धनुष को जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया और साथ ही ये भी कहा कि अब इस धनुष का विनाश भी विष्णु ही करेंगे। बाद में भगवान् विष्णु ने श्रीराम का अवतार ले उस धनुष को भंग किया। महाभारत में श्राङ्ग को श्रीकृष्ण के अतिरिक्त केवल परशुराम, भीष्म, द्रोण, कर्ण एवं अर्जुन ही संभाल सकते थे।
·श्रीकृष्ण ने कई युद्ध लड़े किन्तु महाभारत के अतिरिक्त जो अन्य महा भयंकर युद्ध थे वो उन्होंने जरासंध, कालयवन, नरकासुर, पौंड्रक, शाल्व और बाणासुर के विरुद्ध लड़ा। कंस, चाणूर और मुष्टिक जैसे विश्वप्रसिद्ध मल्लों का वध भी उन्होंने केवल 16 वर्ष की आयु में कर दिया था।
·महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन को गीता ज्ञान दिया। अंत में अपना विराट स्वरुप दिखाने के लिए उन्होंने अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान की क्यूंकि उनका वो रूप साधारण दृष्टि से नहीं देखा जा सकता था। यही कारण था कि अर्जुन और देवताओं के अतिरिक्त केवल और कुछ सिद्ध ऋषि ही उनका ये रूप देख पाए। साधारण मनुष्यों में केवल संजय ने उनका दिव्य स्वरुप देखा क्यूंकि उन्हें महर्षि वेदव्यास ने दिव्य दृष्टि प्रदान की थी।
·कृष्ण का प्रमुख अस्त्र सुदर्शन चक्र पूरे विश्व में प्रसिद्ध था। जब सारे ओर दैत्यों का आतंक बढ़ गया और भगवान विष्णु उन्हें अपने साधारण अस्त्रों से नहीं मार पाए तब उन्होंने भगवान शिव की 1000 वर्षों तक तपस्या की। जब रूद्र ने उनसे वरदान मांगने को बोला तो उन्होंने कहा कि उन्हें एक ऐसा दिव्यास्त्र चाहिए जिससे वे राक्षसों का नाश कर सकें। इसपर भगवान् शिव ने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से सुदर्शन चक्र को उत्पन्न किया जिसमे 108 आरे थे और इसे नारायण को दिया जिससे उन्होंने सभी राक्षसों का नाश किया। ये चक्र उन्होंने परशुराम को दिया और फिर परशुराम से इसे श्रीकृष्ण को प्राप्त हुआ। ये इतना शक्तिशाली था कि त्रिदेवों के महास्त्र (ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र) के अतिरिक्त केवल इंद्र का वज्र और रूद्र का त्रिशूल ही इसके सामने टिक सकता था। महाभारत में कृष्ण के अतिरिक्त केवल परशुराम ही इसे धारण कर सकते थे।
·अर्जुन श्रीकृष्ण के सबसे बड़े भक्त थे किन्तु श्रीकृष्ण के जीवन का सबसे भयानक द्वंद युद्ध सुभुद्रा की प्रतिज्ञा के कारण अर्जुन के साथ ही हुआ था जिसमें दोनों ने अपने अपने सबसे विनाशक शस्त्र क्रमशः सुदर्शन चक्र और ब्रह्मास्त्र निकाल लिए थे। बाद में इंद्र के हस्तक्षेप से दोनों शांत हुए।
·नन्दक को विश्वकर्मा ने भगवान विष्णु के लिए बनाया था। इसी खड्ग से उन्होंने मधु और कैटभ नमक दैत्यों का वध किया था। रामायण में ये खड्ग महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को दिया था और महाभारत में ये श्रीकृष्ण को मिला था। यह इतना तेज था कि अपने मार्ग में आने वाली हर वस्तु को नष्ट कर देता था।
·एकलव्य को सभी जानते हैं जिनसे गुरु द्रोण ने उसका अंगूठा मांग लिया था। उसके बाद भी एकलव्य धनुर्विद्या में प्रवीण हो गया और जरासंध के सेना में प्रमुख योद्धा बन गया। उसने जरासंध और शिशुपाल के साथ मथुरा पर आक्रमण किया। जब श्रीकृष्ण रणक्षेत्र में आये तो एकलव्य को चार अंगलियों से बाण चलाते देख आश्चर्यचकित रह गए। एकलव्य को बलराम ने अपनी गदा से दूर फेंक दिया पर वह वापस आकर कृष्ण के पुत्र साम्ब पर टूट पड़ा।

अपने पुत्र को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने शिला से एकलव्य के सर पर प्रहार किया जिससे उसकी मृत्यु हो गई।

महाभारत के बाद अर्जुन से बात करते हुए कृष्ण कहते हैं कि "तुम्हारे लिए मैंने क्या-क्या नहीं किया? भीष्म, द्रोण और कर्ण को छल से मरवाया। और तो और तुम ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर रह सको इसके लिए मैंने स्वयं एकलव्य का वध भी कर दिया।"
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