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Written By अनिरुद्ध जोशी

यह स्वतंत्रता या आजादी किसके लिए है?

15 August Independence Day | यह स्वतंत्रता या आजादी किसके लिए है?
दुनिया में लोकतंत्र का बहुत मूल्य है। इसी के अंतर्गत आपको व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपने अपने धर्म को मानने की आजादी मिली होती है। जो लोग कम्युनिस्ट चीन और उत्तर कोरिया में रहते हैं या जो धर्म आधारित कट्टरपंथी मुल्कों में रहते हैं उनका दर्द समझने के लिए आपको ज्यादा मेहनत करने की आवश्यकता नहीं होगी। बस एक बार वहां घुम कर आ जाइए आपको स्वतंत्रता का महत्व समझ में आ जाएगा, परंतु हमारे देश भारत में इसी स्वतंत्रता का जो दुरुपयोग हो रहा है वह चिंतनीय है।
 
 
1. अभिव्यक्ति की आजादी मिलना जरूरी है परंतु झूठे, कुतर्की और चालाक लोग इसी आजादी का जब विभिन्न माध्यमों से दुरुपयोग करते हैं तो निश्चित ही समाज में असंतोष, तनाव और हिंसा का माहौल निर्मित होता है। जो लोग ऐसा कर रहे हैं वे आने वाले समय में हमें उस और धकेल देंगे जहां किसी को कुछ भी बोलने की आजादी नहीं होगी।
 
 
2. व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी बहुत जरूरी है। आप आस्तिक बने या नास्तिक, आप गे बने या अपना जेंडर चेंज कर लें। आप हिन्दू बने या मुसलमान इसकी स्वतंत्रता होना जरूरी है। यह भी जरूरी है कि आप किस तरह के कपड़े पहनते हैं और किस तरह की लाइफ स्टाइल अपनाते हैं इससे राज्य और धर्म को कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। परंतु इसी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का जब कुछ लोग दुरुपयोग करते हैं तो निश्चित ही सभ्य समाज का एक तबका यह सोचने लगता है कि पाबंदियां जरूरी हैं या तानाशाही जरूरी है। आप व्यक्तिगत रूप से जैसे भी जीवन जीना चाहें जिएं परंतु इसके लिए आप सड़क पर इसका प्रदर्शन ना करें और इसके लिए दूसरों को न उकसाएं। यदि आप धर्मान्तरण कर रहे हैं तो आप गलत रास्तें पर हैं, यदि आप सभी गे लोग मिलकर राजधानी में अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं तो आप गलत रास्ते पर हैं। 
 
आप अपने व्यक्तिगत जीवन में कुछ भी करें परंतु यदि आपकी हरकतों के कारण किसी दूसरे की स्वतंत्रता में दखल होता है तो आप गलत रास्ते पर हैं। मसलन यह कि आप यदि सड़क पर नग्न निकल जाते हैं तो इससे जो सभ्य व्यक्ति अपने परिवार के साथ कहीं जा रहा है उसे दिक्कत होगी। आप इस पर सोच सकते हैं कि आपकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के क्या मायने हैं? अब तो आजादी के नाम पर आने वाले समय में समलिं‍गी लोगों को मान्यता देने के चलते सभ्य समाज आसपास के सभ्य वातावरण को भी खो देगा।
 
 
3.आजादी के 73 वर्ष बाद यदि हम अपनी स्वतंत्रता की समीक्षा करते हैं तो पता चलता है कि इस स्वतंत्रता का हमने कितना दुरुपयोग किया है। वर्तमान दौर में आम जनता यही सोचती है कि स्वतंत्र हैं नेता, गुंडे, नौकरशाह, धर्म के ठेकेदार, पुलिस और तमाम रसूखदार लोग, लेकिन स्वतंत्र नहीं हैं आम जनता। मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों की सड़कों पर अब रात में स्वतंत्र तफरी करने में डर लगता है। शहर और कस्बों में पुलिस, गुंडों और छुटभैये नेताओं की ही चलती है। सरेआप लड़कियों को मनचले लोग छेड़ते हैं और उनका रेप तक कर देते हैं तो यह सोचने वाली बात है कि यह स्वतंत्रता या आजादी किसके लिए है?
 
 
4. आजादी के आंदोलन के दौरान देश के लोगों में धर्म, भाषा या प्रांत को लेकर किसी भी प्रकार का अलगाववादी भाव नहीं था। वर्तमान दौर में बेशक हमने कई क्षेत्रों में उन्नति की है, लेकिन हमने विश्वास के आपसी रिश्तों और सामाजिक ताने-बाने को खो दिया है। खो दिया है आधी रात को स्वतंत्र घूमने के आनंद को। खो दिया है नकली भोज्य पदार्थों और नकली दवाइयों के युग में स्वस्थ रहने के अपने अधिकार को। 
 
 
5. सबसे ज्यादा दुःख तो इस बात का है कि जिस भारत भूमि के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना सर्वस्व स्वाहा कर दिया था उस भूमि से हमने उसका हरापन छीन लिया। छीन लिया उसके साफ और स्वच्छ आसमान से ताजा पवन के झोंके को। हमने हमारे ही पशु-पक्षियों की अनेक प्रजातियों को मारकर उन्हें लुप्त प्राय बना दिया। गौरय्या तो अब नजर नहीं आती। देशी पशु और पक्षियों की संख्या को हमने घटाकर विदेशी पशु और पक्षियों की संख्या को बढ़ाया है।
 
 
नदियों पर कई डेम बनाकर हमने उनके स्वाभाविक बहाव को रोककर उसकी प्राकृतिक संपदाओं को नष्ट कर दिया है। अब दौड़ती नहीं नर्मदा, गंगा भी अब पूजा-पाठ और श्राद्धकर्म के नाम पर दम तोड़ने लगी है। यमुना के तट पर वंशीवट के हाल बेहाल हैं। विकास के नाम पर पहाड़ों को भी मैदान बना दिए जाने का दुष्चक्र जारी है। पिघलते हिमालय पर अब कोई साधु-तपस्या के लिए नहीं जाता। जंगलों को बगीचे जैसा व्यवस्थित बनाकर लाभ का जंगल बनाए जाने का प्रस्ताव अभी विचाराधीन है।
 
 
6. चक्काजाम, बाजार बंद, रेल और ट्रेनें बंद, समूचा भारत आज बंद है। दंगों के कारण स्कूल, कॉलेज और सारे ऑफिस बंद। देशभर के डॉक्टरों की हड़ताल शुरू। बैंककर्मी अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरे। जमाखोरों की वजह से महंगाई हुई बेकाबू। भूख से पिछले साल हजारों लोगों की मौत हो गई। पहाड़ों और जंगलों को कटने से नहीं रोक रही सरकार। आरक्षण को लेकर हिंसक आंदोलन। बंगाल में नहीं खुलने देंगे फैक्टरी। तोड़फोड़, बसों में आग, फैक्टरी पर ताला। नहीं मिला अभी तक निर्भया जैसी कई लड़कियों को इंसाफ।... कांग्रेस ने फिर प्रधानमंत्री का अपमान, भाजपा ने नहीं ली किसानों की सुध।...शिवसेना ने फिर पकड़ा प्रातवाद का दामन। अन्नाद्रमुक ने फिर उगला हिन्दी के खिलाफ जहर।...हमारे न्यूज चैनलों की यही हेडलाइनें होती हैं।
 
 
7. जातिवादी और साम्प्रदायिक सोच, अलगाववाद, भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, अपराध, नेता और पुलिस की मनमानी, सूदखोर, जमाखोर, दुष्प्रचारक, पूंजीवादी और जनवादी सोच की चालाकी से भरी राजनीति यह सब देश की आजादी के दुश्मन हैं। क्या आप नहीं चाहेंगे कि आजादी के इन दुश्मनों के खिलाफ पुन: नया 'आजादी बचाओ आंदोलन छेड़ा जाए?'