हिन्दी कविता : फागुन मदमस्त
हुड़दंग गलियों में
उड़ रहे गुलाल
रंग हरे, पीले, लाल
ओ री सखी फागुन मदमस्त।
आंखें मलते
भर-भर लोटा रंग उड़ाते
हो रहे सराबोर
ओ री सखी फागुन मदमस्त।
रंग-बिरंगे नर-नारी
बाल हुए गुलाल
ओ री सखी फागुन मदमस्त।
धरती रंगीन
मानो हो रही बौछार
अनंत रंगों की आज
ओ री सखी फागुन मदमस्त।
भूल सभी व्यर्थ व्यथाएं
लग रहे गले
बांटते प्यार-मोहब्बत साथ
ओ री सखी फागुन मदमस्त।