कोना भर आसमान
काव्य-संसार
दीपाली पाटील मेरी खिड़की के कोने का आसमानबुझा-बुझा सा रहता नहीं कभी, इन्द्रधनुष सा रंग बदलता है,सिर्फ एक तस्वीर नहीं, अक्सर बतियाता है चाँदनी के साथ,पंछियों संग गाता है, क्षितिज केवल मृगतृष्णा नहीं धरती को समझाता है, आशाओं की बदरी बन बरसता हैजब कभी मुरझाता है मनमेरी खिड़की के कोने को दे जाता हैथोड़े स्वप्न थोड़ा अपनापन।