गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025
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Written By WD

नींद भी मेरे नयन

नींद भी मेरे नयन -
- नीर

ND
प्राण ! पहले तो हृदय तुमने चुराय
छीन ली अब नींद भी मेरे नयन क

बीत जाती रात हो जाता सबेरा,
पर नयन-पक्षी नहीं लेते बसेरा,
बन्द पंखों में किए आकाश-धरत
खोजते फिरते अँधेरे का उजेरा,
पंख थकते, प्राण थकते, रात थकत
खोजने की चाह पर थकती न मन की

छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की

स्वप्न सोते स्वर्ग तक अंचल पसारे,
डाल कर गल-बाँह भू, नभ के किनार
किस तरह सोऊँ मगर मैं पास आक
बैठ जाते हैं उतर नभ से सितारे,
और हैं मुझको सुनाते वह कहानी,
है लगा देती झड़ी जो अश्रु-घन की

सिर्फ क्षण भर तुम बने मेहमान घर में,
पर सदा को बस गए बन याद उर में,
रूप का जादू किया वह डाल मुझ प
आज मैं अनजान अपने ही नगर में,
किन्तु फिर भी मन तुम्हें ही प्यार करत
क्या करूँ आदत पड़ी है बालपन की

छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की

पर न अब मुझको रुलाओ और ज़्यादा,
पर न अब मुझको मिटाओ और ज़्यादा,
हूँ बहुत मैं सह चुका उपहास जग क
अब न मुझ पर मुस्कराओ और ज़्यादा,
धैर्य का भी तो कहीं पर अन्त है प्रिय !
और सीमा भी कहीं पर है सहन की।