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Written By WD Feature Desk
Last Modified: शनिवार, 4 जनवरी 2025 (11:48 IST)

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत 2025, जानिए महत्व, पूजा विधि और पारण का समय

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत 2025, जानिए महत्व, पूजा विधि और पारण का समय - pausha putrada ekadashi date time 2025
pausha putrada ekadashi date time 2025:पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस बार पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत 10 जनवरी 2025 शुक्रवार को रखा जाएगा। इसका पारण 11 जनवरी को सुबह 07:15 से 08:21 बजे के बीच होगा। एकादशी तिथि का प्रारंभ 09 जनवरी को दोपहर 12:22 बजे होगा और इसका समापन 10, 2025 को सुबह 10:19 बजे होगा। उदयातिथि के अनुसार 10 जनवरी को यह व्रत रखा जाएगा।
 
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व क्या है?
1. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करना चाहिए।
2. यह व्रत संतान प्राप्ति के अलावा संतान की समस्याओं के निवारण हेतु भी किया जाता है।
3. पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
4. संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करना उत्तम माना जाता है। संतान कामना के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की भी पूजा की जाती है।
5. यदि पूर्णमनोयोग से नि:संतान दंपति इस व्रत को करें तो उन्‍हें संतान सुख अवश्‍य मिलता है। संतान की प्राप्ति तथा उसके दीघार्यु जीवन के लिए पुत्रदा एकादशी का खास महत्व होता है।
6. यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है निर्जला और फलाहारी या जलीय व्रत। यदि आप स्वस्थ और उपवास करने में सक्षम हैं तो निर्जला व्रत रखें अन्यथा फलाहारी व्रत रखकर विधिवत पूजा के बाद समय पर इसका पारण करें।
 
पुत्रदा एकादशी पूजा विधि-Putrada Ekadashi 2025 Puja Vidhi 
  • पुत्रदा एकादशी व्रत करने वाले भक्तों को एकादशी के एक दिन पहले ही अर्थात् दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए। 
  • दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। 
  • सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करके शुद्ध व स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करके श्रीहरि विष्‍णु का ध्यान करना चाहिए। 
  • अगर आपके पास गंगाजल है तो पानी में गंगा जल डालकर नहाना चाहिए। 
  • इस पूजा के लिए श्रीहरि विष्णु की फोटो के सामने दीप जलाकर व्रत का संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करनी चाहिए। 
  • फिर कलश को लाल वस्त्र से बांधकर उसकी पूजा करें। 
  • भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा रखकर उसे स्नानादि से शुद्ध करके नया वस्त्र पहनाएं। 
  • तत्पश्चात धूप-दीप आदि से विधिवत भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना, आरती करें तथा नैवेद्य और फलों का भोग लगाकर प्रसाद वितरण करें। 
  • भगवान श्रीहरि को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि अर्पित करें।
  • पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार करें। 
  • इस दिन दीपदान करने का बहुत महत्व होने के कारण दीपदान अवश्य करें।
  • एकादशी की रात में भगवान का भजन-कीर्तन करते हुए समय बिताएं।
  • दूसरे दिन यानी पारण तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा देने के पश्चात ही स्वयं भोजन करें।
  • इस व्रत के पुण्य से व्रतधारी को तपस्वी, विद्वान, लक्ष्मीवान पुत्र प्राप्त होता है तथा सभी सुखों को भोगकर अंत में वैकुंठ प्राप्त होता है।
  • भगवान श्रीहरि विष्णु जी के मंत्रों का 108 बार जाप करें।
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