रविवार, 1 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015
  4. Arvind Kejriwal AAP Delhi
Written By Author जयदीप कर्णिक

आप की दिल्ली : पड़ावों पर पहुँचे सवाल

आप की दिल्ली : पड़ावों पर पहुँचे सवाल - Arvind Kejriwal AAP Delhi
लगभग अपराजेय रहे नरेन्द्र मोदी दिल्ली विधानसभा का चुनाव हार गए हैं। ये शायद उनके जीवन की पहली चुनावी हार है। हमने कुछ सवालों को नतीजे आने से पहले दिल्ली की सड़कों पर दौड़ते हुए पाया था। बाकी के सवाल तो एक पड़ाव पा गए हैं और उनके आगे और भी नए सवाल खड़े हो गए हैं। पर एक जवाब तय है, इसे मोदी जी की हार के रूप में ही देखा जाएगा। ये सारे तर्क कि उनके लिए तो जनादेश मई 2014 में ही आ चुका है और वो तो प्रधानमंत्री हैं और विधानसभा अलग मामला है या ये तो महज किरण बेदी की हार है, बेमानी हैं।
नरेंद्र मोदी ने ख़ुद अपने आप को इस मुकाबले के लिए प्रस्तुत किया। अमित शाह और तमाम दिग्गजों की मौजूदगी के बाद भी वो इस मुकाबले में छाए रहे। किरण बेदी को रणनीतिक तौर पर उतारे जाने का फैसला भी उनकी मंजूरी या सोच के बिना तो नहीं ही हुआ था। ख़ुद अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके लगातार विस्तार पाते आभामंडल से सीधा मुकाबला करने से डर रहे थे। वो चाह ही रहे थे कि ये मोदी बनाम केजरीवाल ना हो। दिल्ली के लोग दिसंबर 2013 से ही कह रहे हैं कि पीएम मोदी और सीएम केजरीवाल। पर फिर भी नरेंद्र मोदी ख़ुद सीधे मुकाबले में उतरे और केजरीवाल जीते। ख़ुद मोदी जी अगर इसे स्वीकार करते हैं तो वो अधिक विनम्र और बड़े नेता बनकर उभरेंगे। नहीं तो कांग्रेस की ही परंपरा का पालन होगा जहाँ प्रचार की पूरी कमान संभालने के बाद भी राहुल गाँधी कभी हार के लिए ज़िम्मेदार नहीं होते। केजरीवाल कहकर उनकी आँख से काजल चुराकर ले गए हैं।
 

बहरहाल बहुचर्चित दिल्ली विधानसभा चुनावों में महज दो साल पुरानी आम आदमी पार्टी ने केंद्र और 10 से अधिक राज्यों में शासन करने वाली भारतीय जनता पार्टी को पटखनी दे दी है। दिल्ली ने अब दिसंबर 2013 में ‘आप’ को पूर्ण बहुमत ना दे पाने की भूल सुधार ली है। अब बारी अरविन्द केजरीवाल की है। उन्हें 49 दिनों में की गई अपनी ग़लतियों को भी सुधारना होगा। वो दिल्ली से भाग खड़े होने और पूरे देश में छा जाने की अपनी उच्च महत्वाकांक्षा में खो जाने की सबसे बड़ी ग़लती के लिए माफी माँग चुके हैं। दिल्ली की जनता को उन्हें माफ करने के लिए पर्याप्त समय भी मिला। भाजपा ने अपनी ग़लतियों से जनता को आम आदमी पार्टी की तरफ धकेल दिया। अरविन्द केजरीवाल ने इन तमाम कारणों के साथ आख़िर राख़ में दबी चिंगारी को फिर हवा दे दी है। अब इसे बदलाव के शोलों में तब्दील करना पूरी तरह से उनके ही हाथ में है। विपक्ष के लिए मुफीद नज़र आने वाले केजरीवाल सत्ता भी ठीक से चला सकते हैं ये उन्हें ही साबित करना है। आम आदमी पार्टी पर लगे 'आम राजनीति' के दाग भी उन्हें ही धोने हैं। 
 
इस जीत ने आम आदमी पार्टी को तो जिताया है, लोकतंत्र को भी जिताया है और उसे परिपक्व भी किया है। देश का वोटर स्थानीय और राष्ट्रीय चुनावों में कितना साफगोई से फर्क कर पाता है ये उसने बता दिया है। ये भी कि जनता माफ करना भी जानती है। जैसे लोकसभा चुनावों में तमाम आरोपों और गुजरात दंगों के दाग हवा में उछाले के जाने के बाद भी मोदी जी को पूर्ण बहुमत दिया। दिल्ली में तो 7-0 कर दिया। ऐसे ही जनता ने अरविन्द केजरीवाल को भी माफ कर दिया। मोदी-शाह के विजय रथ के सामने घुटने टेके खड़ी कांग्रेस को केजरीवाल और उनके साथियों से सबक लेना चाहिए और इस लोकतंत्र की ताकत में अधिक भरोसा करना चाहिए। आम आदमी पार्टी ने ज़मीनी कार्य से इस ताकत का फायदा उठाया। उन्हें ऐसी सफलता मिलेगी ये ख़ुद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा। 
 
अब जहाँ इस करारी हार के बाद भाजपा को कांग्रेस बने बगैर ईमानदारी से आत्ममंथन करना होगा, सत्ता के दंभ से बचना होगा, वहीं आम आदमी पार्टी को भी सत्ता के नशे से बचने के डोज़ अभी से लेना शुरू कर देना चाहिए। नहीं तो जैसा कि आदरणीय स्व. राजेन्द्र माथुर जी लिखते थे - सत्ता में आने के बाद हर पार्टी कांग्रेस बन जाती है।  अब देखना ये है कि दिल्ली के अच्छे दिन आते हैं या नहीं.... शुभकामना दिल्ली.... आप की दिल्ली।