गुरुवार, 14 नवंबर 2024
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जल संग्रह गहरा हो ऊंचा नहीं

जल संग्रह गहरा हो ऊंचा नहीं - Water, water collection, water source
- विवेक रंजन श्रीवास्तव

पानी जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। सारी सभ्यताएं नैसर्गिक जल स्रोतों के तटों पर ही विकसित हुई हैं। बढ़ती आबादी के दबाव में तथा औद्योगिकीकरण से पानी की मांग बढ़ती ही जा रही है। इसलिए भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है और परिणामस्वरूप जमीन के अंदर पानी के स्तर में लगातार गिरावट होती जा रही है।
 
नदियों पर हर संभावित प्राकृतिक स्थल पर बांध बनाए गए हैं। बांधों की ऊंचाई को लेकर अनेक जनआंदोलन हमने देखे हैं। बांधों के दुष्परिणाम भी हुए, जंगल डूब में आते चले गए और गांवों का विस्थापन हुआ। बढ़ती पानी की मांग के चलते जलाशयों के बंड रेजिंग के प्रोजेक्ट जब तब बनाए जाते हैं। अब समय आ गया है कि जलाशयों, वॉटर बॉडीज, शहरों के पास नदियों को ऊंचा नहीं गहरा किया जाए। 
 
यांत्रिक सुविधाओं व तकनीकी रूप से विगत दो दशको में हम इतने संपन्न हो चुके हैं कि समुद्र की तलहटी पर भी उत्खनन के काम हो रहे हैं। समुद्र पर पुल तक बनाए जा रहे हैं बिजली और ऑप्टिकल सिग्नल केबल लाइनें बिछाई जा रही हैं। तालाबों, जलाशयों की सफाई के लिए जहाजों पर माउंटेड ड्रिलिंग, एक्सकेवेटर, मडपम्पिंग मशीनें उपलब्ध हैं। कई विशेषज्ञ कम्पनियां इस क्षेत्र में काम करने की क्षमता सम्पन्न हैं। 
 
मूलतः इस तरह के कार्य हेतु किसी जहाज या बड़ी नाव, स्टीमर पर एक फ्रेम माउंट किया जाता है जिसमें मथानी की तरह का बड़ा रिग उपकरण लगाया जाता है, जो जलाशय की तलहटी तक पहुंचकर मिट्टी को मथकर खोदता है, फिर उसे मड पम्प के जरिए जलाशय से बाहर फेंका जाता है। नदियों के ग्रीष्मकाल में सूख जाने पर तो यह काम सरलता से जेसीबी मशीनों से ही किया जा सकता है।
 
नदी और बड़े नालों में भी नदी की ही चौड़ाई तथा लगभग एक किलोमीटर लम्बाई में चम्मच के आकार की लगभग दस से बीस मीटर की गहराई में खुदाई करके रिजरवायर बनाए जा सकते हैं। इन वॉटर बॉडीज में नदी के बहाव का पानी भर जाएगा, ऊपरी सतह से नदी का प्रवाह भी बना रहेगा जिससे पानी का ऑक्सीजन कंटेंट पर्याप्त रहेगा। 2 से 4 वर्षों में इन रिजरवायर में धीरे-धीरे सिल्ट जमा होगी, जिसे इस अंतराल पर ड्रोजर के द्वारा साफ करना होगा। नदी के क्षेत्रफल में ही इस तरह तैयार जलाशय का विस्तार होने से कोई भी अतिरिक्त डूब क्षेत्र जैसी समस्या नहीं होगी। जलाशय के पानी को पम्प करके यथा आवश्यकता उपयोग किया जाता रहेगा।
 
अब जरूरी है कि अभियान चलाकर बांधों में जमा सिल्ट ही न निकाली जाए वरन जियालॉजिकल एक्सपर्ट्‍स की सलाह के अनुरूप बांधों को गहरा करके उनकी जल संग्रहण क्षमता बढ़ाई जाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाएं। शहरों के किनारे से होकर गुजरने वाली नदियों में ग्रीष्म‌‌काल में जलधारा सूख जाती है, हाल ही में पवित्र क्षिप्रा के तट पर संपन्न उज्जैन के सिंहस्थ के लिए क्षिप्रा में नर्मदा नदी का पानी पम्प करके डालना पड़ा था। यदि क्षिप्रा की तली को गहरा करके जलाशय बना दिया जाए तो उसका पानी स्वतः ही नदी में बारहों माह संग्रहित रहेगा। 
 
इस विधि से बरसात के दिनों में बाढ़ की समस्या से भी किसी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है। इतना ही नहीं गिरते हुए भूजल स्तर पर भी नियंत्रण हो सकता है क्योंकि गहराई में पानी संग्रहण से जमीन रिचार्ज होगी, साथ ही जब नदी में ही पानी उपलब्ध होगा तो लोग ट्यूबवेल का इस्तेमाल भी कम करेंगे। इस तरह दोहरे स्तर पर भूजल में वृद्धि होगी।
 
नदियों व अन्य वॉटर बॉडीज के गहरीकरण से जो मिट्टी व अन्य सामग्री बाहर आएगी उसका उपयोग भी भवन निर्माण, सड़क निर्माण तथा अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में किया जा सकेगा। वर्तमान में इसके लिए पहाड़ खोदे जा रहे हैं, जिससे पर्यावरण को व्यापक स्थाई नुकसान हो रहा है, क्योंकि पहाड़ियों की खुदाई करके पत्थर व मुरम तो प्राप्त हो रही है, पर इन पर लगे वृक्षों का विनाश हो रहा है एवं पहाड़ियों के खत्म होते जाने से स्थानीय बादलों से होने वाली वर्षा भी प्रभावित हो रही है। 
            
नदियों की तलहटी की खुदाई से एक और बड़ा लाभ यह होगा कि इन नदियों के भीतर छिपी खनिज संपदा का अनावरण सहज ही हो सकेगा। छत्तीसगढ़ में महानदी में स्वर्ण कण मिलते हैं, तो कावेरी के तले में प्राकृतिक गैस, इस तरह के अनेक संभावना वाले क्षेत्रों में विशेष उत्खनन भी करवाया जा सकता है। 
            
पुरातात्विक महत्व के अनेक परिणाम भी हमें नदियों तथा जलाशयों के गहरे उत्खनन से मिल सकते हैं, क्योंकि भारतीय संस्कृति में आज भी अनेक आयोजनों के अवशेष नदियों में विसर्जित कर देने की परंपरा हम पाले हुए हैं। नदियों के पुलों से गुजरते हुए जाने कितने ही सिक्के नदी में डाले जाने की आस्था जनमानस में देखने को मिलती है। निश्चित ही सदियों की बाढ़ में अपने साथ नदियां जो कुछ बहाकर ले आई होंगी, उस इतिहास को अनावृत्‍त करने में नदियों के गहरीकरण से बड़ा योगदान मिलेगा। 
            
पन बिजली बनाने के लिए अवश्य ऊंचे बांधों की जरूरत बनी रहेगी, पर उसमें भी रिवर्सिबल रिजरवायर, पम्प टरबाइन टेक्नीक से पीकिंग अवर विद्युत उत्पादन को बढ़ावा देकर गहरे जलाशयों के पानी का उपयोग किया जा सकता है। 
            
मेरे इस आमूल मौलिक विचार पर भूवैज्ञानिक, राजनेता, नगर व ग्राम स्थानीय प्रशासन, केंद्र व राज्य सरकारों को तुरंत कार्य करने की जरुरत है, जिससे महाराष्ट्र जैसे सूखे से देश बच सके कि हमें पानी की ट्रेनें न चलानी पड़े, बल्कि बरसात में हर क्षेत्र की नदियों में बाढ़ की तबाही मचाता जो पानी व्यर्थ बह जाता है तथा साथ में मिट्टी बहा ले जाता है, वह नगर-नगर में नदी के क्षेत्रफल के विस्तार में ही गहराई में सालभर संग्रहित रह सके और इन प्राकृतिक जलाशयों से उस क्षेत्र की जल आपूर्ति वर्षभर हो सके। 
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