Indians Fighting for Russia in Ukraine: भाड़े के सैनिकों वाली निजी सेना 'वागनर ग्रुप' के मालिक येवगेनी प्रिगोशिन की अगस्त 2023 में मृत्यु के बाद से, रूसी सेना में नए रंगरूटों का भारी अकाल पड़ गया है। अतः धोखाधड़ी से या धन व रूसी नागरिकता का प्रलोभन देकर विदेशियों को सेना में धड़ल्ले से भर्ती किया जा रहा है। रूसी पासपोर्ट और ढेर सारे पैसे की आशा में, भारत और नेपाल के कई युवा, बेईमान बिचौलियों के झांसे में आ कर इन दिनों नौकरी-धंधे के लिए रूस जाते हैं और वहां स्वयं को अचानक यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के मोर्चे पर पाते हैं।
मॉस्को स्थित भारतीय दूतावास ने, मार्च के पहले सप्ताह में, मोहम्मद असफान नाम के एक भारतीय की यूक्रेन में मौत हो जाने की पुष्टि की। भारत में उसकी पत्नी और दो बच्चे हैं। वह हैदराबाद का निवासी था। बताया जाता है कि वह दुबई में नौकरी दिलाने के एक दलाल के झांसे में आ गया था।
दुबई के बदले दोनबास में : कश्मीर का 31 वर्षीय आज़ाद यूसुफ़ कुमार, पिछले साल दिसंबर में, घरेलू नौकर के तौर पर काम करने के लिए दुबई जाना चाहता था। इसके लिए यूट्यूब के माध्यम से मिले एक एजेंट को 3 लाख रुपए दिए। उसके परिवार का किंतु कहना है कि वह दुबई के बदले रूस में है। वहां रूसी सेना के एक प्रशिक्षण शिविर में उसे पैर पर गोली मारने के बाद यूक्रेन से लड़ने के लिए मोर्चे पर भेज दिया गया। घर वालों को उसने बताया कि उसकी यूनिट में जो दूसरे लोग हैं, वे भी अधिकतर भारत और नेपाल के ही हैं। उन्हें भी उसी की तरह ठगा गया है।
कुछ इसी प्रकार की कहानी गुजरात में सूरत के निवासी 23 वर्षीय हेमिल अश्विन भाई मंगूकिया की भी है। गत 21 फ़रवरी को उसकी यूक्रेन में मृत्यु हो गई। उसने यूट्यूब पर एक वीडियो देखकर रूस में एक अच्छी नौकरी पाने का सपना पाला था। उसे एक रूसी कंपनी में नौकरी मिली भी। किंतु, बाद में कथित तौर पर धोखे से, सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त करने और 'वागनर ग्रुप' की ओर से लड़ने के लिए यूक्रेन में भेज दिया गया। वहां वह एक यूक्रेनी मिसाइल का शिकार बन गया।
सात भारतीय युवाओं की गुहार : मीडिया में एक ऐसा वीडियो भी देखने में आया है, जिसमें पंजाब के 7 भारतीय युवा, मदद की गुहार लगा रहे थे। उनका कहना था कि वे पर्यटकों के तौर पर नववर्ष के समय रूस की यात्रा कर रहे थे। तभी एक एजेंट उन्हें रूस के पड़ोसी देश बेलारूस ले गया। वहां की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर रूसी अधिकारियों को सौंप दिया।
रूसी अधिकारियों ने उनसे कई दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करवाए। उनसे कहा गया कि या तो हम दस साल के लिए जेल जाएं या हेल्पर, ड्राइवर और रसोइये की नौकरी के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर करें। इसलिए हमने हस्ताक्षर कर दिए। इन सातों में से एक की गगनदीप सिंह के तौर पर पहचान हुई है। वीडियो में वह कहता सुनाई पड़ता है कि वे हमें यूक्रेन के विरुद्ध लड़ने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
भारत में पुलिस की छापेमारी : भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इन्हीं दिनों कहा कि भारत के अधिकारी ऐसे बेईमान दलालों की नकेल कस रहे हैं, जो झूठे वादे करके युवाओं को भर्ती करते हैं। पुलिस ने कई शहरों में छापेमारी कर सबूत भी जुटाए हैं। कई दलालों पर मानव तस्करी के मामले चल रहे हैं।
प्रवक्ता ने कहा कि भारत अपने लोगों को वापस लाने की पूरी कोशिश कर रहा है। कुल 20 भारतीय भाड़े के सैनिकों के बारे में सूचना मिली है– "हम उनका पता लगाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। हम रूसी अधिकारियों के संपर्क में हैं। इन्हें शीघ्र ही रिहा करने का हमने उनसे आग्रह किया है।
CBI भी सक्रिय : बताया जाता है कि भारत की CBI ने नौकरी दिलाने के नाम पर मानव तस्करी करने वाले कई ऐजेंटों-दलालों की धरपकड़ की है। रूस गए भारतीय नगरिकों को लड़ना-भिड़ना सिखाने के अब तक 35 मामले मिले हैं। 7 मार्च को पुलिस ने भारत के कई शहरों में छापेमारी कर सबूत भी जुटाए हैं। अटकलें तो यह भी लगाई जा रही हैं कि रूस की ओर से स्वेच्छा या अनिच्छा से लड़ रहे भारतीय भाड़े के सैनिकों की संख्या दहाइयों में नहीं, सैकड़ों में है।
भारतीयों से भी अधिक भारत के पड़ोसी देश नेपाल के नागरिक रूसी धोखाधड़ी के शिकार बने हैं। इस कारण नेपाल सरकार ने अपने नागरिकों द्वारा रूस या यूक्रेन के लिए काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। गरीबी और बेरोजगारी से परेशान नेपाली, दुनिया में लगभग हर जगह काम करने के लिए तत्पर रहते हैं। वे अच्छी कमाई के झूठे वादों पर सरलता से विश्वास कर लेते हैं।
कई नेपाली युद्ध की बलि चढ़े : आधिकारिक तौर पर 12 नेपाली, रूसी-यूक्रेनी युद्ध की बलि चढ़े हैं, अनाधिकारिक तौर पर यह संख्या कम से कम 19 है। बताया जाता है कि जिस यूक्रेनी मिसाइल से भारत के हेमिल अश्विनभाई मंगूकिया की मृत्यु हुई थी, उसी से एक नेपाली नागरिक की भी मृत्यु हुई। भारतीयों की तरह नेपालियों से भी रूसी भाषा के ऐसे दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करवाए गए, जिन्हें वे पढ़ और समझ नहीं सकते थे। हस्ताक्षर के बाद सभी विदेशियों के पासपोर्ट ले लिए जाते हैं, ताकि वे रूस छोड़कर भाग न सकें।
रूसियों के हाथों में बंधक बन जाने का पता उन्हें तब चलता है, जब उन्हें यूक्रेन के साथ युद्ध के किसी मोर्चे पर भेज दिया जाता है। उनसे कहा जाता है कि या तो वे एक साल तक रूसी सेना के लिए लड़ें, या फिर एक साल तक जेल में सड़ें। हथियारों के इस्तेमाल की अधिकतर दो सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद उन्हें युद्धभूमि पर भेज दिया जाता है।
एजेंटों की रूस से मिलीभगत : नेपाल में रोल्पा के नन्दराम पून एक ऐसा ही उदाहरण हैं। इस समय एक रूसी अस्पताल में हैं। ब्रिटिश दैनिक 'गार्डियन' के साथ टेलीफ़ोन पर एक बातचीत में उन्होंने बताया कि वे नेपाल में सोशल मीडिया के एक एजेंट से मिले थे। उसने जर्मनी में काम दिलाने का वादा किया था। कहा था कि उन्हें हवाई जहाज से रूस होते हुए जर्मनी जाना है। रूस में केवल 'ट्रांज़िट स्टॉप' है।
लेकिन, मॉस्को हवाई अड्डे पर जो व्यक्ति नन्दराम पून को लेने आया था, वह उन्हें सेना के एक प्रशिक्षण शिविर में ले गया। वहां उन्हें जीवन में पहली बार बंदूक चलाना सीखना पड़ा। तब उनकी समझ में आया कि उन्हें किस तरह ठगा गया है। जल्द ही उन्हें पूर्वी यूक्रेन के बाख़मूत शहर वाले मोर्चे पर भेज दिया गया। बाख़मूत में रूसी-यूक्रेनी युद्ध की एक सबसे घनघोर लड़ाई हुई है। वहां जिस बंकर में रूसी सैनिक और उनका कमांडर था, उसमें पहले से ही 2 भारतीय और 4 नेपाली भी थे।
यूक्रेनी ड्रोन का हमला : कड़ाके की सर्दियों वाली एक रात, जब बाहर खूब बर्फ पड़ी थी, नन्दराम पून को कुछ हथियार एक दूसरी जगह पहुंचाने थे। ठीक उसी समय एक यूक्रेनी ड्रोन ने हमला कर दिया। ड्रोन द्वारा दागी गई ग्रेनेडों के छर्रों ने उनके पैरों, जांघों और दाहिने हाथ को लहूलुहान कर दिया। उन्हें पहले तो मोर्चे से बहुत दूर, रूस के दागेस्तान प्रदेश के एक अस्पताल में भर्ती किया गया। पर, बाद में ऐसी-ऐसी जगहों पर ले जाया गया, जिन के नाम रूसी भाषा नहीं जानने के कारण वे नहीं जानते।
नन्दराम पून ने 'गार्डियन' को बताया कि कई दूसरे नेपाली भाड़े के सैनिक भी अभी अस्पतालों में हैं। एक का कोई अता-पता नहीं है और एक भागने के प्रयास के कारण जेल में है। पून स्वस्थ नहीं होना चाहते, क्योंकि तब उन्हें फिर किसी मोर्चे पर भेज दिए जाने का डर है।
मेडिकल की पढ़ाई के बदले मोर्चे पर लड़ाई : नेपाल का एक 22 वर्षीय छात्र, सिद्धार्थ धाकल मेडिकल की पढ़ाई के लिए जब रूस पहुंचा, तो उसने पाया कि उसे एक ऐसे जाल में फंसा दिया गया है कि रूसी सेना की सेवा करने के बदले उसके पास कोई विकल्प ही नहीं है। उसे भी यूक्रेन से लड़ने के लिए मोर्चे पर भेज दिया गया। वहां पिछले वर्ष नवंबर में यूक्रेनी सैनिकों ने उसे युद्धबंदी बना लिया।
नेपाली सरकार भी रूस में फंसे हुए अपने नागरिकों को वापस लाने का प्रयास कर रही है, पर उसे यही नहीं मालूम है कि उसके कितने नागरिक वहां संकटग्रस्त हैं। नेपाली विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने वहां के मीडिया को बताया कि नेपाल के 245 परिवारों ने शिकायत की है कि उनका कोई न कोई सदस्य रूसी सेना के चंगुल में है। 5 और ऐसे परिवार हैं, जिनके घर का कोई सदस्य किसी रूसी जेल में बंद है।
रूस को हुई है भारी क्षति : आधिकारिक तौर पर कोई नहीं जानता कि यूक्रेन के साथ युद्ध में रूस अब तक कितने सैनिक गंवा चुका है। ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय का अनुमान है कि अब तक मारे गए और घायल हुए रूसी सैनिकों की कुल संख्या कम से कम 3,55,000 है। यह रूस के लिए बहुत बड़ी क्षति है, हालांकि तब भी उसके पास कुल करीब 10 लाख सैनिक हैं।
दूसरी ओर, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने 24 फ़रवरी, 2024 को एक पत्रकार सम्मेलन में दावा किया कि उनके देश के विरुद्ध युद्ध में अब तक कुल मिलाकर 1,80,000 रूसी सैनिक मरे हैं। दो वर्षों से चल रहे इस युद्ध में मारे गए यूक्रानी सैनिकों की संख्या राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने केवल 31,000 बताई। असली संख्या तब भी कहीं अधिक होनी चाहिए।
नेपाली परिवारों के लिए मुआवज़े : रूसी अधिकारियों ने मोर्चे पर मारे गए नेपालियों के परिवारों के लिए मुआवज़े की पेशकश की है। 2022 के अंत में, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें विदेशी भाड़े के सैनिकों को रूसी नागरिकता और प्रतिमाह लगभग 2,185 डॉलर के बराबर वेतन देने का वादा किया गया था।
कहने की आवश्यकता नहीं कि ये दोनों प्रलोभन भारत और नेपाल के सामान्य लोगों को ललचाने के लिए बहुत बड़ा आकर्षण हैं। हर व्यक्ति यह नहीं सोच पाता कि यह प्रलोभन कितना जानलेवा सिद्ध हो सकता है। हर व्यक्ति यह भी नहीं सोच पाता कि विदेशों में काम दिलाने का सब्ज़बाग दिखाने वाले एजेंट या दलाल बहुत बड़े धोखेबाज़ और यमदूत भी हो सकते हैं। सच्चाई यह भी है कि रूस के लिए केवल भारत और नेपाल के ही नहीं, बहुत से देशों के भाड़े के सैनिक लड़ रहे हैं।