शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. कोरोना वायरस
  4. How Britain fought with Coronavirus
Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला
Last Updated : सोमवार, 14 दिसंबर 2020 (09:12 IST)

Special Story : ब्रिटेन में इस तरह लड़ी जा रही है Corona महामारी से जंग

Special Story : ब्रिटेन में इस तरह लड़ी जा रही है Corona महामारी से जंग - How Britain fought with Coronavirus
कोरोना (Coronavirus) महामारी से दुनिया का कोई भी देश अछूता नहीं है। छोटे और गरीब अफ्रीकी देशों से  से लेकर दुनिया का 'महाशक्तिमान' अमेरिका जैसा देश भी इसकी मार से नहीं बच पाया। विश्व में 7 करोड़ से ज्यादा लोग जहां इस घातक बीमारी से संक्रमित हो चुके हैं, वहीं 16 लाख से अधिक काल के गाल में समा चुके हैं। ब्रिटेन की बात करें तो यहां करीब 18 लाख संक्रमित हुए हैं, जबकि 64 हजार के लगभग लोगों की मौत हो चुकी है। नेशनल हेल्थ सर्विसेस, यूके के डॉक्टर राजीव मिश्रा ने कोरोना काल में अपने अनुभवों को वेबदुनिया से साझा करते हुए बताया कि किस तरह ब्रिटेन में इस महामारी के खिलाफ जंग लड़ी जा रही है।
 
भारतीय सेना में मेजर रहे डॉक्टर राजीव मिश्रा ने वेबदुनिया से खास बातचीत में बताया कि एक डॉक्टर के लिए कोरोना एक चुनौती है। यह सिर्फ प्रोफेशनल ही नहीं, एक वैयक्तिक और चारित्रिक चुनौती भी है। कुछ लोग डर रहे हैं, कुछ डर से लंबी छुट्टी पर चले गए हैं और मरीज देखना बंद कर दिया है। पर ज्यादातर डॉक्टर इस डर और सैकड़ों सहकर्मियों की मृत्यु के बाद भी अपने काम पर डटे हैं।
यह दौर एक ऐतिहासिक दृष्टि भी देता है कि प्लेग और कॉलरा जैसी महामारियों के समय में डॉक्टरों की भूमिका कितनी साहसिक रही होगी। साथ ही यह पब्लिक हेल्थ सिस्टम की समीक्षा करने का और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश को बढ़ाने का भी उचित अवसर भी है।

ब्रिटिश लोगों से सीखें अनुशासन : डॉ. राजीव कहते हैं कि हर काल में हर देश और सभ्यता के लिए एक दूसरे से सीखने को बहुत कुछ है। ब्रिटेन की जनता ने जिस अनुशासन से नियम माने हैं, अव्यवस्था नहीं फैलाई और प्रशासन से सहयोग किया है वह अवश्य सीखने लायक है। अगर वह अनुशासन हमारे यानी भारतीय लोगों में रहा होता तो हम संभवतः इस महामारी से पूरी तरह बच सकते थे क्योंकि हमारी सरकार ब्रिटेन से बहुत पहले इस समस्या के प्रति गंभीर हो गई थी। दूसरी तरफ भारतीयों में कष्टों और असुविधाओं के बीच भी निश्चिंत और निर्द्वंद्व रह पाने की जो क्षमता है, दुनिया को उससे ईर्ष्या हो सकती है।
डॉ. मिश्रा कहते हैं कि अंग्रेज़ी पब्लिक की यह विशेषता है कि वह सामान्यतः नियमों का पालन सहजता से करती है। किसी भी नियम को बनाकर पब्लिक को बता दिया जाता है तो उसके पालन के लिए पुलिस को डंडा लेकर खड़ा नहीं होना पड़ता है। मैं मजाक में कहता हूं कि अगर सरकार नियम बना दे कि जूते हाथ में पहने जाएं तो लोग जूते हाथ में पहनकर चलेंगे। सुनने में यह हास्यास्पद लग सकता है पर यह अनुशासन और नियम पालन एक सीखने लायक चीज है। सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क का प्रयोग...हर स्तर पर...यह मूल मंत्र रहा। 
 
 
उन्होंने कहा कि स्कूल पहली वेव के बाद खुल गए और दूसरी वेव में बंद नहीं हुए, पर क्लासेस को इस तरह रखा गया कि स्कूलों में भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया, जो बच्चों के बीच असंभव सा लगता है। दुकानों में भी लोग कतार बनाकर अपनी बारी का इंतज़ार करते दिखे। जो दफ्तर खुले उनमें भी सोशल डिस्टेंसिंग का खयाल रखा गया। बंद कमरों में भी मास्क पहनने का ध्यान रखा गया।

डॉ. मिश्रा कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि यहां मृत्यु दर अधिक होने का कारण इम्युनिटी का कमजोर होना है, बल्कि सबसे बड़ा कारण शायद यह रहा कि यहां बूढ़े लोगों की पॉपुलेशन भारत से ज्यादा है और बूढ़े लोगों में कोरोना की मृत्यु दर सबसे अधिक रही है।

भारी पड़ा हग ए चाइनीज : मेजर मिश्रा कहते हैं कि यह वायरस चीन से निकला है, इसमें तो शंका नहीं है। बाकी, चीन ने इसे 'फैलाया' है या नहीं, इस पर प्रामाणिकता से कुछ कहा नहीं जा सकता। वैसे इसे चीन से बाहर फैलाने में जिस एक विचारधारा की भूमिका रही है, उस विचारधारा का चीन से वैचारिक संबंध अवश्य है। 
 
चीन से बाहर यह इटली के फ्लोरेंस शहर में फैला, जहां के वामपंथी मेयर डारिओ नॉरडेला ने वहां के लोगों को कहा कि वे चीन से लौटने वाले यात्रियों से भेदभाव ना करें और उनसे गले लगकर सेल्फी लें और सोशल मीडिया पर पोस्ट करें।
 
उनके इस 'हग ए चाइनीज' ट्विटर कैंपेन के बाद फ्लोरेंस में और फिर पूरे इटली और यूरोप में यह संक्रमण फैला। भारत में भी वाम विचारधारा के गुटों और नेताओं ने दिल्ली और मुंबई में मजदूरों की भगदड़ फैलाने और इस बीमारी को पूरे देश में फैलने में भूमिका निभाई है। तो इस आपदा को एक राजनीतिक अवसर में बदलने का लालच भी दिखाई देता है और उस विचारधारा का चीन से संबंध जोड़ा जा सकता है।

कोरोनाकाल में भारत और ब्रिटेन की सरकारों के प्रबंधन पर चर्चा करते हुए डॉ. राजीव मिश्रा कहते हैं कि भारत ने इस दौर में आशा से बहुत बेहतर प्रबंधन किया। अतीत की सरकारों में हमने आपदा प्रबंधन को सरकारी लूट के अवसरों में ही बदलते देखा था। पर अभी इस संकट में भारत में कार्य संस्कृति में मूलभूत बदलाव दिखाई दिए। जनता में भी एक सकारात्मक परिवर्तन और देश के लिए एक चिंता और लगाव दिखाई दिया। 
 
मूल अंतर यह रहा कि महामारी के शुरुआती दिनों में इंग्लैंड में एक अव्यवस्था और अनिर्णय का माहौल था।  इंग्लैंड उस समय BREXIT से निबटने में लगा था। भारत में महामारी की बिलकुल शुरुआत में लॉकडाउन लगा दिया गया जिससे पहली वेव हमारे यहां देर से आई और जनसंख्या के अनुपात में असर काफी कम रहा। वहीं इंग्लैंड थोड़ी देर से जागा।
 
वहीं, दूसरा अंतर यह रहा कि भारत में कुछ लोगों और राजनीतिक ताकतों ने जानबूझ कर सरकार को विफल करने के लिए देश को महामारी में झोंकने के लिए और अव्यवस्था फैलाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। जानबूझ कर कुछ लोगों ने लोगों की भीड़ जुटाई और मजदूरों का विस्थापन और पलायन करवाया। उसके बावजूद हम काफी हद तक उसके दुष्परिणामों से बचे रहे।
 
दूसरी तरफ इंग्लैंड में धीमी शुरुआत के बावजूद ऐसे कोई नकारात्मक तत्व उतने सक्रिय नहीं हुए और सरकार को बिगड़ी स्थिति को संभालने का मौका मिला। इस संकट में या किसी भी राष्ट्रीय संकट में भारत की सबसे बड़ी चुनौती इन नकारात्मक राजनीतिक तत्वों को नियंत्रित करने की होगी। (फोटो सौजन्य : डॉ. राजीव मिश्रा)
 
ये भी पढ़ें
चीन से चल रहे तनाव के बीच बड़ा फैसला, 15 दिनों के युद्ध के लिए हथियार व गोला-बारूद स्टॉक कर सकेंगे रक्षाबल