निर्माता : विजय गलानी निर्देशक : अनिल शर्मा गीत : गुलजार संगीत : साजिद-वाजिद कलाकार : सलमान खान, ज़रीन खान, सोहेल खान, मिथुन चक्रवर्ती, जैकी श्रॉफ, लिसा, पुरु राजकुमार यू/ए * 10 रील * दो घंटे 39 मिनट रेटिंग : 3/5
बॉलीवुड में बनने वाली वर्तमान फिल्मों में से वह हीरो गायब हो गया जो लार्जर देन लाइफ हुआ करता था। जिसका शरीर फौलाद का और दिल सोने का हुआ करता था। जो अपनी बात का पक्का हुआ करता था। अपना हर वादा निभाता था। कमजोर पर अपनी ताकत का जोर नहीं दिखाता था। उसके कुछ सिद्धांत हुआ करते थे। लोग जिसे पूजते थे। उस हीरो को निर्देशक अनिल शर्मा ‘वीर’ में वापस लाए हैं।
अनिल शर्मा को लार्जर देन लाइफ फिल्म बनाना पसंद है। धर्मेन्द्र (हुकूमत) और सनी देओल (गदर) के साथ सफल फिल्म वे दे चुके हैं। इस बार वे सलमान खान के साथ हैं। इस तरह की फिल्में सुपरस्टार के साथ ही बनाई जा सकती है तभी विश्वसनीयता पैदा होती है और दर्शक आँख मूँदकर विश्वास कर लेते हैं कि उनका हीरो कुछ भी कर सकता है।
इस फिल्म की कहानी सलमान खान ने लिखी है और वो भी लगभग 20 बरस पहले। फिल्मों में आने के पहले ‘धरमवीर’, ‘राजतिलक’, ‘मर्द’ जैसी मसाला फिल्में उन्होंने देखी होगी, जिनमें नायक सर्वेसर्वा होता था। शायद सलमान खान पर भी इस तरह की फिल्मों का असर हुआ और उनकी लिखी ‘वीर’ में इन फिल्मों की झलक मिलती है।
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कहानी पिंडारी नामक समूह की है, जिनके साथ माधवगढ़ का राजा (जैकी श्रॉफ) अँग्रेजों के साथ मिलकर धोखा करता है। अपने पिता के अपमान का बदला वीर (सलमान खान) लेना चाहता है। अँग्रेजों के छल, कपट सीखने के लिए वह लंदन पढ़ने भी जाता है। लेकिन इसी बीच उसे माधवगढ की राजकुमारी यशोधरा (ज़रीन खान) से प्यार हो जाता है। एक तरफ प्यार और दूसरी ओर कर्तव्य। वीर और यशोधरा दोनों इस दुविधा में फँस जाते हैं। कैसे वे इस परिस्थिति से बाहर निकलते हैं ये फिल्म का सार है।
अनिल शर्मा ने इस फिल्म का निर्माण पूरी तरह सलमान खान के प्रशंसकों को ध्यान में रखकर किया है। सल्लू के प्रशंसक के बीच जो उनकी इमेज है, उसी को ध्यान में रखकर सीन गढ़े गए हैं।
हर दृश्य इस तरह लिखे और फिल्माए गए हैं ताकि सलमान बहादुर, नेक दिल, बलवान, निडर, देशभक्त और स्वाभिमानी लगे। सलमान के मुँह से ‘जहाँ पकड़ूँगा पाँच सेर माँस निकाल लूँगा’ और ‘जब राजपूतों का खून उबलता है तो उसकी आँच से गोरी चमड़ी झुलस जाती है’ जैसे संवाद बुलवाए गए हैं ताकि उन्हें पसंद करने वाले तालियाँ पीटे। रेल से खजाना लूटने वाला दृश्य, लंदन के स्कूल में टीचर और सलमान वाला दृश्य, सलमान और मिथुन के बीच तलवारबाजी वाले दृश्य अच्छे बन पड़े हैं।
निर्देशक अनिल शर्मा ने मनोरंजक तत्व और सलमान पर अपना सारा ध्यान दिया है ताकि दर्शक स्क्रिप्ट की कमियों पर ध्यान नहीं दें या उसकी उपेक्षा कर दें और इसमें उन्होंने काफी हद तक कामयाबी भी पाई है। वीर और यशोधरा के रोमांस को भी अच्छा फिल्माया गया है। इंटरवल तक फिल्म मनोरंजक है, लेकिन दूसरे भाग में यह कमजोर पड़ गई है क्योंकि इसे जरूरत से ज्यादा खींचा गया है।
स्क्रिप्ट में कई खामियाँ भी हैं। लंदन में यशोधरा के भाई की हत्या कर वीर का बड़ी आसानी से भारत आ जाना। यशोधरा से भारत में मुलाकात के बाद संयोग से वीर का उसी कॉलेज में एडमिशन लेना, जहाँ यशोधरा पढ़ती है और वीर का माधवगढ़ में जाकर यशोधरा से संबंध बनाना जैसे प्रसंग अपनी सहूलियत के हिसाब से लिखे गए हैं।
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सलमान ने अपना काम बखूबी किया है और एक प्रकार से यह उनका ही शो है। पूरी फिल्म में उनका दबदबा है। गुस्से को उन्होंने काफी अच्छी तरह व्यक्त किया है। ज़रीन खान राजकुमारी की तरह दिखाई दीं, लेकिन उनका अभिनय औसत रहा। चेहरे के जरिये भावों को व्यक्त करना उन्हें सीखना होगा। मिथुन चक्रवर्ती को लंबे समय बाद अच्छा रोल मिला और उन्होंने अपना काम बखूबी किया। सोहेल खान ने हँसाने की नाकाम कोशिश की। पुरु राजकुमार भी फिल्म में नजर आएँ।
साजिद-वाजिद ने कुछ अच्छी धुनें बनाई हैं। ‘सुरील अँखियों वाली’, ‘मेहरबानियाँ’ और ‘सलाम आया’ अच्छे बन पड़े हैं। गुलजार ने उम्दा बोल लिखे हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक उम्दा है। गोपाल शाह का फिल्मांकन फिल्म को भव्यता प्रदान करता है। टीनू वर्मा के एक्शन सीन ठीक हैं।
‘वीर’ पुराने दौर की मसाला फिल्मों की तरह है और यदि आप सलमान के प्रशंसक हैं तो इसे पसंद करेंगे।