एक ही कॉलेज में पढ़ते थे 'बिच्छू का खेल' के स्टार दिव्येंदु शर्मा और अंशुल चौहान, एक्टर ने खोले कई दिलचस्प राज
मैं और अंशुल हम दोनों सेट पर बहुत कंफर्टेबल थे। कहने के लिए तो हम एक-दूसरे के हीरो हीरोइन के तौर पर काम कर रहे थे, लेकिन असल हमारी कहानी कुछ और ही है। हम दोनों ही किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली के छात्र रहे हैं जहां पर मैं अंशुल का सीनियर रह चुका हूं। हालांकि तब हम एक दूसरे को जानते नहीं थे, लेकिन हम दोनों ने ही अपने कॉलेज के थिएटर ग्रुप में काम किया है तो इसलिए वह कंफर्ट हमेशा एक दूसरे के साथ था। ये कहना है दिव्येंदु शर्मा का जो की वेब सीरीज बिच्छू का खेल में मुख्य भूमिका में नजर आ रहे हैं।
नौ एपिसोड की इस वेब सीरीज में दिव्येंदु, अखिल श्रीवास्तव का रोल निभा रहे हैं वहीं पर उनकी हीरोइन के तौर पर रश्मि चौबे का रोल निभा रही हैं अंशुल चौहान।
इस वेब सीरीज के प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अंशुल ने कई बातें मीडिया से शेयर की। उनका कहना है, वेब सीरीज में कई रेट्रो गाने बजाए गए हैं जिसमें मुझे सबसे अच्छा 'सात समंदर पार' लगता है उसकी मस्ती ही कुछ और है। जहां तक इस वेब सीरीज के शूट की बात करूं तो लॉकडाउन के दौरान लगभग उसी समय शूट किया। हमारी शूटिंग बनारस की थी, लेकिन बनारस में हम सब कुछ एक साथ करते थे। साथ ही रहकर टमाटर की चाट खाते थे। कभी लिट्टी चोखा खाते थे। कभी लस्सी पी कर आ जाया करते थे। यानी कि ऐसा कोई समय नहीं था जब हमने, हमारी टीम ने उस लॉकडाउन के दौरान में भी मजे नहीं किए हैं। हालांकि शूट के लिए जहां-जहां परमिशन मिली, हमने बहुत ज्यादा ध्यान रखा।
इसी वेब सीरीज में एक अहम भूमिका निभाने वाले राजेश कुमार का कहना है कि जब मैं यह वेब सीरीज शूट कर रहा था तो मुझे बार-बार इसका लेख लेखन सुरेंद्र मोहन पाठक की याद दिलाता था। यह वह भारतीय लेखक है जिनकी किताबें रेलवे स्टेशन पर आसानी से मिल जाया करती है। हालांकि कहना तो मेरा यह भी है कि वह अंग्रेजी नॉवलिस्ट जेम्स हेडली की कॉपी किया करते थे और उन्हीं के नॉवेल को भारतीय तरीके से लिख दिया करते थे।
जहां तक इस वेब सीरीज में गानों का सवाल है। मुझे यह रेट्रो गाने सभी बड़े पसंद आए हैं और बनारस की शूट की बात क्या बताऊं। बनारस के तो नाम में ही रस है। आपको सारे रस मिल जाएंगे तो आपको कहीं इधर-उधर देखने की जरूरत ही नहीं पड़ती है।
राजेश कुमार के साथ काम करने के अपने अनुभव को लेकर दिव्येंदु का कहना था कि इसके पहले 21 तोपों की सलामी नाम की फिल्म में मैं और राजेश जी एक साथ काम कर चुके हैं। हालांकि तब सीन अलग-अलग थे तो बहुत सारी बात नहीं होती थी लेकिन इस बार हमें बहुत मौका मिला है। सबसे दिलचस्प बात राजेश जी के साथ ये ही होती थी कि यह कभी काम के बारे में बात करते ही नहीं थे। कभी खाने पीने की बात होती कभी गाने की बात होती। वो सब बात होती थी जिसमें हम मजे से समय बिता सके। और एक खासियत राजेश जी की यह है कि वह कभी काम को बहुत ही रिस्की नहीं लेते हैं। सामने जो आया है उसे अपने तरीके से निभा देते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। यह बात इनसे सीखने लायक है।
वेबदुनिया के पूछने पर कि क्या दिव्यांशु की भाषा में कोई अंतर आया है। तो थोड़ा झेंपते हुए दिव्येंदु का जवाब कि मैं दिल्ली से हूं तो मेरी हिन्दी बहुत साफ है, लेकिन फिर भी जब पूर्वांचल की भाषा की बात करता हूं तो ऐसे-ऐसे शब्द मैंने सीखे है जो मैं आमतौर पर बोलता नहीं था और लोगों के सामने बोल भी नहीं सकूंगा। चलिए उन शब्दों को छोड़ भी दिया जाए तब भी बहुत सारे अलग-अलग शब्द मेरी जुबान पर आ गए हैं। मैं की जगह अब मैं हम बोलता हूं। तू की जगह तुम बोलता हूं। और एक और खासियत जो मुझे पूर्वांचल की भाषा या लहजे में लगी है कि यह बहुत सुरीली तरीके से बोले जाने वाली भाषा होती है या बोलियां होती है आपकी कुछ अलग है तो वह बोलने में भी मुझे बहुत मजा आ रहा था।