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Exclusive Interview: मेरे और जॉन के बीच कई बातें एक समान हैं- निखिल अडवाणी

Exclusive Interview: मेरे और जॉन के बीच कई बातें एक समान हैं- निखिल अडवाणी - batla house director nikkhil advani exclusive interview for webdunia
फिल्म 'बाटला हाउस' के निर्देशक निखिल अडवाणी और जॉन के लिए ये पहली बार नहीं था, जब वो एकसाथ काम कर रहे हों। 'सलाम-ए-इश्क' और 'बाटला हाउस' के अलावा भी ये दोनों टी सीरीज के साथ मिलकर और भी 6 फिल्में बनाने वाले हैं। अपनी इस दोस्ती के बारे में निखिल कहते हैं कि मेरे और जॉन के बीच ऐसी कई बातें हैं, जो समान हैं, मसलन हम दोनों को फुटबॉल बहुत पसंद है। हम दोनों कॉन्वेंट स्कूल में पढ़े हैं। हम दोनों जानवरों से बहुत प्यार करते हैं। हम कई बार तो यूं ही अपने घर के पालतू जानवरों की बातें करने लगते हैं। हम दोनों को ही आसपास के बारे में जानना-समझना पसंद है। हम कई बार राजनीति पर भी बातें करते हैं। हम जब शूट भी करते हैं तो शॉट के बाद में भी फिल्मों के अलावा कई ऐसा बातें करते हैं, जो हम दोनों को जोड़े रखती है।

फिल्म 'बाटला हाउस' के प्रमोशन के दौरान 'वेबदुनिया' से बात करते निखिल ने कई बातें बताईं। पेश हैं बातचीत के कुछ अंश-

'कल हो न हो' और 'सलाम-ए-इश्क' जैसी फिल्मों के बाद 'डी डे' या 'बाटला हाउस' जैसा बदलाव कैसे आया? 
'कल हो न हो' के पहले भी मैं और शाहरुख 'दिल से' जैसी आतंकवाद वाले विषय पर फिल्म करना चाहते थे। लेकिन यश जौहर चाहते थे कि उस समय करण के धर्मा टेकओवर के साथ प्रोडक्शन हाउस ने यूथ वाली फिल्में बनाना शुरू कर दी थी तो धर्मा प्रोडक्शन ने मुझे 'कल हो न हो' की स्क्रिप्ट दी और आर्टिस्ट दे दिए। मैंने फिल्म बना दी।

अब 'कल हो न हो' के साथ लोगों ने मेरे लिए कहना शुरू कर दिया कि ये फिल्म तो निखिल अडवाणी ने नहीं, बल्कि करण ने ही बनाई है तो मुझे बहुत बुरा लगा और तैश में आकर मैंने 'सलाम-ए-इश्क' बना दी, जहां एकसाथ 6 लव स्टोरीज थीं।

निखिल आगे बताते हैं कि जब 'सलाम-ए-इश्क' नहीं चली तो फिर मैंने फटाफट एक और फिल्म बनाने के चक्कर में 'चांदनी चौक टू चाइना' बना दी। आज सोचो तो लगता है कि मैंने ऐसा क्यों किया? ये मेरा गलत भाव था। लेकिन ये वो समय था, जब मुझे समझ आया कि फिल्म में मुझे अपने दिल को भी जोड़ना होगा।
 
इन सबके बाद 'डी डे' बनाना मेरे लिए आजादी थी, क्योंकि मेरे करियर में वो मकाम भी आया, जब लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि इसे कौन काम देगा? फिर तो मैं आजाद था कि जो चाहे बनाऊं, किसी कैरेक्टर को कैसे भी काम कराऊं, वही आजादी मेरे काम आ गई।

'बाटला हाउस' कैसे बनी?
मैं तो सोच भी नहीं रहा था कि कोई फिल्म बनेगी इस विषय पर। मेरे रायटर रितेश शाह ने 2011 से 2014 तक की रिसर्च की और फिर मेरे पास ये स्क्रिप्ट लेकर आए और कहा कि जो 'डी डे' जैसी फिल्म बना सकता है, वो ही इस पर काम करे।

जैसे हम मुंबई में 26/11 के बारे में बात करते हैं न कि मैं उस समय यहां था या मुझे ऐसे मालूम पड़ा इस अटैक के बारे में, वैसे ही 'बाटला हाउस' के बारे में हम मुंबईवासियों को नहीं बल्कि दिल्लीवासियों को पूछना चाहिए। हर एक के पास कहानी है बताने के लिए। वैसे भी रितेश मेरे साथ पहले भी काम कर चुके हैं और उन पर भरोसा इसलिए भी बहुत हुआ, क्योंकि वो खुद जामिया मिलिया के छात्र रह चुके हैं। फिर भी मैंने उनसे बहुत चीजें और भी सम्मिलित करने को कहा।

ऐसी फिल्म में नोरा फतेही को लेना कमर्शियल कारणों का नतीजा है?
हां, क्योंकि मैं चाहता हूं कि लोग आएं और फिल्म देखें। मैंने 'डी जे' बनाई, जो बहुत से लोगों ने देखी और जिन्होंने देखी, तारीफें कीं। लोग मुझे अचानक से आदर देने लगे। लेकिन बहुत सारे लोगों ने नहीं भी देखी। जब मैंने 'सत्यमेव जयते' बनाई और उसमें नोरा का गाना रखा गया तो लोग टूट पड़े फिल्म देखने के लिए।
 
तो ये तो पहले से तय कर लिया गया था कि नोरा का गाना होगा ही। वैसे भी फिल्म के एक पार्ट में हमें कुछ क्रिएट करने की जरूरत थी तब वहां नोरा को मैंने जगह दी। उसके साथ एक्टिंग और डायलॉग वर्कशॉप की। अब उसे सिर्फ आयटम गर्ल कहना ठीक नहीं होगा। जॉन और नोरा के सीन फिल्म के बहुत बेहतरीन सीन्स में से एक हैं।