मिथुन चक्रवर्ती: नक्सलवाद से भाजपा तक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में मिथुन चक्रवर्ती ने कोलकाता में हजारों लोगों के समूह के सामने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। बंगाल में कुछ दिनों बाद चुनाव है और भाजपा हर उस व्यक्ति को अपनी पार्टी में शामिल करने के लिए बेताब है जो बंगाल की जनता पर थोड़ा-बहुत भी असर रखता है। मिथुन चक्रवर्ती की उम्र 70 वर्ष की हो चुकी है। वे अस्वस्थ रहते हैं इसलिए फिल्मों में भी कम ही नजर आते हैं। क्या वे अपनी उपस्थिति से बंगाल की जनता का मानस बदल सकेंगे ये तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन इस बात पर कोई दो राय नहीं है कि बंगाल में वे अभी भी बेहद लोकप्रिय हैं।
राजनीति का मैदान मिथुन के लिए नया नहीं है। वे 2014 से 2016 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं। तृणमुल कांग्रेस ने अपनी पार्टी से मिथुन का राज्यसभा पहुंचाया था। मिथुन ने राज्यसभा के सदस्य के रूप में पूरी पारी नहीं खेली और अधूरी छोड़ दी। अब आखिर मिथुन के आगे ऐसी क्या मजबूरी रही कि वे ऐन चुनाव के पहले भाजपा में शामिल हो गए। क्या उन पर दबाव बनाया गया? क्या मिथुन अब राजनीति के मैदान में खुल कर खेलना चाहते हैं? क्या उन्हें उम्मीद है कि आगामी दिनों में बंगाल में भाजपा का शासन होगा इसलिए उन्होंने दौड़ती बस की सवारी करना पसंद किया ताकि उम्र के इस दौर में उन्हें भी महत्वपूर्ण राजनैतिक पद मिल जाए? इनके जवाब धीरे-धीरे सामने आएंगे।
राजनीति के बीज मिथुन में युवा अवस्था से ही मौजूद रहे हैं। किशोर अवस्था से ही वे विद्रोही मुद्रा में थे और अपने पिता से उनके जबरदस्त वैचारिक मतभेद थे। फिल्मों में आने से पहले वे नक्सलियों से जुड़ गए थे। वे समाज में फैली अव्यवस्था और भेदभाव से खुश नहीं थे। नक्सलियों के साथ रहते हुए मिथुन की रवि रंजन नामक एक लोकप्रिय नक्सली से दोस्ती भी काफी मशहूर हुई थी। कहते हैं कि पुलिस भी मिथुन के पीछे लग गई थी। मिथुन के इकलौते भाई को एक दुर्घटना में मार दिया गया। इससे मिथुन बेहद आहत हुए और उनके लिए नक्सलियों से महत्वपूर्ण परिवार हो गया। सब कुछ उन्होंने छोड़ दिया और फिल्मों में किस्मत आजमाने की सोची।
मिथुन चक्रवर्ती की जीवन-यात्रा देखी जाए तो वे नई चीजों/बातों से कभी भी नहीं घबराए। जो भी उन्होंने किया उसके लिए जी-तोड़ परिश्रम किया और सफलता पाई। उन्होंने बी.एससी. किया तो गोल्ड मैडल हासिल हुआ। कराटे में ब्लैक बेल्ट हैं। डांस में उन्हें ऐसी महारथ हासिल थी कि उनको लेकर 'डिस्को डांसर' फिल्म बनी। फिल्मों में आने के पहले उन्होंने एफटीआईआई में दाखिला लिया और अपनी प्रतिभा से सभी का मन मोह लिया।
उन्हें पहली फिल्म 'मृगया' (1976) मिली जिसके निर्देशक थे मृणाल सेन। यह एक कला फिल्म थी। मिथुन ने ऐसा अभिनय किया कि पहली फिल्म के लिए ही उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल गया। इसके बाद उन्होंने कुछ फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए और फिर हिंदी फिल्मों में छा गए।
मेहनती मिथुन को खाली बैठना गवारा नहीं था। इसलिए उन्होंने धड़ाधड़ फिल्में की। तेजी से काम करने के कारण वे फिल्म निर्माताओं में लोकप्रिय हो गए क्योंकि उस समय ज्यादातर बॉलीवुड स्टार घोर अनुशासनहीन थे। आम जनता ने मिथुन को स्टार बना दिया। गरीबों का अमिताभ बच्चन उन्हें कहा जाने लगा। मिथुन के फैंस की संख्या भी करोड़ों में थी और उन्होंने अपने फैंस के अनुरूप ही फिल्में की।
फिल्मों से कमाया धन उन्होंने होटल व्यवसाय में लगाया। ऊटी स्थित होटल को चलाने के लिए उन्होंने एक फॉर्मूला गढ़ दिया। जो निर्माता मिथुन को लेकर फिल्म बनाना चाहते थे उनको होटल में डिस्काउंट रेट में ठहराया जाता था। दो महीने में ऊटी में रहते हुए मिथुन उस निर्माता की फिल्म पूरी कर देते थे। इस तरह से वे एक्टर के रूप में भी फीस लेते थे और होटल के लिए भी कमाई कर लेते थे। कई निर्माता स्क्रिप्ट लेकर ऊटी जाते और कुछ दिनों में फिल्म लेकर मुंबई वापस लौटते। यह फॉर्मूला बहुत चला और मिथुन ने इतनी फिल्में कर डाली कि कई बार उनकी महीने में चार फिल्में रिलीज होती थीं।
अस्वस्थ होने के कारण मिथुन की गति धीमी पड़ गई और वे राजनीति में उतर गए। मिथुन ने तमाम क्षेत्रों में सफलता हासिल की, लेकिन राजनीति में वे वैसी सफलता दोहरा नहीं पाए। पारी अधूरी छोड़ दी। संभव है कि वे अपनी पार्टी से खुश नहीं हो या फिर किसी फैसले से वे नारज हों। एक बार फिर वे राजनीति में उतरे हैं। शायद इस क्षेत्र में भी वे अपनी सफलता का परचम लहराना चाहते हों।