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Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 30 अक्टूबर 2022 (08:22 IST)

बिहार के मोकामा उपचुनाव में अनंत सिंह को क्या बीजेपी हरा पाएगी?

बिहार के मोकामा उपचुनाव में अनंत सिंह को क्या बीजेपी हरा पाएगी? - Will bjp defeat anant singh in mokama bypoll election
विष्णु नारायण, बीबीसी हिंदी के लिए
नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर होने और आरजेडी से हाथ मिलाने के बाद पहली बार कोई उपचुनाव हो रहा है। वह भी मोकामा में। जीत नीतीश के अगुआई वाले महागठबंधन की होती है तो वह इसे एनडीए छोड़ने पर जनता की मुहर की तरह पेश करेंगे। वहीं बीजेपी को जीत मिलती है तो वह इसे नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ लोगों में ग़ुस्से के तौर पर पेश करेगी।

 
चुनाव मैदान में भले दो महिला उम्मीदवार हैं लेकिन शक्ति परीक्षण दो बाहुबली नेताओं के बीच का है। इस सीट पर राष्ट्रीय जनता दल के बाहुबली नेता अनंत सिंह के एके-47 मामले में सज़ा होने के बाद उपचुनाव हो रहा है। महागठबंधन ने उनकी पत्नी नीलम देवी को उम्मीदवार बनाया है।
 
दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने हाल फ़िलहाल तक जनता दल यूनाइटेड में रहे स्थानीय बाहुबली नेता ललन सिंह की पत्नी सोनम देवी को चुनाव मैदान में उतारा है।
 
यही वजह है कि महागठबंधन की ओर से जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह मोकामा में नीलम देवी के लिए वोट तो मांग रहे हैं लेकिन पूर्व विधायक अनंत सिंह का नाम लेने से बच रहे हैं। जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह के रिश्ते अनंत सिंह से ठीक नहीं रहे हैं। हालांकि दोनों भूमिहार जाति से ही ताल्लुक रखते हैं।
 
बाहुबली नेता अनंत सिंह के बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से साथ उतार-चढ़ाव भरा रिश्ता रहा है। प्रदेश स्तर के तमाम बड़े नेता 'बाहुबलियों' की पत्नियों के प्रचार में कैम्प कर रहे हैं। जगह-जगह नुक्कड़ सभाएं हो रही हैं। वैसे दिलचस्प ये भी है कि क़रीब 30-32 साल के बाद इस इलाक़े में खुले तौर पर भाजपा ने अपना प्रत्याशी दिया है।
 
भाजपा के तमाम बड़े नेता रोड शो से लेकर नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर से नारेबाजी हो रही है कि 'चाहे मोदी आएं या ओबामा, अनंत ही जीतेंगे मोकामा।'
 
वैसे भाजपा की ओर से पूर्व सांसद और बाहुबली नेता सूरजभान सिंह ने प्रचार की कमान संभाल रखी है। ऐसे में इस लड़ाई को 'नीलम बनाम सोनम' के बजाय 'अनंत बनाम सूरजभान' के तौर पर भी देखा जा रहा है।
 
मोकामा विधानसभा के मेकरा गांव के नीतीश यादव कहते हैं, "अनंत सिंह दुख-सुख के साथी हैं। बुलाने पर आते-जाते हैं। लड़के की शादी में भले ही नहीं आवें लेकिन लड़की की शादी में ज़रूर आते हैं।"
 
वहीं एक अन्य मतदाता हिमांशु यादव कहते हैं, "किसी काम के लिए कहने पर अनंत सिंह फ़ोन करते हैं। काम होने लायक होगा तो कर देंगे नहीं तो कह देंगे ई काम उनसे नहीं होगा। चाय-पानी कराए बगैर जाने नहीं देते। भाड़ा नहीं है तो भाड़ा भी देते हैं। अब जनता को इससे अधिक क्या चाहिए?"
 
वहीं औंटा गाँव के रहने वाले शिशुपाल कुमार, रंजीत कुमार और शशिभूषण प्रसाद सिंह जैसे मतदाता भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में दिखे। उनका कहना है कि, 'दिलों में तो अनंत सिंह ही हैं, लेकिन वे इस बार बदलाव के पक्ष में हैं। भाजपा के पक्ष में हैं।'
 
इस गाँव और आसपास के लोग जीवनयापन के लिए 'टाल' पर निर्भर हैं लेकिन साल 2005 से लगातार जीतने के बावजूद अनंत सिंह टाल इलाक़े में लगने वाले पानी की समस्या का निदान नहीं कर सके।
 
मोकामा बाज़ार के अजय चंद्रवंशी, बबलू और हरिलाल मांझी दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। साल के नौ महीने हरियाणा और पंजाब में सपरिवार ईंट के भट्ठे पर काम करने वाले हरिलाल मांझी इन दिनों भारत वैगन के सामने एक गुमटी चलाते हैं।
 
वहीं अजय चंद्रवंशी कभी गुलज़ार रहे भारत वैगन रेल कारखाने के सामने चाय की दुकान चलाते थे। इस कारखाने के बंद होने के बाद से ये दोनों मजदूर हो गए हैं। इन दिनों तो न मज़दूरी मिल पा रही है और न उचित मेहनताना।
 
वहीं बबलू मुंबई में वेल्डिंग का काम करते हैं। छठ के मौक़े पर घर आए हैं। आज से 12-13 साल पहले वे भारत वैगन के साथ काम करके 500 रुपया तक रोज़ कमा लिया करते थे। हरिलाल मांझी कहते हैं कि 'मेरा वोट तो मोदी जी को है' वहीं अजय चंद्रवंशी और बबलू अपना वोट अनंत सिंह के पक्ष में देने की बात कहते हैं।
 
पिछले चुनावों में क्या हुआ?
वैसे तो साल 2005 के चुनाव से यहाँ लगातार अनंत सिंह ही जीतते हैं। चाहे किसी दल के सिंबल पर हों या फिर निर्दलीय।
 
उनके परिवार का दबदबा इस इलाक़े में दशकों से चला आ रहा है। साल 1990 और 1995 में उनके बड़े भाई दिलीप सिंह इस सीट से विधायक रहे हैं।
 
जनता दल के टिकट पर वे कांग्रेस के श्याम सुंदर सिंह को हराते रहे। हालांकि साल 2000 के चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार रहते हुए भी सूरजभान सिंह ने उन्हें पटखनी ज़रूर दी थी।
 
2005 में बिहार में लालू प्रसाद सत्ता से बाहर हुए और नीतीश कुमार सूबे के मुखिया बने। उसी दौर में अनंत सिंह भी विधानसभा पहुँचे। उनके लिए आम बोलचाल में 'छोटे सरकार' जैसे तमगे का इस्तेमाल किया गया।
 
बिहार की राजनीति पर नज़र रखने वाले लोगों का दावा यहाँ तक है कि नीतीश कुमार को सूबे का मुखिया बनाने में अनंत सिंह की भी भूमिका रही थी। साल 2005 में जनता दल (यूनाइटेड) ने उन्हें उम्मीदवार बनाया था।
 
साल 2010 में भी वे नीतीश कुमार की पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे थे। हालांकि तब जद (यू) और भाजपा ने साझेदारी में चुनाव लड़ा था और आमने-सामने की लड़ाई राजद गठबंधन से हुआ करती थी।
 
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़कर लालू प्रसाद का हाथ थामा था। सूबे में महागठबंधन और एनडीए के बीच आमने-सामने की लड़ाई थी।
 
तब जद (यू) की ओर से नीरज कुमार महागठबंधन के उम्मीदवार थे और भाजपा के साथ गठबंधन में लड़ रही लोजपा ने 'कन्हैया सिंह' को अपना दावेदार बनाया था।
 
तब इस उपचुनाव में 'ललन सिंह' जन अधिकार पार्टी से थे। तमाम गठबंधनों के बावजूद भी अनंत सिंह मोकामा विधानसभा निर्दलीय जीतने में सफल रहे थे।
 
अनंत सिंह साल 2015 में मोकामा से निर्दलीय विधायक थे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव आते-आते वे मुंगेर लोकसभा की दावेदारी ठोंकने लगे। जब वे ख़ुद के लिए किसी दल का टिकट पाने में सफल नहीं हो सके तो अपनी पत्नी 'नीलम देवी' को कांग्रेस का टिकट दिलवा दिया।
 
तब जद (यू) के उम्मीदवार के तौर पर राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के सामने नीलम देवी चुनाव लड़ीं। उस चुनाव को भी ललन बनाम अनंत के रूप में ही देखा गया। तब ललन सिंह एनडीए उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल करने में सफल रहे थे।
 
2020 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह ने राजद का दामन थाम लिया और आसानी से जीत हासिल करने में कामयाब रहे।
 
मोकामा में इस बार नया-पुराना क्या?
मोकामा विधानसभा सवर्णों या कहें कि भूमिहार जाति के दबदबे वाली सीट है। दोनों महत्वपूर्ण गठबंधन ने अपने-अपने उम्मीदवार भी भूमिहार जाति से ही दिए हैं।
 
बिहार में महागठबंधन का स्वरूप बदल चुका है। बतौर नेता प्रतिपक्ष सीएम नीतीश पर हमलावर रहने वाले तेजस्वी इन दिनों डिप्टी सीएम हैं।
 
कांग्रेस और लेफ्ट के तमाम दल सरकार में शामिल हैं। तब भाजपा के साथ लोकसभा चुनाव में गठजोड़ बनाकर महागठबंधन का लगभग सफाया करने वाले नीतीश कुमार अब भाजपा और नरेंद्र मोदी पर हमलावर हैं। मुकेश सहनी भी भाजपा प्रत्याशी के बजाय महागठबंधन प्रत्याशियों के पक्ष में पत्र जारी कर रहे हैं।
 
वैसे इस उपचुनाव में बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए पूछा है, "क्या नीतीश कुमार की अंतरात्मा उन्हें इस बात की गवाही देती है कि वे आंतक का पर्याय बन चुके अनंत सिंह के पक्ष में आकर वोट मांगें? अनंत सिंह सजायाफ्ता होने के बाद चुनाव नहीं लड़ सकते, वहीं गोपालगंज का महागठबंधन प्रत्याशी शराब माफिया है।"
 
नीतीश कुमार अब ना तो मोकामा और ना ही गोपालगंज चुनाव प्रचार के लिए गए हैं लेकिन उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह दावा कर रहे हैं, "न गोपालगंज में कोई लड़ाई है और न ही मोकामा में कोई महागठबंधन के इर्द-गिर्द है। मोकामा में पिछले सारे रिकॉर्ड टूट जाएंगे। महागठबंधन अटूट है और बिल्ली के भाग्य से छींका नहीं टूटने वाला।"
 
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