स्वतंत्रता संग्राम में कवियों, शायरों और लेखकों का योगदान
सलिल सरोज | शनिवार,अगस्त 14,2021
स्वतंत्रता आंदोलन भारतीय इतिहास का वह युग है, जो पीड़ा, कड़वाहट, दंभ, आत्मसम्मान, गर्व, गौरव तथा सबसे अधिक शहीदों के ...
प्रेम गीत : चोरी-छिपे मोहब्बत निभाता रहा
सलिल सरोज | बुधवार,अगस्त 8,2018
वो गया दफ़अतन कई बार मुझे छोड़के, पर लौटकर फिर मुझ में ही आता रहा। कुछ तो मजबूरियां थीं उसकी अपनी भी, पर चोरी-छिपे ही ...
रोमांस कविता : ये गुफ़्तगू क्या है...
सलिल सरोज | गुरुवार,जून 7,2018
है नहीं यकीन तुमको है, नहीं यकीन मुझको, फिर ये खत-दर-खत गुफ़्तगू क्या है।।1।।
प्रेम कविता : मैंने इश्क़ किया
सलिल सरोज | गुरुवार,जून 7,2018
मैंने इश्क़ किया और बस आग से खेलता रहा' एक घड़ी जलता रहा, एक घड़ी बुझता रहा ।।1।।
हिन्दी कविता : गुनाहगार कौन है
सलिल सरोज | बुधवार,मई 23,2018
इस चाराग़री में सब होशियार हैं, वर्ना खुद से ही कौन गुनाहगार है ।।1।। कमी है कुछ झुके हुए मस्तकों की वर्ना तलवारें तो सब ...
कविता : महफिलें सजाई थीं...
सलिल सरोज | गुरुवार,अप्रैल 12,2018
कभी मिलना उन गलियों में जहां छुप्पन-छुपाई में हमने रात जगाई थी। जहां गुड्डे-गुड़ियों की शादी में दोस्तों की बारात बुलाई ...
कविता : तुम्हारी एक छुअन...
सलिल सरोज | मंगलवार,मार्च 27,2018
क्या था तुम्हारी उस एक छुअन में, कि वो शाम याद आती है, तो जाती नहीं।अजब-सा खुमार था तुम्हारे सुरूर का,
तमाशाई भी हम ही हैं...
सलिल सरोज | शनिवार,मार्च 10,2018
तमाशा भी हम हैं और तमाशाई भी हम ही हैं, शराफत की बोटियां काटते कसाई भी हम ही हैं। ज़ख्म भी हम हैं और ज़ख्मी भी हम ही हैं,
शब्द पर कविता
सलिल सरोज | सोमवार,जनवरी 29,2018
शब्द... अगर इतने ही, समझदार होते, तो खुद ही, गीत, कविता, कहानी, नज्म, संस्मरण या यात्रा-वृत्तांत, बन जाते।
कविता : रेत के पैरों पे ये निशान किसके हैं?
सलिल सरोज | सोमवार,जनवरी 8,2018
उन औरतों के लगते हैं, जो परतंत्रता से हांफ के भाग रही होंगी, बाल उसके हब्बा ने भींच रखे होंगे, उसके वक्षों को शैतान ने ...