1.आकाश मंडल में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। वैज्ञानिकों ने हमारे आकाश मंडल को 88 नक्षत्र मंडलों में बांटा है, तो वैदिक ऋषियों ने 28 नक्षत्र मंडलों में। आसमान के 12 भागों (राशियों) में बंटवारा कर देने के बाद भी ऋषि-मुनियों ने इसके और सूक्ष्म अध्ययन के लिए इसे 27 भागों में बांटा है। नक्षत्रों की जानकारी की इस सीरीज में जानिए पहला नक्षत्र अश्विनी।
2.अश्विनी नक्षत्र आकाश मंडल में प्रथम नक्षत्र है। यह 3-3 तारों का समूह है, जो आकाश मंडल में जनवरी के प्रारंभ में सूर्यास्त के बाद सिर पर दिखाई देता है। वैदिक काल में दो अश्विनी कुमार थे जिनके नाम पर ही इन तारा समूह का नामकरण किया गया है। 'अश्विनी' का अर्थ 'अश्व जैसा' होता है। धरती पर इस तारे का असर पड़ता है। आंवले के वृक्ष को इसका प्रतीक माना जाता है।
3.यदि आपका जन्म अश्विनी नक्षत्र में हुआ है तो आपकी राशि मेष व जन्म नक्षत्र स्वामी केतु होगा। राशि स्वामी मंगल व केतु का प्रभाव आपके जीवन पर अधिक दिखाई देगा। अवकहड़ा चक्र के अनुसार जातक का वर्ण क्षत्रिय, वश्य चतुष्पद, योनि अश्व, महावैर योनि महिष, गण देव तथा नाड़ी आदि होते हैं।
4.इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातको का सुंदर स्वरूप, स्थूल व मजबूत शरीर होता है। आकर्षक रूपपरंग के साथ बड़ी आंखें, चौड़े ललाट वाले होते हैं। ये धनवान तथा भाग्यवान होता है। यह जातक संपूर्ण प्रकार की संपत्तियों को प्राप्त करने वाला, स्त्री और आभूषण तथा पुत्रादि से संतोष प्राप्त करता है।
5.बुद्धिमान, नम्र, सत्यवादी, सेवाभावी, कार्यों में कुशल, सर्वजन प्रिय, ईश्वर भक्त, स्वतंत्र चिंतक, ज्योतिष, वैद्य, शास्त्रों में रुचि रखने वाले लोग इस नक्षत्र के होते हैं। लेकिन इस नक्षत्र में जन्मे जातक हठी होते हैं। 30 की उम्र के बाद से अच्छे दिन। 55 के बाद सामान्य।
6.यदि अश्विनी नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति का मंगल या केतु खराब है तो जायदाद संबंधी मामलों से चिंताग्रस्त, क्रोधी, बड़े भाई न हों या भाई रोगग्रस्त हों, महत्वाकांक्षी विचार का हो जाता है। केतु जिन ग्रहों के साथ हो और मंगल की स्थिति जैसी भी हो, वे वैसा परिणाम देते हैं। इनका परिणाम जीवन में मिलता ही है, लेकिन इनकी दशा अंतरदशा में अधिक मिलता है।