आखिर क्यों होती हैं हमारे कामों में देरी, जानिए, क्या कहता है ज्योतिष
प्रकृति ने सभी कार्यों का समय निश्चित किया है। समय आने पर वर्षा होती है, उचित समय आने पर वृक्षों में फल लगते हैं एवं समयानुसार ही पतझड़ भी आता है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य के जीवनकाल में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत यदि प्रत्येक कार्य उचित समय पर हों तो ऐसे व्यक्ति का जीवन सफ़ल व सानन्द माना जाता है किन्तु कई बार व्यक्ति की जन्मपत्रिका में कुछ ऐसी ग्रहस्थितियों का निर्माण हो जाता है जिनसे उसका प्रत्येक कार्य विलम्ब एवं उचित समय व्यतीत हो जाने के उपरान्त होता है।
विलम्ब से होने वाले एवं उचित समय के उपरान्त होने वाले कार्य अक्सर अपनी प्रासंगिकता खो देते हैं जिससे मन में विषाद और निराशा व्याप्त होती है। जानते हैं कि जन्मपत्रिका में वे कौन सी ऐसी ग्रहस्थितियां व ग्रह होते हैं जो कार्यों में विलम्ब के लिए उत्तरदायी हैं।
-जातक के कार्यों में विलम्ब के लिए केवल एक ही ग्रह सर्वाधिक उत्तरदायी होता है, वह है- शनि। शनि को "शनैश्चर" भी कहा जाता है। "शनैश्चर" अर्थात् शनै: शनै: चलने वाला, धीमे चलने वाला।
जब शनि की दृष्टि या प्रभाव किसी भाव पर पड़ता है तो उस भाव से सम्बन्धित कार्यों में विलम्ब होता है। उदाहरणार्थ यदि शनि की दृष्टि सप्तम भाव या सप्तमेश पर हो तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है। इसी प्रकार यदि शनि की दृष्टि या प्रभाव दशम भाव पर पड़ता है तो जातक को आजीविका अत्यन्त विलम्ब से प्राप्त होती है।
शनि जब पंचम भाव, पंचमेश व शुक्र पर अपना दृष्टि प्रभाव डालते हैं तो जातक को सन्तान सुख देर से प्राप्त होता है। ऐसे ही जब शनि का दुष्प्रभाव आय व धन भाव पड़ता है तब जातक को अपने परिश्रम का लाभ विलम्ब से प्राप्त होता है व धन संचय करने में सफ़ल नहीं हो पाता। चतुर्थ भाव, चतुर्थेश व मंगल पर जब शनि की दृष्टि या प्रभाव होता है तब जातक को स्वयं का मकान एवं वाहन प्राप्त होने में विलम्ब होता है।
यदि जन्मपत्रिका में इन भावों व भावाधिपतियों पर शनि का दुष्प्रभाव हो तो शीघ्र शनि की वैदिक शान्ति कर कार्यों में होने वाले विलम्ब को समाप्त कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।