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मोमिन की ग़ज़ल
1.
वो जो हम में तुम में क़रार था, तुम्हें याद हो कि न याद हो वही यानी वादा निबाह का, तुम्हें याद हो कि न याद हो वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे पेश्तर, वो करम जो था मेरे हाल पर मुझे सब है याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद हो कि न याद होवो गिले वो शिकायतें, वो मज़े मज़े की हिकायतें वो हर एक बात पे रूठना, तुम्हें याद हो कि न याद हो कभी हममें तुममें भी चाह थी, कभी हमसे तुमसे भी राह थीकभी हम भी तुम भी थे आशना, तुम्हें याद हो कि न याद हो जिसे आप कहते थे आशना, जिसे आप कहते थे बावफ़ामैं वही हूँ मोमिन-ए-मुबतिला, तुम्हें याद हो कि न याद हो