• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. उर्दू साहित्‍य
  4. »
  5. शेरो-अदब
Written By WD
Last Updated : बुधवार, 9 जुलाई 2014 (19:56 IST)

ग़ज़लें : ग़रीक़ खैरआबादी

ग़रीक़ खैरआबादी
इश्क़ का रंग कभी सोज़ कभी साज़ में है
एक नग़मा है मगर मुख्तलिफ़ अन्दाज़ में है

दिल ही था जिसने उठाया ग़मे कौनेन का बार
मुझमें हिम्मत नहीं जितनी मेरे दमसाज़ में है

आशयाँ दूर नहीं मेरे क़फ़स से लेकिन
कुछ न कुछ नुक़्स मेरी हिम्मते पवाज़ में है

मुसकुराने में भी इक आह निकल जाती है
यानी इक सोज़ भी पोशीदा मेरे साज़ में है

जल के मरने से भी मुश्किल है तड़पते रहना
ज़ब्त परवाने से बढ़कर मेरे जाँबाज़ में है

इश्क़ के साथ ग़मे इश्क़ भी लाज़िम है ग़रीक़
यही अंजाम में होगा यही आग़ाज़ में है

2.
रहेगा ग़म तेरा ग़ारतगरे ताबोतवाँ कब तक
लुटेगा इश्क़ की मंज़िल में दिल का कारवाँ कब तक

कहाँ तक कोई रहता बेनियाज़े जलवा आराई
छुपा रहता किसी के हुस्न का राज़े निहाँ कब तक

शबे ग़म और उम्मीद-ए-सुबह गोया इक क़यामत है
कोई देखा करे हसरत से सूए आसमाँ कब तक

न बाज़ आएँगे हम भी सय्ये तकमील-ए-नशेमन से
मिटाया जाएगा आख्निर हमारा आशयाँ कब तक

कमाले ज़ौक-ए-सजदा आज दोनो एक हो जाएँ
रहेगा आख़रश फ़र्क़-ए- जमीन-ओ-आसमाँ कब तक

मक़ाम-ए- कसरत-ओ-वेहदत की तफ़रीक़ें मिटा दीजे
यहीं मिल जाईये, क़ैद-ए- मकान-ओ-लामकाँ कब तक

ग़रीक़-ए- ग़म किसे उम्मीद-ए-ज़ब्त-ए-राज़-ए-उलफ़त है
हमारा क़ल्ब-ए-मुज़तर भी हमारा राज़दाँ कब तक