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Last Updated : शनिवार, 26 नवंबर 2022 (18:03 IST)

खाकी द बिहार चैप्टर रिव्यू: भ्रष्टाचार के तूफान में टिमटिमाता दीया

खाकी द बिहार चैप्टर रिव्यू: भ्रष्टाचार के तूफान में टिमटिमाता दीया - Khakee The Bihar Chapter review in Hindi streaming on Netflix
Khakee The Bihar Chapter review in Hindi streaming on Netflix पुलिस, राजनीति और बिहार को लेकर प्रकाश झा ने कुछ उम्दा फिल्में बनाई हैं और वेबसीरिज 'खाकी: द बिहार चैप्टर' भी वहां के भयावह हालात को दिखाती है। एक अपराधी को पकड़ा जाए या नहीं, ये चुनाव परिणाम पर निर्भर करता है और यह सीक्वेंस बिहार की व्यवस्था को दिखाने के लिए पर्याप्त है। 
 
'खाकी : द बिहार चैप्टर' में कुछ अनोखा या नया नहीं है जो आपने पहले नहीं देखा है, लेकिन बहुत ही ठहराव, ड्रामेटाइजेशन, सच के करीब होने के कारण यह सीरिज बांध कर रखती है। नीरज पांडे जैसे काबिल निर्देशक का नाम इस सीरिज से जुड़ा होना भी काफी है। 
 
बिहार कैडर के आईपीएस ऑफिसर अमित लोढ़ा की किताब पर यह सीरिज आधारित है जो इस सीरिज में कैरेक्टर के रूप में उपस्थित हैं। राजस्थान के रहने वाले हैं और बिहार में पहली बार नौकरी के लिए जा रहे हैं। ट्रेन के मुसाफिर हैरत में पड़ जाते हैं कोई बिहार में नौकरी के लिए दूसरे प्रदेश से आ रहा है क्योंकि ज्यादातर बिहारी दूसरे प्रदेशों में रोजगार के लिए जाते हैं। 
 
सीरिज में दर्शाया गया है कि कैसे एक मामूली ट्रक ड्राइवर का एक गुंडे के रूप में उदय होता है। कैसे वह जातिगत कार्ड खेलता है और हर मौके का फायदा उठा कर छलांग लगा कर इतना शक्तिशाली हो जाता है कि जिनके वह चरण छूता था वे उसे गले लगाने के लिए आतुर हो उठते हैं। 
 
इस गुंडे का इस्तेमाल नेता करते हैं। वह उनके लिए महज मोहरा है। ये नेता बड़े पुलिस अधिकारी को भी सेट करते हैं और इस तरह से चोर और पुलिस दोनों जगह उनका दबदबा कायम रहता है।
 
भव धुलिया ने 'खाकी: द बिहार चैप्टर' को निर्देशित किया है और उन्होंने काफी नजदीक से चीजों को दिखाया है। नीरज पांडे की लेखनी ने उनकी काफी मदद की है। छोटे-छोटे दृश्यों से बड़ी-बड़ी बातें दर्शाई गई है। पुलिस वाले ही ट्रेन की चेन खींच कर अपने ऑफिसर को उतारते हैं तो अपराधियों को भला कोई क्या कहेगा। 
 
रेल की पटरी पर ट्रेन रोक कर पुलिस ऑफिसर को ग्रामीण अपने गांव में बंधक बना लेते हैं और जब उन्हें पता चलता है कि इस ऑफिसर की पत्नी घर पर अकेली है तो वे उसे घर तक छोड़ने जाते हैं जो बिहार के ग्रामीणों के दो चेहरे दिखाता है। उनमें रोष है इसलिए वे कई बार कानून अपने हाथ में लेते हैं, लेकिन उनके पास दिल भी है इसलिए मदद में भी वे आगे हैं। 
 
बिहार में भ्रष्टाचार और जातिगत दृष्टिकोण की दीमक ने पूरी व्यवस्था को चट कर रखा है और ऐसे में एक पुलिस ऑफिसर को नैतिकता और ईमानदारी की राह पर चलने में क्या कठिनाई आती है उसकी झलक भी यह सीरिज दिखाती है। बड़ा ऑफिसर कहता है कि गहने हम शादी और पार्टियों में ही पहनते हैं ताकि सब को पता चले कि हमारे पास ये हैं। इसी तरह से नैतिकता और ईमानदारी का गहना भी पुलिस को कभी-कभी ही पहनना चाहिए। 
 
इस मकड़जाल में अमित लोढ़ा और रंजन कुमार जैसे ईमानदार ऑफिसर कैसे काम करते हैं ये बात सीरिज को रोचक बनाती है। बात की गहराई तब और बढ़ जाती है जब ठेठ ग्रामीण इलाकों में इसे फिल्माया गया है जिससे यह वास्तविकता के नजदीक पहुंच जाती है।   
 
एपिसोड दर एपिसोड नए-नए किरदार इंट्रोड्यूस किए जाते हैं जिससे उत्सुकता बढ़ती जाती है। अंत में बात को थोड़ा खींचा गया है जैसा कि आमतौर पर ज्यादातर वेबसीरिजों के साथ होता है वो यहां भी नजर आता है। इतना ज्यादा फैलाव को समेटने में निर्देशक और एडिटर मन कठोर नहीं कर पाते इसलिए बात लंबी हो जाती है। सीरिज को बेवजह की गालियों और वयस्क दृश्यों से आजाद रखा है।  
 
खाकी द बिहार चैप्टर को बढ़िया कलाकारों का साथ मिला है। करण टैकर ने लीड रोल निभाया है। एक युवा ऑफिसर जिसमें देश के लिए कुछ करने की चाहत है की भूमिका उन्होंने संजीदगी के साथ निभाई है। चंदन मोहता के किरदार में अविनाश तिवारी खौफ पैदा करते हैं। उनकी कुटील मुस्कान और आंखें बहुत कुछ कहती है। आशुतोष राणा, रवि किशन, अभिमन्यु सिंह, अनूप सोनी, निकिता दत्ता, विनय पाठक उम्दा कलाकार हैं और इन्होंने अपने किरदारों को बारीकी से पकड़ा है। इनका ठहराव वाला अभिनय सीरिज में जान डालता है। 
 
निर्देशन और लिखावट मजबूत होने के कारण एक देखे-दिखाए विषय पर भी इस सीरिज को देखना अच्छा लगता है।   
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