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  4. flag of religion which provides happiness and peace is once again seated on the peak: Bhagwat
Last Modified: अयोध्या , मंगलवार, 25 नवंबर 2025 (20:07 IST)

सुख-शांति प्रदान करने वाला धर्म ध्वज फिर से हुआ शिखर पर विराजमान : भागवत

Dhwajarohan in Ayodhya
RSS chief Mohan Bhagwat: मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष पंचमी यानी विवाह पंचमी के पावन अवसर पर अयोध्या धाम सहित संपूर्ण विश्व प्रभु श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के पूर्णत्व का साक्षी बना। इस अवसर पर मंगलवार को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर भगवा ध्वज के आरोहण समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि आज हम सबके लिए सार्थकता का दिवस है।
 
उन्होंने कहा कि कितने ही लोगों ने जो सपना देखा, कितने ही लोगों ने जो प्रयास किए, अपने प्राण अर्पित किए, आज उनकी स्वर्गस्थ आत्मा तृप्त हुई होगी। आज वास्तव में अशोक सिंघल जी को शांति मिली होगी। महंत रामचंद्र दास जी महाराज, डालमिया जी समेत कितने ही संत, गृहस्थ एवं विद्यार्थियों ने प्राणार्पण किया, पसीना बहाया। उन्होंने कहा कि जो पीछे रहे, वे भी यही इच्छा व्यक्त करते थे कि मंदिर बनेगा जो अब बन गया है। आज मंदिर निर्माण की शास्त्रीय प्रक्रिया पूर्ण हो गई। ध्वजारोहण भी हो गया। निश्चित तौर पर यह एक ऐतिहासिक व पूर्णत्व का क्षण है। आज का दिन कृतार्थता का दिवस है। आज हमारे संकल्प की पुनरावृत्ति का दिवस है, जिसे हमारे पूर्वजों ने हमें दिया है।
 
धर्म का प्रतीक भगवा रंग ही है ध्वज का रंग : डॉ. भागवत ने कहा कि रामराज्य का ध्वज, जो कभी अयोध्या में फहराता था और संपूर्ण विश्व में अपने आलोक से सुख-शांति प्रदान करता था, वह ध्वज आज फिर से नीचे से ऊपर चढ़कर शिखर पर विराजमान हो चुका है। इसे हमने अपनी आंखों से इसी जन्म में देखा है। ध्वज धर्म का प्रतीक होता है। इतना ऊंचा ध्वज चढ़ाने में भी समय लगा, ठीक ऐसे ही मंदिर बनाने में भी समय लगा। 500 साल छोड़ें तो भी 30 साल तो लगे ही। उस मंदिर के रूप में हमने उन तत्वों को ऊपर पहुंचाया है जिनसे संपूर्ण विश्व का जीवन ठीक चलेगा। उसी धर्म का प्रतीक भगवा रंग इस धर्म ध्वज का रंग है।
 
रघुकुल परंपरा से जुड़े प्रतीक चिह्नों से सीखें सत्पुरुष का कर्तव्य : उन्होंने कहा कि इस धर्म ध्वज पर कोविदार का प्रतीक रघुकुल की परंपरा से जुड़ा हुआ है। यह कचनार जैसा लगता है। यह मंदार और पारिजात दोनों वृक्षों के गुणों का संयुक्त रूप है। वृक्ष स्वयं धूप में खड़े रहकर सबको छाया देते हैं, फल स्वयं उगाते हैं और दूसरों को बांट देते हैं। “वृक्षाः सत्पुरुषाः इव” अर्थात वृक्ष सत्पुरुषों के समान हैं। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा जीवन जीना है तो चाहे कितनी प्रतिकूलता हो, साधनहीनता हो, दुनिया स्वार्थ में बहती हो फिर भी हमारा संकल्प है कि हमें धर्म के पथ पर चलना है।
 
भागवत बोले, कचनार के औषधीय गुण हैं, खाद्य उपयोग में भी आता है। सब प्रकार से उपयोगी यह प्रतीक धर्म जीवन का पर्याय है। सूर्य भगवान धर्म के तेज और संकल्प के प्रतीक हैं। उनके रथ का चक्र एक है, रास्ता नहीं है, सात घोड़े हैं, जिन्हें नियंत्रित करने के लिए सर्प की लगाम है, सारथी के पैर नहीं हैं। क्या ऐसी गाड़ी चल सकती है? फिर भी वे बिना थके प्रतिदिन पूरब से पश्चिम जाते आते हैं। कार्य की सिद्धि स्वयं के भरोसे होती है।
 
ओंकार से होता है सत्य का प्रतिनिधित्व : डॉ. भागवत के अनुसार, हिंदू समाज ने लगातार 500 वर्षों और बाद के दीर्घ आंदोलन में अपने इस स्वत्व को सिद्ध किया। रामलला आ गए, मंदिर बन गया। यही बात सत्य पर आधारित धर्म को लेकर भी है। सत्य का प्रतिनिधित्व ओंकार से होता है। वही ओंकार संपूर्ण विश्व को देने वाला भारत हमें खड़ा करना है। उन्होंने कहा कि हमारे संकल्प का प्रतीक हम पूरा कर चुके हैं। धर्म, ज्ञान, छाया तथा सुफल संपूर्ण दुनिया में बांटने वाला भारतवर्ष खड़ा करने का काम शुरू हो गया है। इस प्रतीक को ध्यान में रखते हुए सभी विपरीत परिस्थितियों में हमें एकजुट होकर सतत कार्य करना होगा।
 
भारतवर्ष के लोगों से दुनिया सीखे जीवन जीने का तरीका :  आरएसएस सर संघचालक ने कहा, “एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः” अर्थात इस देश में जन्मे अग्रजन्मा ऐसा जीवन जिएं कि दुनिया उनसे प्रेरणा लें। “स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः” यानी पृथ्वी के समस्त मानव भारतवासियों के चरित्र से जीवन की विद्या सीखें। उन्होंने कहा कि परम वैभव सम्पन्न, सबके लिए खुशी और शांति बांटने वाला तथा विकास का सुफल देने वाला भारतवर्ष हमें खड़ा करना है। यही विश्व की अपेक्षा और हमारा कर्तव्य भी है।
 
उन्होंने कहा कि श्रीरामलला विराजमान हैं, उनसे प्रेरणा लेकर कार्य की गति हम आगे बढ़ाएं। इस अवसर पर रामदास स्वामी के श्लोक “स्वप्नी जे देखिले रात्री, तेते तैसेचि होतसे” का जिक्र करते हुए भागवत ने कहा कि जैसा सपना उन्होंने देखा था, उससे भी अधिक भव्य और सुंदर मंदिर आज बन गया है। सभी सनातन धर्मावलंबियों और भारतवर्ष के नागरिकों को शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने कहा कि यह हमारे हृदय में तप का सृजन करे यही कामना है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 
 
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