15 साल बाद पहलवान सतीश को मिला न्याय
नई दिल्ली। डोपिंग के संदेह में एक ग़लतफ़हमी के चलते 2002 में 14वें एशियाई खेलों में भाग लेने से रोक दिए गए पहलवान सतीश कुमार को आखिर न्याय मिल गया है और दिल्ली की एक अदालत ने 15 साल पुराने मामले में भारतीय कुश्ती महासंघ को पहलवान सतीश को 25 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया
है।
भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) ने पहलवान सतीश को प्रतिबंधित पदार्थ के सेवन के लिए पाजीटिव समझकर गलती से 2002 में 14वें एशियाई खेलों में भाग लेने से रोक दिया था। दिल्ली की एक अदालत ने 15 साल पुराने इस मामले में भारतीय कुश्ती महासंघ को पहलवान सतीश को 25 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया है।
भारतीय कुश्ती महासंघ को मुआवजा देने का निर्देश देते हुए अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि जिस तरह से खेल को नहीं समझने वाले अधिकारियों की अगुवाई वाला महासंघ खिलाड़ियों से बर्ताव करता है, उससे स्पष्ट होता है कि भारत वैश्विक स्तर की प्रतियोगिताओं में पदक हासिल करने में क्यों जूझ रहा है।
सीआईएसएफ के सतीश ने 2006 मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेलों और लास एंजेलिस में विश्व पुलिस खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर देश को गौरवान्वित किया था। डब्ल्यूएफआई को दोषी ठहराने के अलावा अतिरिक्त जिला न्यायाधीश सुरिंदर एस राठी ने केंद्र को इसमें शामिल सभी अधिकारियों के खिलाफ जांच कराने का भी निर्देश दिया जिन्होंने सतीश का करियर लगभग खत्म कर दिया था। इन अधिकारियों में डब्ल्यूएफआई के अधिकारी भी शामिल हैं।
अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि सुनिश्चित किया जाए कि इस तरह की घटनाओं का कभी दोहराव नहीं हो और किसी अन्य खिलाड़ी को इस तरह का अपमान नहीं सहना पड़े जैसा सतीश के साथ हुआ।
पंजाब के निवासी सतीश को डब्ल्यूएफआई ने दक्षिण कोरिया के बुसान में 14वें एशियाई खेलों के लिए चुना था, लेकिन उन्हें गलती से अन्य एथलीटों के साथ फ्लाइट लेने से रोक दिया गया क्योंकि पश्चिम बंगाल के इसी नाम के एक और पहलवान को लेकर संदेह पैदा हो गया था। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल के पहलवान को तब डोप प्रतिबंध में पाजीटिव पाए जाने के बाद दो साल के लिए प्रतिबंधित किया गया था। (वार्ता)