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Written By Author सुरेश डुग्गर
Last Updated : रविवार, 25 नवंबर 2018 (15:44 IST)

जम्मू-कश्मीर : घोषित सीजफायर के 15 साल पूरे, बनते-बिगड़ते हालात ने छीना सीमावासियों का सुख-चैन

जम्मू-कश्मीर : घोषित सीजफायर के 15 साल पूरे, बनते-बिगड़ते हालात ने छीना सीमावासियों का सुख-चैन - India Pakistan seizure
श्रीनगर। कहने को तो पाकिस्तान से सटे जम्मू-कश्मीर के इंटरनेशनल बॉर्डर और एलओसी पर पिछले 15 सालों से दोनों मुल्कों की सेनाओं के बीच सीजफायर है, पर अब हर दिन सीमाओं पर होने वाली गोलों और गोलियों की बरसात सीजफायर का मजाक उड़ाने लगी है। यही नहीं, गोलों व गोलियों की तेज होती बरसात के बीच लाखों सीमावासी अब फिर से पलायन की तैयारी में भी इसलिए जुट गए हैं, क्योंकि सीजफायर के उल्लंघन को लेकर पाक सेना की हरकतें शर्मनाक होने लगी हैं।
 
 
सीमाओं पर जारी सीजफयर के बावजूद पाकिस्तानी सेना द्वारा इस साल 5 महीने में 1,120 बार संघर्षविराम का उल्लंघन किया गया जबकि पिछले पूरे साल यह आंकड़ा 900 था जबकि वर्ष 2016 में 437 बार संघर्षविराम का उल्लंघन किया गया है। जम्मू-कश्मीर में सीमा पर पिछले साल संघर्ष में 33 लोग मारे गए हैं जबकि 179 लोग घायल हुए हैं।
 
आधिकारिक आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं कि पाक सेना ने लगभग हर दिन सीमा और एलओसी पर गोलाबारी की है। उन्होंने बताया कि पिछले साल 780 बार एलओसी पर और 120 बार आईबी पर पाक ने सीजफायर का उल्लंघन किया। इनमें 20 सिविल लोग, 8 सेना के जवान और 5 बीएसएफ के जवान मारे गए। इस साल मृतकों की संख्या 5 महीनों में ही 50 को पार कर गई है। वर्ष 2016 में बॉर्डर पर 437 बार सीजफायर उल्लंघन हुआ जिसमें 26 लोग मारे गए व 97 अन्य घायल हुए। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 में भी पाक सेना ने सबसे ज्यादा करीब 562 बार सीजफायर का उल्लंघन किया था।
 
स्थिति यह है कि 25 नवंबर को अपने 15 साल पूरे करने जा रहे सीजफायर के बावजूद सीमाओं पर पाक सेना द्वारा बार-बार सीजफायर का उल्लंघन किए जाने से हालात बिगड़ते जा रहे हैं। नतीजतन सीमावासियों की रातों की नींद और दिन का चैन फिर से छिनने लगा है। बढ़ती गोलाबारी के कारण वे चिंता में हैं कि तारबंदी के पार के खेतों में वे फसलें बोएं या नहीं, हालांकि अप्रत्यक्ष तौर पर बीएसएफ और सेना उन्हें करने से मना करती रहती है।
 
बॉर्डर पर पाक रेंजरों द्वारा लगातार सीजफायर तोड़कर गोलाबारी करने से सीमा से सटे गांवों के लोगों में दहशत हैं। लोग आने वाले समय के बारे में सोचकर सहम जाते हैं। सीमावासी कहते हैं कि अभी वर्ष 1998-99 के जख्म भरे भी नहीं हैं। जीरो लाइन पर स्थित जमीनों पर जब हम फसल लगाने जाते हैं, तो पता नहीं होता कि घर लौटेंगे कि नहीं? फसल पकने तक दोनों देशों का माहौल ठीक रहेगा या नहीं? पता नहीं फिर कब खेतों में माइन लगा दी जाएं और हम शरणार्थी बन जाएं।
 
कभी परगवाल, अखनूर, कभी अब्दुल्लियां, कभी सांबा में गोलीबारी आम लोगों की नींद उड़ा रही है। आम लोग चाहे हिन्दुस्तान के पिंडी चाढ़कां, काकू दे कोठे, पिंडी कैंप के लोग हों या पाकिस्तान के वे गांव जो बॉर्डर के साथ लगते हैं, जैसे चारवा, बुधवाल, ठिकेरेयाला, तमाला व जरोवाल गांव के लोग कभी नहीं चाहते कि बॉर्डर पर फायरिंग हो। वहीं सीमावर्ती गांवों में तैनात विलेज डिफेंस कमेटी के सदस्य नरेश सिंह कहते थे कि जरा सी आहट होने पर वे गांववासियों की रक्षा के लिए सीना तानकर दुश्मन का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
 
आरएसपुरा, सांबा और अखनूर सेक्टर में भी आए दिन पाकिस्तानी सेना द्वारा गोलीबारी करने से सीमांत किसान काफी डरे व सहमे हुए हैं। इतना ही नहीं, यदि हालात बिगड़ते हैं तो आरएसपुरा सेक्टर के कुल 28 सीमांत गांवों के किसानों की हजारों एकड़ कृषि भूमि प्रभावित हो सकती है। ऐसे में सीमावर्ती गांवों के किसान भगवान से यही दुआ कर रहे हैं कि हालात सामान्य बने रहें।
 
सीमांत गांव चंदू चक निवासी कृष्णलाल का कहना था कि पिछले कुछ सालों से सीमा पर गोलीबारी न होने से सीमांत गांव के लोग राहत महसूस कर रहे थे। एक बार फिर से पड़ोसी देश द्वारा की जा रही फायरिंग से लोग परेशान हैं। सीमांत गांव सुचेतगढ़ निवासी सरवन चौधरी की ही तरह कई सीमावासी असमंजस में हैं कि गेहूं की फसल की रोपाई करें या नहीं?
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