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22 जनवरी से गुप्त नवरात्रि, जानें पूजन सामग्री की सूची, पूजा विधि और मंत्र

22 जनवरी से गुप्त नवरात्रि, जानें पूजन सामग्री की सूची, पूजा विधि और मंत्र - gupt navratri 2023
रविवार, 22 जनवरी 2023 से माघ मास की गुप्त नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। अगर आप किसी तरह की तंत्र विद्या में न जाकर सामान्य पूजा से मनोवांछित फल पाना चाहते हैं तो यह जानकारी आपके लिए ही है। यहां पढ़ें गुप्त नवरात्रि में किस सामग्री से करें देवी पूजन। पूजा विधि और मंत्र 
 
गुप्त नवरात्रि से पहले एकत्र करें लें यह 17 पूजन सामग्री- 
 
●  मां दुर्गा की प्रतिमा अथवा चित्र
●  लाल चुनरी
●  आम की पत्तियां
●  चावल
●  दुर्गा सप्तशती की किताब
●  लाल कलावा
●  गंगा जल
●  चंदन
●  नारियल
●  कपूर
●  जौ के बीच
●  मिट्टी का बर्तन
●  गुलाल
●  सुपारी
●  पान के पत्ते
●  लौंग
●  इलायची
 
गुप्त नवरात्रि पूजा विधि : Gupt navratri Puja vidhi
 
- गुप्त नवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें।
- ऊपर दी गई पूजा सामग्री को एकत्रित करें।
- पूजा की थाल सजाएं।
- मां दुर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में सजाएं।
- मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोएं और नवमी तक प्रति दिन पानी का छिड़काव करें।
- पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें। इसमें पहले कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियां लगाएं और उस पर नारियल रखें। कलश को लाल कपड़े से लपेटें और कलावा के माध्यम से उसे बांधें। अब इसे मिट्टी के बर्तन के पास रख दें।
- फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पंचोपचार पूजा करें।
- नौ दिनों तक मां दुर्गा से संबंधित मंत्र का जाप करें और माता का स्वागत कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें।
- अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों (पूड़ी, चना, हलवा) का भोग लगाएं।
- आखिरी दिन दुर्गा के पूजा के बाद घट विसर्जन करें, मां की आरती गाएं, उन्हें फूल, चावल चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाएं।
 
गुप्त नवरात्रि के मंत्र : Navratri Mantra
 
1. सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। 
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
 
2. ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। 
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
 
3. या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। 
 
4. 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै'