नंगे पांव और टूटी हॉकी से खेलते हुए विवेक सागर ने देखा था ओलंपिक में मेडल लाने का सपना, भाई की जुबानी विवेक के संघर्ष की कहानी
ओलंपिक मेडल जीतने वाली हॉकी टीम के खिलाड़ी विवेक सागर के घर जश्न का माहौल
टोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम के 41 साल बाद कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचने पर देश में जश्न का माहौल है। देश के साथ मध्यप्रदेश भी आज खुशी से झूम रहा है इसकी वजह टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली मध्यप्रदेश के इटारसी के विवेक सागर और नीलकांता शर्मा का शामिल होना है। प्रदेश के इन दो बेटों की उपलब्धि पर आज हर प्रदेशवासी गौरवान्वित महसूस कर है और प्रदेश सरकार ने दोनों खिलाड़ियों एक करोड़ की राशि देने का एलान किया है।
हॉकी टीम के कांस्य पदक जीतने के बाद इटारसी में विवेक सागर के घर जश्न का माहौल है। वेबदुनिया से बातचीत में विवेक के बड़े भाई विद्या सागर, विवेक की उपलब्धि पर गर्व करते हुए कहते हैं कि विवेक ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष के बाद यह सफलता प्राप्त की है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से एक करोड़ रुपए की सम्मान राशि देने की सूचना वेबदुनिया के माध्यम से ही परिवार को मिलने पर भाई विद्या सागर विवेक के जीवन के संघर्ष के पलों को याद कर भावुक हो जाते है और विवेक के जीवन के संघर्ष के पलों को 'वेबदुनिया' से साझा करते है।
पिता नहीं चाहते थे हॉकी खेले विवेक-वेबदुनिया से बातचीत में विवेक सागर के भाई विद्या सागर विवेक के जीवन से जुड़ी बातों को साझा करते हुए कहते हैं कि पिता रोहित प्रसाद शिक्षाकर्मी थे और उनकी तनख्वाह मात्र रुप में मात्र 7 हजार रुपए मिलते थे जिससे न तो घर का गुजारा हो पाता था और न ही घर का खर्च चल पाता था इसलिए पिता चाहते थे कि बेटा विवेक पढ़ाई में ध्यान लगाए और वह विवेक को हॉकी खेलने से रोकते और टोकते थे। विवेक में हॉकी को लेकर एक जुनून था वह पिता से छुपकर हॉकी खेलने जाता रहा है और मम्मी और बहन ने इसको मैनेज किया है।
हॉकी और जूते खरीदने के भी नहीं थे पैसे- विवेक सागर के भाई कहते हैं कि घर में इकलौते कमाने वाले पिता थे और उनकी तनख्वाह बहुत कम थी। पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह विवेक के लिए हॉकी और जूते खरीद सके, इसलिए विवेक दोस्तों की दी हुई टूटी हॉकी से खेलता था।
पेशे से सॉप्टवेयर इंजीनियर विवेक के भाई विद्या कहते हैं कि मैंने जब नौकरी शुरु की तो विवेक को 11 हजार रुपए की हॉकी खरीद कर दी थी। वह विवेक की जिंदगी की पहली हॉकी थी जो घर के किसी शख्स ने खरीदी थी। भाई कहते हैं कि विवेक ने बचपन में टूटी हॉकी से खेलते हुए ओलंपिक में पदक लाने का जो सपना देखा था वह आज साकार हो गया।
विवेक ने जीती थी जिंदगी की जंग- वेबदुनिया से बातचीत में भाई विद्या सागर कहते हैं कि विवेक का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। वह उस पल को याद करते हुए कहते हैं कि विवेक का जब पहली बार टीम इंडिया में सेलेक्शन हुआ तो उसकी कॉलर बोन टूट गई और विवेक टीम में नहीं जा पाया।
उसके बाद 2016 में विवेक में आंखों में प्रॉब्लम हुई तो डॉक्टर को भरोसा नहीं था कि विवेक बचेगा या नहीं इसलिए डॉक्टर ने पापा से ऑपरेशन से पहले सिग्नेचर करा लिए थे। विवेक 18 से 19 दिन तक केवल दवाईयों पर जिंदा रहा है। इन सब से जूझकर विवेक ने अपने लग्न और जुनून से हॉकी से जुड़ा रहा और पॉजिटिव एनर्जी के साथ हॉकी खेला और आज देश को ओलंपिक पदक जिताया।