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Last Updated : रविवार, 30 मई 2021 (13:35 IST)

भारतीय वैज्ञानिकों के अध्ययन से उजागर हो सकती है तारों के निर्माण की प्रक्रिया

भारतीय वैज्ञानिकों के अध्ययन से उजागर हो सकती है तारों के निर्माण की प्रक्रिया - RRI, Research, Innovation, technology,
नई दिल्ली, अंतरिक्ष अपने आप में एक व्यापक शोध का विषय है। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की एक करीबी आकाशगंगा में मौजूद आणविक एवं परमाणु हाइड्रोजन के 3डी वितरण का अनुमान लगाया है, जिससे तारों के निर्माण की प्रक्रिया एवं आकाशगंगा के विकास के संदर्भ में महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हो सकती हैं।

हम जिस आकाशगंगा में रहते हैं, उसकी तरह अंतरिक्ष में असंख्य आकाशगंगाएं विद्यमान हैं। ये आकाशगंगाएं तारों, आणविक एवं परमाणु हाइड्रोजन और हीलियम युक्त डिस्क की तरह होती हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि आकाशगंगा में आणविक हाइड्रोजन का कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में स्वत: लोप हो जाता है, जिसके कारण तारों का निर्माण होता हैं।

इन तारों का तापमान कम से कम 10 केल्विन के करीब पाया गया है, और इनकी मोटाई लगभग 60 से 240 प्रकाश-वर्ष आंकी गई है। परमाणु हाइड्रोजन डिस्क के ऊपर और नीचे दोनों तरफ फैली रहती है।

रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई), बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने इसी संदर्भ में गणितीय गणना की है। अध्ययन के लिए सबसे नजदीकी आकाशगंगा से जुड़े खगोलीय डेटा का उपयोग किया गया है, जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता नरेंद्र नाथ पात्र ने कहा है कि आणविक हाइड्रोजन गैस गुरुत्वाकर्षण के कारण तारों में बदल जाती है। इसके माध्यम से तारों के निर्माण की प्रक्रिया और आकाशगंगा के विकास के संकेत मिल सकते हैं।

नरेंद्र नाथ पात्र ने बताया कि अगर गैस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कुछ सौ प्रकाश वर्ष की पतली डिस्क से आगे बढ़ता है, तो यह समझा जा सकता है कि खगोलविद गैलेक्टिक डिस्क के लंबवत् कुछ हजार प्रकाश वर्ष पर सितारों का निरीक्षण क्यों करते हैं। यह समझना भी आवश्यक है कि गैस के दो घटक क्यों हैं और संभवत: इनसे सुपरनोवा या विस्फोट करने वाले तारों के स्पष्ट संकेत मिल सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने अध्ययन के लिए पृथ्वी से लगभग दो करोड़ प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक आकाशगंगा पर ध्यान केंद्रित किया। इस आकाशगंगा की पृथ्वी से दूरी ब्रह्मांड में मौजूद अन्य आकाशगंगाओं की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। नरेंद्र ने बताया कि कार्बन मोनोऑक्साइड का अणु आणविक हाइड्रोजन का सटीक पता लगाने के लिए जाना जाता है। मैंने जो आकाशगंगा चुनी है, वह मिल्की-वे के समान है और डिस्क के बिखरे एवं पतले घटकों के अनुपात का अध्ययन करने के लिए दिलचस्प है।

नरेंद्र ने कार्बन मोनोऑक्साइड अणु की वर्णक्रमीय रेखाओं का उपयोग संकीर्ण डिस्क घटक और आणविक हाइड्रोजन के बिखरे हुए घटक दोनों के 3डी वितरण का अनुमान लगाने के लिए किया। उन्होंने पाया कि बिखरा हुआ घटक आणविक हाइड्रोजन का लगभग 70 प्रतिशत बनाता है और यह अंश डिस्क की त्रिज्या के साथ लगभग स्थिर रहता है। नरेंद्र ने कहा है कि यह पहली बार है जब किसी भी आकाशगंगा के लिए इस तरह की कोई गणना की गई है।

अध्ययन की यह नई विधि है, जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा पर निर्भर करती है। नरेंद्र अब इसका प्रयोग अन्य निकटतम आकाशगंगाओं पर कर रहे हैं। नरेन्द्र ने कहा है कि इस समय रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) में हमारा समूह आठ आकाशगंगाओं के एक समूह के लिए एक ही रणनीति का इस्तेमाल कर रहा है,और हम इस बात की जाँच करना चाहते हैं कि क्या मेरे द्वारा चुनी गई आकाशगंगा से जुड़े परिणाम और बाकी आकाशगंगाओं के परिणामों में किसी प्रकार की समानता है, या फिर परिणाम अलग आते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी खोज जारी है, और हम इस वर्ष नये परिणामों की उम्मीद कर सकते हैं।

रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) का यह अध्ययन ‘रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के मंथली नोटिसेज’ शोध पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।(इंडिया साइंस वायर)
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