एक इशारे पर आतंकी को चीर देने वाले देश के सबसे खूंखार असॉल्ट डॉग्स, ऐसे तैयार होते हैं RVC सेंटर में
इंडियन का असाल्ट डॉग जूम शहीद हो गया है, वो कश्मीर में एक एंटी टेरर ऑपरेशन के दौरान घायल हुआ था। डॉक्टरों के मुताबिक उसमें सुधार हो रहा था लेकिन बाद में वो अचानक हांफने लगा और फिर हमेशा के लिए वो चला गया। भारतीय सेना के लड़ाकू डॉग Zoom ने 13 अक्टूबर की दोपहर करीब पौन 12 बजे आखिरी सांस ली। बता दें कि शहीद जूम को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में आतंकियों से भिड़ते हुए गोलियां लगी थीं। उसे इलाज के लिए अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन जूम को बचाया नहीं जा सका। इसके पहले एक्सल नाम का डॉग इसी तरह शहीद हो गया था।
लेकिन क्या आपको पता है कि ऐसे बहादुर डॉग जो सेना में अपनी सेवाएं देते हुए आतंकियों से भिड़ जाते हैं और यहां तक कि शहीद भी हो जाते हैं वे कहां ट्रेंड होते हैं और कैसे उन्हें इतना प्रशिक्षित किया जाता है कि वे अकेले कई काम करने में सक्षम हो जाते हैं।
आइए जानते हैं ऐसे ही एक सेंटर के बारे में जहां सेना के ये जांबाज और साइलेंट वॉरियर्स तैयार होते हैं। दरअसल, ऐसे देशभक्त और जांबाज कुत्तों को मेरठ के आरवीसी सेंटर एंड कॉलेज में तैयार किया जाता है। अब तो इंडियन आर्मी में ये बेजुबान जानवर अभिन्न हिस्सा हैं। करीब 1000 से भी ज्यादा ऐसे वॉरियर्स इंडियन आर्मी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
क्या होता है RVC सेंटर?
Remount Veterinary Corps (RVC) यानी आरवीसी सेंटर एक तरह का ट्रेनिंग सेंटर है। यहां डॉग्स और घोडों की ट्रेनिंग होती है। फिलहाल यहां से ट्रेंड होकर निकले करीब 1000 ऐसे साइलेंट वॉरियर्स भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसी सेंटर की जिम्मेदारी होती है कि ऐसे प्रशिक्षित वॉरियर्स की संख्या पर्याप्त मात्रा में बनी रहे।
कितने खूंखार होते हैं ट्रेंड वॉरियर्स?
मेरठ के आरवीसी ट्रेनिंग स्कूल में प्रशिक्षित किए गए साइलेंट वारियर्स करीब 35 फीट बर्फ में दबे हुए सेना के जवानों को खोजने की क्षमता रखते हैं। जमीन के भीतर कई फीट नीचे बिछे हुए एक्सप्लोसिव या खतरनाक डिवाइस को सूंघ लेते हैं। काउंटर इमरजेंसी और घुसपैठ रोकने में ये अहम भूमिका निभाते हैं। ये आतंकियों को खोज लेते हैं। ट्रेनिंग के दौरान ये सोचने, समझने और सूंघने में इतने सक्षम हो जाते हैं कि इनके सामने कोई चालाकी नहीं चल सकती है। ताकत और चकमा देने में तो ये माहिर होते ही हैं। यहां तैयार हुए कई प्रशिक्षित श्वान कई दूसरे देशों को भी भेजे गए हैं।
इतनी नस्लें, ऐसे होती है ट्रेनिंग
मेरठ छावनी में स्थित रिमाउंट वेटनरी कॉर्प्स में जहां पहले जर्मन शेफर्ड, लेब्राडोर जैसी नस्लों को ट्रेंड किया जाता था। वहीं, अब भारतीय नस्ल के देशी कुत्तों मुधोल भी ट्रेंड हो रहा है। करीब 6 से 9 महीने की उम्र के श्वान को हार्ड ट्रेनिंग दी जाती है। सुबह चार बजे से शुरू होने वाली ट्रेनिंग में ग्रूमिंग, व्यायाम, खाना-पीना शामिल है।
क्या होता है ट्रेनिंग में?
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सुबह 4 बजे से शुरू होती है ट्रेनिंग।
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इसमें ग्रूमिंग, व्यायाम, खाना-पीना शामिल है।
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संदिग्ध चीजों की पहचान कराने के लिए टॉय-गन, टॉय-रोबोट, बॉल्स व डॉल्स दिखाए जाते हैं।
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ट्रेनिंग के दौरान थिएटर में फिल्में कार्टून दिखाए जाते हैं जिससे वे देखकर ट्रेनिंग ले सके।
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स्पेशल ट्रेनिंग के बाद टेस्ट होता है।
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जो टेस्ट में फेल हो जाते हैं, उनकी फिर से ट्रेनिंग होती है।
क्या है RVC सेंटर का इतिहास?
आरवीसी सेंटर के इतिहास की बात करें तो यह 1779 से स्थापित है। ब्रिटिश सेना में पहले अश्वों का विभाग कोलकाता में बना था। आर्मी रिमाउंट डिपार्टमेंट की स्थापना 1875 में सहारनपुर में हुई थी। 14 दिसंबर 1920 को आर्मी वेटनरी कोर बनाई गई। 1950 में रिमाउंट वेटनरी और फार्म कोर गठित हुई। मई 1960 में आरवीसी और मिलिट्री फार्म को अलग कर दिया गया।
Written & Edited: By Navin Rangiyal