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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : मंगलवार, 17 जुलाई 2018 (16:26 IST)

अमरनाथ हिमलिंग पिघलकर आधा हुआ

अमरनाथ हिमलिंग पिघलकर आधा हुआ - amarnath himling
श्रीनगर। बीस दिनों के भीतर ही अमरनाथ यात्रा का प्रतीक हिमलिंग पिघलकर आधा रह गया है। ऐसा उन दो लाख भक्तों की सांसों की गर्मी के कारण हुआ है जो इस दौरान कष्ट सहते हुए गुफा तक पहुंचे हैं। उल्लेखनीय है कि अब तक दो लाख से ज्यादा श्रद्धालु बाबा अमरनाथ के दर्शन कर चुके हैं। 
 
इतना जरूर था कि पिछले कई सालों से भक्तों के सांसों की गर्मी से तेजी से पिघलता अमरनाथ यात्रा का प्रतीक हिमलिंग विवाद का मुद्दा बनता जा रहा है। हर बार अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने इसके पिघलने की प्रक्रिया से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह प्राकृतिक प्रक्रिया होती है पर कश्मीर के पर्यावरणविद इसे मानने को तैयार नहीं हैं, जिनका कहना था कि क्षमता से अधिक श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल होने की अनुमति देने से लगातार ऐसा होता रहा है।
 
जिस तेजी से हर बार की यात्रा में हिमलिंग पिघलता रहा है फिर वह कुछ दिनों के बाद बमुश्किल से ही दिख पाता है। गुफा में क्षमता से अधिक श्रद्धालुओं के पहुंचने से हिमलिंग को नुकसान पहुंचता रहा है क्योंकि लाखों भक्तों की गर्म सांसों को हिमलिंग सहन नहीं कर पाता है। इतना जरूर था कि हर बार श्राइन बोर्ड के अधिकारी अप्रत्यक्ष तौर पर भक्तों की सांसों की थ्योरी को मानते हैं पर प्रत्यक्ष तौर पर वे इसे कुदरती प्रक्रिया करार देते थे।
 
श्राइन बोर्ड के अधिकारी कहते थे कि ग्लोबल वार्मिंग भी इसे प्रभावित करती रही है। वे इससे इंकार करते थे कि गुफा में क्षमता से अधिक श्रद्धालु पहुंचते रहे हैं। वर्ष 1996 के अमरनाथ हादसे के बाद नितिन सेन गुप्ता कमेटी की सिफारिश थी कि 75 हजार से अधिक श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल न होने दिया जाए। पर ऐसा कभी नहीं हो पाया। वर्ष 2013 में तो मात्र दो ही दिनों में 75 हजार ने हिमलिंग के दर्शन कर रिकार्ड बनाया था। तो वर्ष 2014 में 29 दिनों में साढ़े तीन लाख श्रद्धालु गुफा में पहुंचे थे।
 
इस पर पर्यावरणविद हमेशा खफा रहे हैं। वे कहते थे कि यात्रियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि न सिर्फ हिमलिंग को पिघलाने में अहम भूमिका निभाती रही है, यात्रा मार्ग के पहाड़ों के पर्यावरण को भी जबरदस्त क्षति पहुंचाती रही है। इन पर्यावरणविदों का कश्मीर के अलगाववादी भी समर्थन कर रहे हैं। 
 
श्राइन बोर्ड श्रद्धालुओं की संख्या को कम करने को राजी नहीं दिखता है। पर वह हिमलिंग के संरक्षण की योजनाओं पर अमल करने का इच्छुक जरूर दिखता रहा है। श्राइन बोर्ड श्रद्धालुओं की संख्या को कम करने की बजाय यात्रा को सारा साल चलाने के पक्ष में भी समर्थन जुटाने में जुटा हुआ है, जो माहौल को और बिगाड़ रहा है इसके प्रति कोई दो राय नहीं है।
 
यात्रा शुरू होने के बाद भक्तों के अलावा गुफा के आस-पास बड़ी तादाद में सुरक्षाकर्मी भी मौजूद रहते हैं। भारी भीड़ की वजह से अमरनाथ गुफा के आसपास का तापमान और बहुत बढ़ जाता है, हालांकि श्राइन बोर्ड का दावा था कि पिछले दो तीन साल में उन्होंने कुछ ऐसे उपाय किए हैं, जिससे गुफा तापमान ना बढ़े।
 
पिछले बार तो जब बाबा बर्फानी ने पहली बार दर्शन दिए थे तब शिवलिंग का आकार 20 फुट का था। और धीरे-धीरे वह अब कुछ ही दिनों के बाद 2-4 फुट का रह गया था। हालांकि यह पहला मौका नहीं था कि जब बाबा बर्फानी पहली बार अपने भक्तों से रूठते जा रहे थे बल्कि इससे पहले भी कई बार ऐसा हो चुका था।
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