माघी पूर्णिमा पर त्रिवेणी में डुबकी से श्रद्धालुओं के मनोरथ हुए पूरे
प्रयागराज। पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में पुण्य की डुबकी से जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर सभी मनोरथ पूरे हो गए। स्नानार्थियों की भीड़ के बावजूद त्रिवेणी स्नान से रोम-रोम सुखद अनुभूति से परिपूर्ण हुआ।
माघी पूर्णिमा के अवसर पर युवाओं में जोश तो बुजुर्गों में श्रद्धा का भाव उफान मार रहा था। गृहस्थ धन-धान्य, सुख-शांति एवं वैभव की आकांक्षा से गंगा मां की आंचल की छांव तले आस्था की डुबकी लगाने पहुंचे थे। स्नानार्थियों की भीड़ के बावजूद त्रिवेणी स्नान से रोम-रोम सुखद अनुभूति से परिपूर्ण हुआ। पुण्य की एक ही डुबकी ने सारे मनोरथ पूरे कर दिए।
मध्य प्रदेश के रीवा जिले से अपने पुत्र लोकेश कुमार के कंधों के सहारे संगम में आस्था की डुबकी लगाने पहुंचे सफेद जटा-जूट धारी बुजुर्ग तीरथराज ने बताया कि गांव के लोगों को संगम स्नान की बातों को सुनकर मेरा मन भी प्रयागराज स्नान करने को ललायित हो गया। सहारे के अभाव में मन में गंगा स्नान की इच्छा पूरी होती नहीं दिख रही थी। बेटे से बड़ी उम्मीद के साथ अपने मन की बात कही, जिसे उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
वृद्धावस्था में पैदल चलना किसी कड़ी तपस्या से कम नहीं। असहाय पैर दर्द किसी तरह शरीर को ढोकर संगम तीरे तक ले गए, लेकिन भीड़ के बीच गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की लहरों पर नजर पड़ते ही, बस एक ही तमन्ना थी कि कितनी जल्दी त्रिवणी ‘मां’ की गोद में अपने को समर्पित कर दूं।
उन्होंने बताया कि मां अखिर मां होती है। यह अनुभूति की बात है। मां को चरण स्पर्श कर जैसे ही उसकी गोद में अपने को समर्पित किया, सभी थकान खुद ब खुद काफुर हो गई। त्रिवेणी के जल पर अठखेलियां करते साइबेरियन पक्षियों के कलरव मन को असीम सुकून दे रहे थे। पक्षियों को देखकर मुझे थोड़ी ईर्ष्या भी हुई कि मुझसे तो अच्छे ये पक्षी हैं, जिन्हें पूरे माघ मास मां की गोद में रहने का सौभाग्य मिला है।
लोकेश ने बताया कि स्नान करने के बाद पिता के मुंह से एक ही शब्द निकला कि अच्छा हुआ बेटा तुमने मेरा मनोरथ पूरा किया। पता नहीं दोबारा मुझे अपनी मां की गोद का सुख मिलता या नहीं। उस समय पिता की आह से मन व्यथित हो गया। लोकेश ने बताया कि वह अपने को सौभाग्यशाली मानता है कि उसे पिता की इच्छा पूरी करने का अवसर मिला और उनकी कृपा से गंगा स्नान का अवसर भी मिला।
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